अजय चौधरी
पहले तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और अब फिर तलाक ए बिद्दत और हलाला की सवैंधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई को मंजूरी देने के फैसला अगर आपको सही लगता है तो ये लाजमी भी है। क्योंकि नागरिक अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं है। वहीं अगर आपको सुप्रीम कोर्ट के ही खाप पंचायतों की अवैध गतिविधियों को लेकर दिया गया फैसला गलत लगता है तो आपको इस तरह कोर्ट का तीन तलाक और इससे जुडे अन्य मुद्दों पर दिए गए फैसले भी गलत लगने चाहिए। अगर खाप पंचायत सही है तो फिर उस तरह तीन तलाक भी सही ही होगा।
हमें ये सोचना होगा कि कोई भी संगठन चाहे वो धार्मिक हो या जातिगत देश के संविधान से बडा नहीं हो सकता और संविधान में दिए गए नागरिक अधिकारों को कुचल नहीं सकता। अगर हमें शरीअत कानून में सुधार की गुंजाईश नजर आती है तो हमें परंपरा और झूठी शान के नाम पर फैसला सुनाने वाली गैरकानूनी खाप पंचायतें भी गलत लगनी चाहिए। हम झूठी शान की खातिर किसी की हत्या को किसी कीमत पर जायज नहीं ठहरा सकते। दु:ख की बात ये है कि शिक्षित वर्ग में से भी कुछ लोग इन पंचायतों से जुडे हैं। ऐसे में उनका खुद को शिक्षित कहना भी गलत होगा क्योंकि वो एक पिछडी सोच से पीडित हैं।
सवाल यही है कि अगर खाप सही है तो फिर शरीअत(मुस्लिम पर्सनल लॉ) क्यों गलत। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों की अवैध गतिविधियों को पूरी तरह बंद करने की बात कही है। कोर्ट ने अंतरजातिय दंपतियों की हत्या को समाजिक बुराई बताते हुए वयक्तिगत आजादी के खिलाफ माना है। इसे सती प्रथा, छुआ छूत की तरह लीजिए किताबों में यही समाजिक बुराई पढाई जाती हैं। लेकिन अब खाप को भी समाजिक बुराई के रुप में पढाया जाना चाहिए। लेकिन ये तब तक नहीं होगा जबतक देश में जातिगत आधारित राजनीति जारी रहेगी। पीठ ने इस तरह के अपराधोंं से निपटने के लिए कानूनों लाने का सुझाव भी दिया है। कानून लाना सरकार का काम है कोर्ट का तो है नहीं। तो हम हरियाणा जहां खाप सबसे ज्यादा प्रभावशाली है वहां की खट्टर और केंद्र सरकार से इस संबध में कानून लाने की उम्मीद भी कैसे कर सकते हैं क्योंकि खट्टर खाप को खुद समाज के लिए अच्छा बताते हैं।
वहीं कोर्ट अब बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिकता पर सुनवाई करने को राजी हो गया है, तो यह पिछले फैसले की ही तार्किक कड़ी है। पिछले साल अगस्त में दिए अपने फैसले में संविधान पीठ ने तीन तलाक प्रथा को गैर-कानूनी ठहराया था। अब एक बार फिर मामले की गंभीरता को देखते हुए याचिकाओं पर सुनवाई संविधान पीठ करेगा। इन याचिकाओं में मांग की गई है कि मुसलिम पर्सनल लॉ (शरीअत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला करार दिया जाए।