अजय चौधरीप्रणब दा एक ऐसी पहेली पढ़ गए कि हर कोई सर पटक पटक के इसके अपने मतलब निकाल रहा है। लेकिन प्रणब ने आरएसएस ने मंच से यही कहा कि देश में धर्म, जाती और भाषाई और वैचारिक विविधताओं के बावजूद संवाद कायम रहना चाहिए। इसी संवाद को कायम रखने के लिए पूर्व राष्ट्रपति ने इसकी शुरुआत संघ के मंच से की। वो चाहते तो अपने विचार भिन्न बताकर इस कार्यक्रम में जाने से इंकार कर सकते थे। यहां जाकर उन्होंने संवाद कायम करने की शुरुआत की है। प्रणब ने देश के राजा को वही राजधर्म याद दिलाया है जो उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में दिलाया था।वहीं संघ ये चाहता है की बीजेपी को सभी तरह के लोगों की मान्यता मिले और वो पूरे राष्ट्र की एक पार्टी बने। ऐसे में उन्होंने प्रणब को अपने कार्यक्रम में बुलाकर बीजेपी और देश को परखना चाहा है। संघ को पता है कि बड़े वक्त बाद बीजेपी के पास देश की सत्ता है वो फिलहाल इसे और बड़ा रूप देना चाहता है। जैसे राहुल को भी समझ में आने लगा है कि मंदिर में जाए बिना काम नहीं चलेगा। वैसे ही संघ को भी समझ आने लगा है कि सबको साथ लिए बिना काम नहीं चलेगा।
जानें क्या था प्रणब के भाषण का मतलब और क्या है आरएसएस का एजेंडा

You Might Also Like
TAGGED:
bjp, congress, pranav mukhrjee, rss, प्रणब
Sign Up For Daily Newsletter
Be keep up! Get the latest breaking news delivered straight to your inbox.
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
dastak
By
dastak
Dastak India Editorial Team
Leave a comment
Leave a comment
Stay Connected
- Advertisement -