एससी एसटी बिल लोकसभा में सर्वसहमति से पास हो गया। भाजपा ने इस बिल को पास कराने के लिए अपने सभी सांसदों को विहिप जारी कर सदन में मौजूद रहने कहा था। वहीं विपक्षी दल भी इस बिल के समर्थन में थे। ऐसे में पहले से ही इस बिल के बिना किसी रुकावट के पास हो जाना तय माना जा रहा था और हुआ भी ऐसा ही।
The Schedule Caste & The Schedule Tribes (Prevention of Atrocities) Amendment Bill, 2018 has been passed by Lok Sabha. pic.twitter.com/EBKNn3Z9U1
एससी एसटी बिल लोकसभा में सर्वसहमति से पास हो गया। भाजपा ने इस बिल को पास कराने के लिए अपने सभी सांसदों को विहिप जारी कर सदन में मौजूद रहने कहा था। वहीं विपक्षी दल भी इस बिल के समर्थन में थे। ऐसे में पहले से ही इस बिल के बिना किसी रुकावट के पास हो जाना तय माना जा रहा था और हुआ भी ऐसा ही।दलित संगठन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एससी एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के आदेश को पलटने की गुहार लगा रहे थे और इसके लिए बीते एक अप्रैल को भारत बंद भी किया था। जिसमें कई जगह हिंसक प्रदर्शन भी देखने को मिले थे। केंद्र सरकार को लगा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलित समाज उसके खिलाफ जा रहा है और इसका खामियाजा उसे 2019 के चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। इसलिए सरकार जल्द से जल्द कोर्ट के इस फैसले को बदलना चाहती थी। वहीं विपक्षी दल भी दलितों के हमदर्दी बनते हुए इस मुद्दे पर दलितों के ही पक्ष में खड़े नजर आए।सरकार ने जहां अध्यादेश की बजाय संशोधन बिल लाकर पुख्ता इंतजाम करने का संदेश दिया। वहीं कांग्रेस ने एक कदम और बढ़ाते हुए अब इसे संविधान की नौवीं सूची में डालने की मांग कर दी ताकि भविष्य में भी कोर्ट इसमें दखल न दे सके। भाजपा की ओर से दलित नेता मायावती और कांग्रेस को अब तक की स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया। जाहिर है कि दलितों के मुद्दे पर आगे दिखने की होड़ की राजनीति अभी कुछ दिनों तक गर्म रहेगी। देर शाम तक चली लंबी चर्चा के बाद एससी-एसटी कानून लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। सोमवार को जहां राज्यसभा में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का विधेयक पारित कराकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। वहीं लोकसभा में एससी एसटी संशोधन विधेयक पारित कराकर दावा किया कि वह दलितों के अधिकार को संरक्षित करने के लिए कृत संकल्प है।जबकि विपक्ष की ओर से कोशिश यह जताने की है कि सरकार ने स्वेच्छा से नहीं दबाव में दलितों को अधिकार दिया। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे समेत विपक्षी नेताओं के भाषणों में बार बार यह जताने की कोशिश हुई कि सरकार ने आखिरकार देर क्यों लगाई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से अब तक छह अध्यादेश लाए गए तो एससी एसटी उत्पीड़न पर अध्यादेश क्यों नहीं आया। नौंवी सूची में इसे डालने की मांग सरकार को और भी घेरने की राजनीति के तहत हुई। यह भी जताने की कोशिश हुई कि पिछले कुछ वर्षो में दलित उत्पीड़न की घटनाओं में 45 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई।
— ANI (@ANI) August 6, 2018
दलित संगठन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एससी एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के आदेश को पलटने की गुहार लगा रहे थे और इसके लिए बीते एक अप्रैल को भारत बंद भी किया था। जिसमें कई जगह हिंसक प्रदर्शन भी देखने को मिले थे। केंद्र सरकार को लगा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलित समाज उसके खिलाफ जा रहा है और इसका खामियाजा उसे 2019 के चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। इसलिए सरकार जल्द से जल्द कोर्ट के इस फैसले को बदलना चाहती थी। वहीं विपक्षी दल भी दलितों के हमदर्दी बनते हुए इस मुद्दे पर दलितों के ही पक्ष में खड़े नजर आए।
सरकार ने जहां अध्यादेश की बजाय संशोधन बिल लाकर पुख्ता इंतजाम करने का संदेश दिया। वहीं कांग्रेस ने एक कदम और बढ़ाते हुए अब इसे संविधान की नौवीं सूची में डालने की मांग कर दी ताकि भविष्य में भी कोर्ट इसमें दखल न दे सके। भाजपा की ओर से दलित नेता मायावती और कांग्रेस को अब तक की स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया। जाहिर है कि दलितों के मुद्दे पर आगे दिखने की होड़ की राजनीति अभी कुछ दिनों तक गर्म रहेगी। देर शाम तक चली लंबी चर्चा के बाद एससी-एसटी कानून लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। सोमवार को जहां राज्यसभा में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का विधेयक पारित कराकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। वहीं लोकसभा में एससी एसटी संशोधन विधेयक पारित कराकर दावा किया कि वह दलितों के अधिकार को संरक्षित करने के लिए कृत संकल्प है।
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