शैलेश शर्मा
14 अगस्त 1947 को गांधी जी नाराज होकर नोआखली चले गए थे! क्योंकि गांधी जी के अनुसार देश अभी भी आज़ाद नहीं हुआ था सिर्फ और सिर्फ पावर ऑफ ट्रांसफर है जैसे आज के समय में भी एक सरकार हारती है, तो दूसरे दल के नेता प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद पावर ऑफ ट्रांसफर के रजिस्टर में हस्ताक्षर करता है, इसी तरीके से आज़ादी के समय भी पावर ऑफ ट्रांसफर के रजिस्टर में हस्ताक्षर किए गए थे।
गांधी जी संधियों पर हस्ताक्षर के खिलाफ थे! जिसमें से “शहीद भगत सिंह” को शहीद ना माना जाए एक संधि थी इसी संधि के खिलाफ भारत की जनता ने धता बताकर भगत सिंह के नाम से पहले शहीद लगाकर शहीद भगत सिंह को सदा के लिए अमर कर दिया लेकिन पूर्व वर्ती सरकार ने समय समय पर शहीद भगत सिंह को आतंकवादी होने का बोध कराती रही थी ।
दूसरी महत्व पूर्ण संधि के अन्तर्गत “सुभाष चन्द्र बोस” को जिंदा या मुर्दा पकड़कर देने की प्रतिबद्धता को गांधी जी की सहमति पर सवालिया निशान जरूर लगे थे लेकिन वो संधियों के खिलाफ थे । इस प्रकार से बहुत सी संधियों को आंख मूंद कर मा न लिया गया था। भारत आज भी कॉमन वैल्थ में आता है कॉमन वैल्थ में लगभग 70 देश आते हैं जिनकी मालिक ब्रिटेन की महारानी ही है उदाहरण के तौर पर भारत के राष्ट्रपति को प्रथम दर्जा मिला हुआ है यदि ब्रिटेन की महारानी भारत आती है तो महारानी को ही प्रथन स्थान मिलेगा और भारत के राष्ट्रपति को दूसरा दर्जा ही मिलेगा। संधियों के खिलाफत के कारण गांधी जी 14 अगस्त 1947 की रात को लॉर्ड माउंट बेटन और नेहरू जी के साथ शामिल नहीं हुए थे।
इसके साथ इंग्लैंड की कुछ कम्पनी जो हिंदुस्तान में छाई हुई थी को नहीं जाने दिया गया था उसमें से एक हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड ( जो अब हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड है) है जिसका मुख्यालय लदंन में है और लाभांश इंग्लैंड को जाया करता था । यही कंपनी रॉ मटेरियल इंग्लैंड से भेजती थी और फिनिश्ड प्रोडक्ट भारत में बेचा करती थी और उसकी मोनोपली में पूर्व वर्ती सरकार ने पूरा सहयोग करके लाभांश को इंग्लैंड भेजने में रास्ता साफ किया करती थी।
गांधी जी को छोड़ दिया जाए तो किसी भी कांग्रेसी को ना तो थप्पड़ पड़ा, ना ही यातना मिली और ना ही किसी फांसी हुई ! मजे की बात राजतिलक भी कांग्रेस मतलब नेहरू जी का हुआ।
गांधी जी के कवर को कवर करने वाले वुद्धी जिवियों ने और गांधी जी के नाम पे चलने वाली पार्टी ने कभी उनका अनुसरण किया ! क्या अपने चरित्र् में उतारा? गांधी जी की मूर्ति केवल धरना के लिए बनी है और अवसर ना मिलने पर गांधी जी का नाम दुहाई के लिए प्रयोग होता रहा है। ये काम सत्ता पक्ष से लेे के विपक्ष भी करता है । गांधी जी ने आधी धोती इसलिए पहनी क्योंकि देश की गरीब जनता को पहनने के लिए कपड़े नहीं थे, उन्होंने ट्रेन कि सामान्य बोगी में सफर इसलिए किया क्योंकि देश की गरीब जनता एसी या फर्स्ट क्लास यात्रा नहीं कर सकती थी।
सत्ता पाने के बाद पंडित नेहरू ने सारी सरकारी सुविधाएं ली , परिवारवाद को बढ़ावा दिया जिसका परिणाम इंदिरा गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताज पोशी की गई जब की बहुत सारे स्वंतत्रता संग्राम सेनानी जो इंदिरा जी से सीनियर थे। आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी को ख़तम भी नहीं किया गया अर्थात सत्ता का हस्तांतरण हुआ ! गोरे अंग्रेजों का सिंहासन काले अंग्रेज़ो के हाथ आ गया जिन्होंने वो ही पॉलिसी “बांटो और राज करो” का प्रयोग किया। इसलिए इसे इंडिपेंडेंस डे ना कह कर इसे सत्ता का हस्तांतरण डे कहा जाना चाहिए।
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”
शैलेश शर्मा14 अगस्त 1947 को गांधी जी नाराज होकर नोआखली चले गए थे! क्योंकि गांधी जी के अनुसार देश अभी भी आज़ाद नहीं हुआ था सिर्फ और सिर्फ पावर ऑफ ट्रांसफर है जैसे आज के समय में भी एक सरकार हारती है, तो दूसरे दल के नेता प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद पावर ऑफ ट्रांसफर के रजिस्टर में हस्ताक्षर करता है, इसी तरीके से आज़ादी के समय भी पावर ऑफ ट्रांसफर के रजिस्टर में हस्ताक्षर किए गए थे। गांधी जी संधियों पर हस्ताक्षर के खिलाफ थे! जिसमें से “शहीद भगत सिंह” को शहीद ना माना जाए एक संधि थी इसी संधि के खिलाफ भारत की जनता ने धता बताकर भगत सिंह के नाम से पहले शहीद लगाकर शहीद भगत सिंह को सदा के लिए अमर कर दिया लेकिन पूर्व वर्ती सरकार ने समय समय पर शहीद भगत सिंह को आतंकवादी होने का बोध कराती रही थी । दूसरी महत्व पूर्ण संधि के अन्तर्गत “सुभाष चन्द्र बोस” को जिंदा या मुर्दा पकड़कर देने की प्रतिबद्धता को गांधी जी की सहमति पर सवालिया निशान जरूर लगे थे लेकिन वो संधियों के खिलाफ थे । इस प्रकार से बहुत सी संधियों को आंख मूंद कर मा न लिया गया था। भारत आज भी कॉमन वैल्थ में आता है कॉमन वैल्थ में लगभग 70 देश आते हैं जिनकी मालिक ब्रिटेन की महारानी ही है उदाहरण के तौर पर भारत के राष्ट्रपति को प्रथम दर्जा मिला हुआ है यदि ब्रिटेन की महारानी भारत आती है तो महारानी को ही प्रथन स्थान मिलेगा और भारत के राष्ट्रपति को दूसरा दर्जा ही मिलेगा। संधियों के खिलाफत के कारण गांधी जी 14 अगस्त 1947 की रात को लॉर्ड माउंट बेटन और नेहरू जी के साथ शामिल नहीं हुए थे। इसके साथ इंग्लैंड की कुछ कम्पनी जो हिंदुस्तान में छाई हुई थी को नहीं जाने दिया गया था उसमें से एक हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड ( जो अब हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड है) है जिसका मुख्यालय लदंन में है और लाभांश इंग्लैंड को जाया करता था । यही कंपनी रॉ मटेरियल इंग्लैंड से भेजती थी और फिनिश्ड प्रोडक्ट भारत में बेचा करती थी और उसकी मोनोपली में पूर्व वर्ती सरकार ने पूरा सहयोग करके लाभांश को इंग्लैंड भेजने में रास्ता साफ किया करती थी। गांधी जी को छोड़ दिया जाए तो किसी भी कांग्रेसी को ना तो थप्पड़ पड़ा, ना ही यातना मिली और ना ही किसी फांसी हुई ! मजे की बात राजतिलक भी कांग्रेस मतलब नेहरू जी का हुआ। गांधी जी के कवर को कवर करने वाले वुद्धी जिवियों ने और गांधी जी के नाम पे चलने वाली पार्टी ने कभी उनका अनुसरण किया ! क्या अपने चरित्र् में उतारा? गांधी जी की मूर्ति केवल धरना के लिए बनी है और अवसर ना मिलने पर गांधी जी का नाम दुहाई के लिए प्रयोग होता रहा है। ये काम सत्ता पक्ष से लेे के विपक्ष भी करता है । गांधी जी ने आधी धोती इसलिए पहनी क्योंकि देश की गरीब जनता को पहनने के लिए कपड़े नहीं थे, उन्होंने ट्रेन कि सामान्य बोगी में सफर इसलिए किया क्योंकि देश की गरीब जनता एसी या फर्स्ट क्लास यात्रा नहीं कर सकती थी। सत्ता पाने के बाद पंडित नेहरू ने सारी सरकारी सुविधाएं ली , परिवारवाद को बढ़ावा दिया जिसका परिणाम इंदिरा गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताज पोशी की गई जब की बहुत सारे स्वंतत्रता संग्राम सेनानी जो इंदिरा जी से सीनियर थे। आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी को ख़तम भी नहीं किया गया अर्थात सत्ता का हस्तांतरण हुआ ! गोरे अंग्रेजों का सिंहासन काले अंग्रेज़ो के हाथ आ गया जिन्होंने वो ही पॉलिसी “बांटो और राज करो” का प्रयोग किया। इसलिए इसे इंडिपेंडेंस डे ना कह कर इसे सत्ता का हस्तांतरण डे कहा जाना चाहिए।