अजय चौधरी
पुण्य प्रसून बाजपेयी ने जामिया विश्वविद्यालय में पिछले दिनों हुए कार्यक्रम में एक पत्रकारिता के छात्र के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि “हमारा संस्थान अगर खडा हो जाता है तो सरकार की बैंड बज जाती”। प्रसून बीते 29 सितंबर को जामिया में आयोजित कार्यक्रम “गुफ्तगूं” में बतौर अथिति छात्रों के सवालों के जवाब दे रहे थे।
जब पत्रकारिता के एक छात्र ने बाजपेयी से पूछा कि आपने कहा कि आपके टाईम स्लॉट में सिग्नल में कमी पेश आने लगती थी तो रविश कुमार आपसे ज्यादा सरकार के एंटी लगते हैं तो उनके साथ ये दिक्कत क्यों नहीं आई? इसके जवाब में बाजपेयी ने कहा कि “एक चीज हमें समझनी चाहिए की लडाई एनडीटीवी लड रहा है, रविश उसमें काम करते हैं, अगर हमारा संस्थान भी खडा हो जाता तो सरकार की बैंड बज जाती। सिग्नल एनडीटीवी के भी डिस्टर्ब हो रहे थे, लेकिन संस्थान ने लडाई लडी है। उन्होंने कहा एनडीटीवी चलाने वाले प्रणव रॉय एक पत्रकार हैं, तो जब एक पत्रकार लडाई लडता है तो उसमें ए,बी,सी और डी का महत्व नहीं होता। लेकिन हम लोग ऐसे प्रोफेशनल संस्थानों में काम कर रहे हैं जिसका एक इकोनोमिक मॉडल है, हो सकता है हमें निकालने की एवज में उन्होंने समझौता कर लिया हो।”
अब आप सोच रहे होंगे कि 29 सिंतबर की खबर हम अब क्यों उठा रहे हैं, अब तो दशहरा भी चला गया और रावण भी जल गया। उसका कारण ये है कि पुण्य प्रसून के इस कार्यक्रम की वीडियो का एक हिस्सा काफी वायरल हो रहा है। जिसमें वो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के फोन आने का जिक्र कर रहे हैं और वो कह रहे हैं कि अमित शाह उनसे बोल रहे हैं कि आप बहुत उल्टी सीधी खबरें दिखाते हैं। राजनीति में क्यों नहीं आ जाते? तो ये बात हमारे हजम नहीं हुई, फिर भी हमने पडताल की तो किसी नामी अखबार या चैनल की वेबसाइड पर हमें ये खबर नहीं मिली। हमने सोचा खबर और आरोप बडे हैं तो यूट्यूब के अलावा किसी ओर कोने में तो ये खबर होनी ही चाहिए थी, लेकिन नहीं मिली। क्योंकी ये खबर थी ही नहीं।
हमने पडताल शुरु की, काफी मश्क्कत के बाद यूट्यूब पर “दलित मिरर” नाम के चैनल पर हमें बिना किसी कट के ये वीडियो मिली। जिसमें पुण्य प्रसून बाजपेयी अमित शाह का जिक्र जरुर कर रहे हैं लेकिन वो वाक्य जो बता रहे हैं उसका संदर्भ एबीपी न्यूज में जो घटनाक्रम हुआ उससे बिलकुल अलग है। एक छात्र ने जब बाजपई से पूछा कि क्यों नहीं वो, रविश कुमार और विनोद दुआ चुनाव लड लेते? इसके जवाब में पुण्य 2014 के एक घटनाक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि “जब उन्होंने ये स्टोरी ब्रेक की कि आरएसएस नहीं चाहती है कि शिवसेना और बीजेपी आपस में झगडा करें और नाता तोड लें। इसके कुछ देर बाद अमित शाह का फोन उन्हें आता है और वो उनसे कहते हैं कि प्रसून जी आप गलत सलत खबरें देते हैं और आप राजनीतिक पार्टी के इशारे पर खबरें बना रहे हैं आप चुनाव ही क्यों नहीं लड लेते। बाजपई ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां ये चाहती हैं कि वो भी उनके बगल में आकर खडे हो जाएं और उसी व्यवस्था का हिस्सा बन जाएं”।
मौत की टाइमिंग और लापरवाही का रावण
अजय चौधरीपुण्य प्रसून बाजपेयी ने जामिया विश्वविद्यालय में पिछले दिनों हुए कार्यक्रम में एक पत्रकारिता के छात्र के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि “हमारा संस्थान अगर खडा हो जाता है तो सरकार की बैंड बज जाती”। प्रसून बीते 29 सितंबर को जामिया में आयोजित कार्यक्रम “गुफ्तगूं” में बतौर अथिति छात्रों के सवालों के जवाब दे रहे थे।जब पत्रकारिता के एक छात्र ने बाजपेयी से पूछा कि आपने कहा कि आपके टाईम स्लॉट में सिग्नल में कमी पेश आने लगती थी तो रविश कुमार आपसे ज्यादा सरकार के एंटी लगते हैं तो उनके साथ ये दिक्कत क्यों नहीं आई? इसके जवाब में बाजपेयी ने कहा कि “एक चीज हमें समझनी चाहिए की लडाई एनडीटीवी लड रहा है, रविश उसमें काम करते हैं, अगर हमारा संस्थान भी खडा हो जाता तो सरकार की बैंड बज जाती। सिग्नल एनडीटीवी के भी डिस्टर्ब हो रहे थे, लेकिन संस्थान ने लडाई लडी है। उन्होंने कहा एनडीटीवी चलाने वाले प्रणव रॉय एक पत्रकार हैं, तो जब एक पत्रकार लडाई लडता है तो उसमें ए,बी,सी और डी का महत्व नहीं होता। लेकिन हम लोग ऐसे प्रोफेशनल संस्थानों में काम कर रहे हैं जिसका एक इकोनोमिक मॉडल है, हो सकता है हमें निकालने की एवज में उन्होंने समझौता कर लिया हो।”अब आप सोच रहे होंगे कि 29 सिंतबर की खबर हम अब क्यों उठा रहे हैं, अब तो दशहरा भी चला गया और रावण भी जल गया। उसका कारण ये है कि पुण्य प्रसून के इस कार्यक्रम की वीडियो का एक हिस्सा काफी वायरल हो रहा है। जिसमें वो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के फोन आने का जिक्र कर रहे हैं और वो कह रहे हैं कि अमित शाह उनसे बोल रहे हैं कि आप बहुत उल्टी सीधी खबरें दिखाते हैं। राजनीति में क्यों नहीं आ जाते? तो ये बात हमारे हजम नहीं हुई, फिर भी हमने पडताल की तो किसी नामी अखबार या चैनल की वेबसाइड पर हमें ये खबर नहीं मिली। हमने सोचा खबर और आरोप बडे हैं तो यूट्यूब के अलावा किसी ओर कोने में तो ये खबर होनी ही चाहिए थी, लेकिन नहीं मिली। क्योंकी ये खबर थी ही नहीं।हमने पडताल शुरु की, काफी मश्क्कत के बाद यूट्यूब पर “दलित मिरर” नाम के चैनल पर हमें बिना किसी कट के ये वीडियो मिली। जिसमें पुण्य प्रसून बाजपेयी अमित शाह का जिक्र जरुर कर रहे हैं लेकिन वो वाक्य जो बता रहे हैं उसका संदर्भ एबीपी न्यूज में जो घटनाक्रम हुआ उससे बिलकुल अलग है। एक छात्र ने जब बाजपई से पूछा कि क्यों नहीं वो, रविश कुमार और विनोद दुआ चुनाव लड लेते? इसके जवाब में पुण्य 2014 के एक घटनाक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि “जब उन्होंने ये स्टोरी ब्रेक की कि आरएसएस नहीं चाहती है कि शिवसेना और बीजेपी आपस में झगडा करें और नाता तोड लें। इसके कुछ देर बाद अमित शाह का फोन उन्हें आता है और वो उनसे कहते हैं कि प्रसून जी आप गलत सलत खबरें देते हैं और आप राजनीतिक पार्टी के इशारे पर खबरें बना रहे हैं आप चुनाव ही क्यों नहीं लड लेते। बाजपई ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां ये चाहती हैं कि वो भी उनके बगल में आकर खडे हो जाएं और उसी व्यवस्था का हिस्सा बन जाएं”। 2014 की इस बात को बहुत से यूट्यूब चैनलों ने ऐसे चलाया जैसे कि ये अब 2018 की खबर हो और एबीपी न्यूज के मास्टरस्ट्रोक कार्यक्रम में पीएम की खबर चलाने को लेकर हुए विवाद में अमित शाह का फोन आया हो। जाहिर सी बात है हर कोई पहली नजर में ये ही समझेगा। सिर्फ यूट्यूब चैनलों का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि हमें ओर कहीं ये खबर नजर नहीं आई। हम इसकी वीडियो इस खबर के नीचे लगा रहे हैं ताकि आप देख सकें। वीडियो काफी लंबी है, हम चाहते तो आपको बता सकते थे कि किस टाईम फ्रेम में ऊपर लिखी दोनों बातें पुण्य प्रसून ने कहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि आपको वीडियो देखनी ही है तो समय निकाल कर इसे पूरा देखा जाए ताकि आप इस अलग और भी बहुत सी बातों को जान सकें जो पुण्य प्रसून ने कही है।
2014 की इस बात को बहुत से यूट्यूब चैनलों ने ऐसे चलाया जैसे कि ये अब 2018 की खबर हो और एबीपी न्यूज के मास्टरस्ट्रोक कार्यक्रम में पीएम की खबर चलाने को लेकर हुए विवाद में अमित शाह का फोन आया हो। जाहिर सी बात है हर कोई पहली नजर में ये ही समझेगा। सिर्फ यूट्यूब चैनलों का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि हमें ओर कहीं ये खबर नजर नहीं आई। हम इसकी वीडियो इस खबर के नीचे लगा रहे हैं ताकि आप देख सकें। वीडियो काफी लंबी है, हम चाहते तो आपको बता सकते थे कि किस टाईम फ्रेम में ऊपर लिखी दोनों बातें पुण्य प्रसून ने कहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि आपको वीडियो देखनी ही है तो समय निकाल कर इसे पूरा देखा जाए ताकि आप इस अलग और भी बहुत सी बातों को जान सकें जो पुण्य प्रसून ने कही है।