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Dastak India > Home > विचार > ड्राइवरों को नसीब भी नहीं होती छाछ और मलाई खा जाती है ऑनलाइन कैब सर्विस कंपनियां
विचारहोम

ड्राइवरों को नसीब भी नहीं होती छाछ और मलाई खा जाती है ऑनलाइन कैब सर्विस कंपनियां

Jyoti Chaudhary
Last updated: October 23, 2018 3:19 pm
Jyoti Chaudhary
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FM Niramala Sitharaman, Ola, Uber, Indian Economy, Auto Sector
Photo : Google
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ज्योति चौधरी

ओला उबर जैसी ऑनलाइन कैब सर्विस देने वाली कंपनियों ने ड्राइवरों का जीना मुहाल किया हुआ है। पूरे दिन मेहनत करने के बावजूद बेचारे ड्राइवरों को छाछ भी नसीब नहीं हो पाती है, क्योंकि दूध और मलाई तो ये ऑनलाइन कैब सर्विस देने वाली कंपनियां ले जाती है।

मैंने किसी जगह पर जाने के लिए ओला कैब बुक की। कैब में बैठने के बाद मैंने सोचा कि शायद ये ड्राईवर अच्छी खासी कमाई कर लेते होंगे। उसी दौरान अचानक मेरे दिमाग में सवाल आया कि ओला कैब ड्राईवर से उनकी कमाई के बारे में जानू। जब मैंने कैब ड्राईवर से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि यदि वह दिन में 1000 रुपए कमाते है और तो उसका 20-25% कमीशन ऑनलाइन कैब सर्विस वाली कंपनियां लेती है। उसके बाद उन्हें अपनी गाड़ी में डीजल और सीएनजी भी भरवानी पड़ती है। और अंत में जाकर बड़ी मुश्किल से उनके हाथ में 400-500 रुपए ही बच पाते है। इस बारे में मैंने अन्य कई कैब ड्राईवर से बात की उन्होंने भी मेरे आगे अपना यही दुखड़ा रोया। उन्होंने कहा कि हमे दूध में से छाछ भी नसीब नही हो पाती है और सारी मलाई को ये ऑनलाइन कैब सर्विस कंपनियां खा जाती है।

ये मामला यही ख़त्म नहीं हुआ। उनके जुर्मों का वार तो अभी भी बाकी है। यदि कोई व्यक्ति कहीं जाने के लिए इन ऑनलाइन कैब सर्विस का सहारा लेता है और उसका भुगतान कैश (नगद) करता है तो इन ऑनलाइन कैब सर्विस देने वाली कंपनियों के मन में डर बैठ जाता है। ये डर और भी ज्यादा तब बढ़ जाता है जब ऐसे कैश भुगतान करने वाले दो-चार ग्राहक मिल जाये तो भी ये कंपनियां उन बेचारे ड्राईवर को काम देना बंद कर देती है क्योंकि उन्हें डर होता है कही वो ड्राईवर उनके कमीशन के पैसे लेकर न भाग जाये। सोचने वाली बात है, थोड़ा सोच कर भी देखो वो बेचारे ड्राईवर कंपनी से मिले काम के सहारे अपना घर चला पाते है तो वो कुछ पैसो को लेकर कहां जाएंगे। क्या उन्हें एक दिन ही कमाना है या इन कंपनियों  के 25% कमीशन से ही उनके पूरे महीने भर का खर्च चल जाएगा।

यहाँ भी ज़रा गौर फरमाईयेगा

ये तो था उन कंपनियों का बेचारे ड्राइवरों पर अत्याचार, अभी रहता है सरकार का भी इसमें हाथ। सरकार भी इन ड्राइवरों को कोई कम नहीं सता रही है । सरकार कभी पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाती है, तो कभी चालान काटती है। बेचारे ड्राईवर भी क्या करे रोज आये दिन लगातार पेट्रोल-डीजल के दामो में बढ़ोतरी होती है, तो कभी सरकार इनपर वेट टैक्स बढ़ाकर परेशान करती है। बेचारे कैब ड्राईवर क्या रोज कमाए क्या ये अपने बच्चों के लिए बचाए। क्योंकि सब तो सरकार और इन कैब सर्विस कंपनियों की जेब में चला जाता है। एक पीले रंग की पट्टी हट जाये तो ट्रैफिक पुलिस उस पर भी 500 रुपए का चालान काटती है। इतने से भी सरकार का पेट नहीं भरता तो वो इन ड्राइवरों की ड्रेस को लेकर भी चालान काट लेती है। दिल्ली में जाने के लिए भी इन ड्राईवर को पहले MCD Tax का भुगतान करना पड़ता है। जितनी बार दिल्ली में जाते है उतनी ही बार ड्राईवर को ये टैक्स देना पड़ता है। सरकार को खुद सोचना चाहिए कि इसी से ये लोग अपनी जीविका चला रहे है और इन ड्राईवर पर ही हर तरह के टैक्स और चालान के नियम बनाये गए है। लेकिन जो लोग अपनी गाड़ी टैक्सी में नहीं चलाते है तो उनपर इस तरह के किसी भी टैक्स का कोई नियम नहीं है।

एक इंसान किस हद तक और कितना सहे। एक दिन में एक व्यक्ति लगातार 10-12 घंटे ही काम कर सकता है उसी तरह ये ड्राईवर भी अपनी गाड़ी चलाते है लेकिन पूरे दिन कमाने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं बच पाता है। पूरे दिन मेहनत करने के बाद भी ये बेचारे ड्राईवर अपने भविष्य के लिए कुछ नहीं बचा पाते है। जिससे वो अपनी जीविका चला रहे है, उसकी मरम्मत के लिए भी एक अंश नहीं बचा पाते। एक तरफ मंहगाई की मार उन्हें मारती है, तो वही दूसरी तरफ कैब सर्विस कंपनियां इन ड्राइवरों को नोच-नोचकर खा रही है।

“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”

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