आज हम आपको एक ऐसे गाँव के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने आप में खास है और यहाँ के लोग बाकि देश के लिए एक प्ररेणा बन गए हैं। कन्याकुमारी जिले के एक विचित्र छोटे से गाँव मदतट्टुविल्लई की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, जहाँ पिछले एक दशक में 229 निवासियों ने अपनी आँखें दान की हैं। जब कभी इस गांव में किसी की मृत्यु होती है, तो सबसे पहले मृतक के परिवार वहाँ की स्थानीय चर्च के पुजारी से संपर्क करना होता है।
इसके बाद, चर्च का युवा समूह परिवार तक पहुंचता है और नेत्रदान की प्रक्रिया में उनकी मदद करता है। यह तिरुनेलवेली की एक मेडिकल टीम द्वारा अंग के शीघ्र पुनर्प्राप्ति की सुविधा भी प्रदान करता है। हाँळाकि शुरुआत में ग्रामीण इस विचार के प्रति बहुत उत्सुक नहीं थे। वहाँ के ज्यादातर बुजुर्ग आंखें दान नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था कि वे भगवान को अपनी मृत्यु के बाद देख नहीं पाएंगे।
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आज हम आपको एक ऐसे गाँव के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने आप में खास है और यहाँ के लोग बाकि देश के लिए एक प्ररेणा बन गए हैं। कन्याकुमारी जिले के एक विचित्र छोटे से गाँव मदतट्टुविल्लई की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, जहाँ पिछले एक दशक में 229 निवासियों ने अपनी आँखें दान की हैं। जब कभी इस गांव में किसी की मृत्यु होती है, तो सबसे पहले मृतक के परिवार वहाँ की स्थानीय चर्च के पुजारी से संपर्क करना होता है।इसके बाद, चर्च का युवा समूह परिवार तक पहुंचता है और नेत्रदान की प्रक्रिया में उनकी मदद करता है। यह तिरुनेलवेली की एक मेडिकल टीम द्वारा अंग के शीघ्र पुनर्प्राप्ति की सुविधा भी प्रदान करता है। हाँळाकि शुरुआत में ग्रामीण इस विचार के प्रति बहुत उत्सुक नहीं थे। वहाँ के ज्यादातर बुजुर्ग आंखें दान नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था कि वे भगवान को अपनी मृत्यु के बाद देख नहीं पाएंगे।2004 में, ग्रामीणों को इसके महत्व को समझाने और इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने पर काम करने का फैसला किया। उन्हें सेंट सेबेस्टियन चर्च का भी समर्थन था जहाँ पर धर्म उपदेशों में नेत्र दान के महत्व के बारे में बताते है। धीरे-धीरे इन बातों का गहरा प्रभाव पड़ा और तीन साल बाद, 2007 में, गाँव में पहली बार नेत्रदान हुआ। बाद में, उसी वर्ष, लगभग 1,500 व्यक्तियों, जिनमें से ज्यादातर युवा थे, उन्होंने नेत्रदान के लिए दाखिला लिया।अब गांव के प्रत्येक निवासी 14 वर्षीय से लेकर 2017 में 97 वर्षीय महिला तक, करुणा का एक उल्लेखनीय उदाहरण स्थापित कर रहे हैं और नेत्रहीन लोगों के जीवन में रोशनी ला रहे हैं।