द क्वीन ऑफ झांसी एक ऐतिहासिक फिल्म है जिसे बनाने में कंगना रनौत काफी हद तक सफल रही हैं। रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान की कहानी को बखूबी बड़े परदे पर दर्शीती फिल्म मणिकर्णिका एक भव्य और शानदार फिल्म है। बतौर अभिनेत्री और निर्देशक कंगना इस फिल्म को लेकर सफल नजर आती हैं। हाँलाकि फिल्म में काफी स्टन्ट्स बचकाने लगते हैं। ये एक गौरव गाथा की तरह है जिसका मकसद दर्शकों को देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत करना है।
खास बात यह है कि, वे बेहतरीन विजुअल्स क्रिएट करने में भी सफल रही हैं लेकिन कुछ चीजें हैं जो फिल्म में खटकती हैं। जैसे कि रानी लक्ष्मीबाई की गौरव गाथा वाली कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी’ जो हम सभी ने पढ़ी है, सिर्फ इसके इर्द-गिर्द फिल्म की रूपरेख नजर आती है। फिल्म बस यही तक सीमित है। फिल्म पर कुथ खास रिसर्च नहीं की गई है।फिल्म बताती है कि झांसी की रानी का पूरा नाम मणिकर्णिका तांबे था। अंत में अमिताभ बच्चन ने झाँसी की रानी के बारे में उन प्रसिद्ध पंक्तियों को पढ़ा जिसे सुन कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा।
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द क्वीन ऑफ झांसी एक ऐतिहासिक फिल्म है जिसे बनाने में कंगना रनौत काफी हद तक सफल रही हैं। रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान की कहानी को बखूबी बड़े परदे पर दर्शीती फिल्म मणिकर्णिका एक भव्य और शानदार फिल्म है। बतौर अभिनेत्री और निर्देशक कंगना इस फिल्म को लेकर सफल नजर आती हैं। हाँलाकि फिल्म में काफी स्टन्ट्स बचकाने लगते हैं। ये एक गौरव गाथा की तरह है जिसका मकसद दर्शकों को देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत करना है।खास बात यह है कि, वे बेहतरीन विजुअल्स क्रिएट करने में भी सफल रही हैं लेकिन कुछ चीजें हैं जो फिल्म में खटकती हैं। जैसे कि रानी लक्ष्मीबाई की गौरव गाथा वाली कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी’ जो हम सभी ने पढ़ी है, सिर्फ इसके इर्द-गिर्द फिल्म की रूपरेख नजर आती है। फिल्म बस यही तक सीमित है। फिल्म पर कुथ खास रिसर्च नहीं की गई है।फिल्म बताती है कि झांसी की रानी का पूरा नाम मणिकर्णिका तांबे था। अंत में अमिताभ बच्चन ने झाँसी की रानी के बारे में उन प्रसिद्ध पंक्तियों को पढ़ा जिसे सुन कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा। फिल्म के सभी एक्टरस ने अच्थी परफार्म किया है। झलकारी बाई का किरदार निभाने वाली अंकिता लोखंडे ने भी अच्छा अभिनय किया और अपनी पहली फिल्म में उनकी प्रबल मौजदूगी दर्ज करवाई है। पेशबा बने सुरेश ओबेरॉय, राजगुरु के किरदार में कुलभूषण खरबंदा, गौस बाबा के किरदार में डैनी डेंगजोंग्पा, सदाशिव की भूमिका मेंमोहम्मद जीशान अयूब और जिस्सू सेनगुप्ता ने शानदार अभिनय से हमेशा की तरह प्रभावित किया है। कुल मिलाकर कंगना का निर्देशन भी सफल रहा। यह फिल्म उनके जीवन की सबसे बड़ी फिल्म है औऱ बाकी कहानियों से अलग इसने एक अलग छाप छोड़ी है।