लंबे समय से साउथ दिल्ली एमसीडी बंदरों को पक़डने के लिए संस्था की खोज में थी। उसकी बहुत सी संस्थाओं से बात चली लेकिन दिल्ली में बंदर पकडना खतरे से खाली न बताते हुए बहुत सी संस्थाओं ने इंकार कर दिया। आखिरकार हरियाणा के रोहतक की एक संस्था “वाइल्ड लाइफ केयर इंडिया” से साउथ दिल्ली एमसीडी ने करार किया है।
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लंबे समय से साउथ दिल्ली एमसीडी बंदरों को पक़डने के लिए संस्था की खोज में थी। उसकी बहुत सी संस्थाओं से बात चली लेकिन दिल्ली में बंदर पकडना खतरे से खाली न बताते हुए बहुत सी संस्थाओं ने इंकार कर दिया। आखिरकार हरियाणा के रोहतक की एक संस्था “वाइल्ड लाइफ केयर इंडिया” से साउथ दिल्ली एमसीडी ने करार किया है।साउथ एमसीडी इसके लिए विज्ञापनों के जरिए लाखों रुपये खर्च कर चुका था लेकिन फिर भी कोई संस्था बंदरों को पक़डने के लिए राजी हो ही नहीं रही थी। बंदर पकडने वाले दिल्ली में बंदर पकडने से सिर्फ खतरे की वजह से तैयार नहीं थे बल्कि उनका कहना है कि यहां पशु अत्याचार के खिलाफ बहुत सी संस्थाएं काम करती हैं और स्थानीय लोग भी उनके काम में बाधा पहुंचाते हैं। संस्थाएं तो उन्हें जेल तक में बंद करवा देती हैं। इसलिए दिल्ली में बंदर पकडना आसान काम नहीं है।आपको बता दें कि बंदरों को पकडने वालों को “मंकी कैचर” के नाम से जाना जाता है। साउथ एमसीडी इसके लिए रोहतक की इस संस्था को देश में सबसे ज्यादा 2400 रुपए प्रती बंदर देगी। संस्था दिल्ली के विभिन्न इलाकों से इन बंदरों को पकडकर आसपास के जंगलों में छोड देगी। करार के अनुसार साउथ एमसीडी इस संस्था के लोगों को अपने आईकार्ड भी जारी करेगी। अपना वाहन भी देगी और जिस भी इलाके में ये बंदर पकड रहे होगों वहां की स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी भी दी जाएगी। मंकी कैचर के चोट लगने पर उसका मुफ्त ईलाज भी कराया जाएगा।टीम ने मांग की है कि उसके लोगों को एमसीडी का आई-कार्ड उपलब्ध कराया जाए, ताकि किसी प्रकार की समस्या आड़े न आए। यह भी समझौता हुआ है कि टीम जिस भी इलाके में उत्पाती बंदरों को पकड़ने जाएगी, वहां पुलिस थाने को इसकी जानकारी मुहैया कराई जाएगी, ताकि लोग टीम के साथ गड़बड़ न करें। अगर लोग विरोध करेंगे या कोई एनजीओ अगर टीम को धमकाएगी तो टीम सदस्य जोन के वेटिनरी विभाग के डिप्टी डायरेक्टर को तुरंत सूचित करेंगे, जिसके बाद उनकी सुरक्षा की कवायद की जाएगी। बंदर पकड़ने का भुगतान एक माह के अंदर कर दिया जाएगा। बंदर पकड़ने के दौरान अगर टीम मेंबर घायल हुआ तो उसका मुफ्त इलाज करवाया जाएगा।
साउथ एमसीडी इसके लिए विज्ञापनों के जरिए लाखों रुपये खर्च कर चुका था लेकिन फिर भी कोई संस्था बंदरों को पक़डने के लिए राजी हो ही नहीं रही थी। बंदर पकडने वाले दिल्ली में बंदर पकडने से सिर्फ खतरे की वजह से तैयार नहीं थे बल्कि उनका कहना है कि यहां पशु अत्याचार के खिलाफ बहुत सी संस्थाएं काम करती हैं और स्थानीय लोग भी उनके काम में बाधा पहुंचाते हैं। संस्थाएं तो उन्हें जेल तक में बंद करवा देती हैं। इसलिए दिल्ली में बंदर पकडना आसान काम नहीं है।
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