अजय चौधरी

जैसे जैसे युवा आबादी बढ़ रही है। ऐसे ऐसे पारंपरिक वोटों के आधार पर चलने वाली पार्टियां अपने ही गढ़ में धीरे धीरे पिछड़ती जा रही हैं। क्योकिं अब वो उनके पूर्वजों के नाम पर उन्हें वोट नहीं देना चाहते। युवा मुद्दों की बात चाहते हैं और उन्हें अब किसी चहरे में क्रांति नहीं दिखाई देती। केजरीवाल और कन्हैया जैसे चहरों से युवाओं को काफी उम्मीद थी। लेकिन वो जानते हैं कि इस राजनीति में आकर सब ऐसे ही हो जाते हैं। इसलिए उनके विरोध का सबसे अच्छा विकल्प अब नोटा ही बचा है।
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वो जानते हैं कि नोटा को वोट देने से कोई प्रत्याशी नहीं जीतेगा, कुछ लोग उनका मत जानकर कहते हैं कि तुम्हारी वोट बर्बाद हो जाएगी या तो जिताओ या हराओ। लेकिन वो फिर भी नोटा दबा अपनी आवाज नेताओं तक पहुचाँना चाहते हैं कि वो आप में से किसी को वोट देने के योग्य नहीं मानते। मेरा मानना है कि नोटा पर मतप्रतिशत बढ़ने से देश की संसद पर इसे शक्तियां प्रदान करने का दबाव निश्चित ही बढ़ेगा, जिससे नोटा पर पड़ने वाली वोट बर्बाद नहीं जाएगी।
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