लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच तनाव का माहौल बना हुआ है। दरअसल, पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रैली के दौरान हुई हिंसा के दौरान ईश्वर चंद्र विद्या सागर की प्रतिमा को भी नुकसान पहुंचा है। इतना ही नहीं, ईश्वर चंद्र विद्यासागर कॉलेज में भी तोड़फोड़ हुई।
इस मामले को लेकर बीजेपी आरोप लगा रही है कि यह तोड़फोड़ टीएमसी समर्थक छात्रों ने की है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने ट्विटर हैंडल पर तस्वीर बदलकर ईश्वर चंद्र विद्यासागर की तस्वीर लगा दी है। उन्होंने लिखा है कि बीजेपी वाले शायद नहीं जानते हैं कि विद्यासागर कौन हैं… आइए जानते हैं कि भारतीय इतिहास में विद्यासागर का क्या स्थान है.
भारतीय इतिहास में ईश्वर चंद्र विद्यासागर को शिक्षक, फिलॉसोफर और समाज सुधारक जैसे कई रूपों में याद किया जाता है। उनके बारे में कमोबेश भारत के सभी बोर्ड के किताबों में प्राइमरी की पढ़ाई के दौरान ही बताया जाता है। ताकि उनके आदर्शों का प्रभाव बचपन से ही बच्चों के मन में पड़े। उनका जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट (सड़क किनारे लगे लाइट) के नीचे बैठकर की है, क्योंकि उनका परिवार गैस या दूसरी कोई लाइट खरीद नहीं सकता था, लेकिन उन्होंने कम सुविधाओं में ऐसी बढ़ाई की जो आज मिसाल है।
शुरुआती पढ़ाई के बाद 1829 में वे कोलकाता के संस्कृत कॉलेज में पढ़ने आए। यहां 1839 में एक प्रतियोगिता में उनके तेज बुद्धि को देखते हुए उन्हें विद्यासागर उपनाम दिया गया। साल 1941 तक करीब 12 साल तक अध्ययन के बाद वे तब कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। फिर वह इसी कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए। उनके कार्यकाल के दौरान कॉलेज सुधार का स्थान बन गया था। इस दौरान उन्होंने बंगाली वर्णमाला में सुधार किए।
विधवा विवाह एक्ट को लाने में अहम भूमिका
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो, विधवा विवाह कानून में उनकी भूमिका भी काफी अहम मानी जाती है। बताया जाता है कि उनके लगातार दबाव के कारण ही ब्रिटिश सरकार यह एक्ट बनाने के लिए विवश हुई थी। इस कानून के लिए शुरुआत में उन्होंने अकेले ही मुहिम चलाई थी, लेकिन देखते ही देखते ही उनके साथ हजारों और लोग भी जुड़ते गए। विद्यासागर को मिलते इस भारी समर्थन से सरकार मुश्किल में फंस गई। उनकी कोशिश का ही नतीजा रहा कि रूढ़ीवादी हिन्दू समाज के विरोध के बावजूद भी सरकार ने 1857 में विधवा विवाह एक्ट लागू किया।
बेटियों की शिक्षा के लिए उठाए कई कदम
विद्यासागर बंगाली पुनर्जागरण के प्रणेताओं में से एक थे। उनके प्रमुख उल्लेखनीय कामों में लड़कियों की पढ़ाई के लिए उठाए गए कदम अहम है। अपने पूरे जीवन में कई संस्थान खोलने वाले ईश्वर चंद्र आमरण प्रगतिशील समाज बनाने की कोशिश करते रहे और रूढ़ियों से लड़ते रहे।
जाति-पाति का करते थे जबर्दस्त विरोध
19वीं सदी में ही ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने जाति-पाति का पुरुजोर विरोध करना शुरू कर दिया था। उन्हें मालूम था भारत गुलाम है और प्रतिगामी कदम उसकी दासता को और लंबे समय तक खींचेंगे।