पिछले साल बॉलीवुड में मीटू अभियान ने खूब धूम मचाई थी। मीटू अभियान के तहत महिलाओं ने वर्क प्लेस पर अपने साथ होने वाले यौन शोषण के मामलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी। महिलाओं ने मीटू सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाया था, जहां महिलाओं ने संबंधित व्यक्ति को टैग करते हुए अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में बताया था।
मीटू की आंधी थमने के बाद अब इस साल मेनटू (Mentoo) भी अभियान शुरू हो गया है। खबरों की माने तो 18 मई को दिल्ली के इंडिया गेट पर पुरुषों अधिकारों के लिए काम करने वाले कुछ संगठनों ने एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली में हुए इस प्रदर्शन में पुरुषों के साथ होने वाले शोषण, उन पर लगने वाले झूठे आरोपों के निदान और पुरुष आयोग बनाने की मांग की।
Men Too अभियान का नाम भले ही मीटू से मिलता-जुलता हो, लेकिन इसकी अपनी अलग ही मांगे और वजह है। महिलाओं के अलावा, पुरुषों पर लगने वाले यौन शोषण के गलत आरोपों का मुद्दा पहले भी उठता रहा है लेकिन इस अभियान की शुरुआत अभिनेता और गायक करण ओबरॉय पर लगे रेप के आरोपों के बाद हुई। करण ओबरॉय पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया है। इस मामले की जांच चल रही है।
बता दे, हाल ही में कोर्ट ने करण ओबरॉय की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। Mentoo अभियान में करण ओबरॉय का समर्थन किया गया है। वही, मेनटू अभियान से पुरुषों की मदद के लिए काम कर रहे कुछ संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता जुड़े हैं।
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बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सामाजिक कार्यकर्ता बरखा त्रेहन इस अभियान की ज़रूरत के बारे में बताती हैं। वह कहती हैं, ”हमारी लड़ाई उन क़ानूनों के ख़िलाफ़ है, जो एकतरफा हैं। जिनमें सिर्फ महिलाओं की बात को महत्व दिया जाता है और महिलाएं इन क़ानूनों का दुरुपयोग कर रही हैं। जैसे यौन उत्पीड़न, रेप और दहेज जैसे क़ानूनों का अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल होता है। इन मामलों में फंसने के बाद न सिर्फ समाज में पुरुष के सम्मान को चोट पहुंचती हैं बल्कि कई सालों की क़ानूनी लड़ाई में वो मानसिक पीड़ा से भी गुजरता है। अगर वो निर्दोष साबित होता है तो उसके समय, पैसे और मानहानि की भरपाई नहीं हो सकती।”
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वही, इस अभियान का समर्थन करने वाले मानते हैं कि इन क़ानूनों में पुरुषों की कोई सुनवाई नहीं है। आरोप लगते ही उनका मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है। पुलिस उनकी बात पर भरोसा नहीं करती और न ही उनके पास ऐसी कोई जगह है जहां से वो मदद ले सकें।
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