लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार के लिए कई नई चुनौतियां उभरकर सामने आ रही है। देश में अर्थव्यवस्था को लेकर लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है। सांख्यिकी विभाग ने शुक्रवार को विकास दर के आंकड़े जारी किए हैं।
दरअसल, वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में देश की जीडीपी दर घटकर 5.8 फीसदी तक पहुंच गई है। इससे पहले दिसंबर 2018 तिमाही में यह 6.6 फीसदी थी। वहीं, ज्यादातर अर्थशास्त्री मार्च 2019 तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ रेट के 6.3 फीसदी रहने का अनुमान लगा रहे थे। वही, मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो, भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ चीन से कम रह गई है। मार्च 2019 तिमाही में चीन की आर्थिक ग्रोथ 6.4 फीसदी थी। CSO के मुताबिक, रियल या इनफ्लेशन एडजस्ट करने के बाद फिस्कल ईयर 2018-19 में जीडीपी की ग्रोथ 6.8 फीसदी रही है। पिछले साल जीडीपी की ग्रोथ रेट 7.2 फीसदी थी।
वित्त वर्ष 2013-14 के बाद पहली बार भारतीय की सालाना जीडीपी ग्रोथ घटकर इस स्तर पर आई है। मार्च तिमाही के जीडीपी डाटा की बात करें तो यह अप्रैल-जून 2018 के बाद सबसे कम है।
बता दे पिछले 9 महीने में देश में कृषि, उद्योग और मैनुफैक्चरिंग जैसे अहम सेक्टर में मंदी के चलते जीडीपी दर में यह गिरावट दर्ज की गई है। वही, पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया है। ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की आर्थिक ग्रोथ को पटरी पर लाने की हैं।
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ये है वजह
देश की अर्थव्यवस्था गिरने की बात करे तो इसकी वजह अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव को माना जा रहा है। बता दे दोनों देशों में एक-दूसरे के यहां से आने वाले माल पर उन्होंने टैरिफ बढ़ा दिए हैं। नई एनडीए सरकार के सामने कन्ज्यूमर डिमांड तेजी से बढ़ाने की चुनौती है, जिससे ग्रोथ में जान डाली जा सके।
उसे प्राइवेट इन्वेस्टमेंट बढ़ाने के लिए ज्यादा स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स भी करने होंगे। ग्राहकों की मांग में गिरावट और निवेश में सुस्ती के कारण वित्त वर्ष 2019 की दूसरी छमाही में ग्रोथ सुस्त होने की आशंका पहले से थी। आईआईपी वित्त वर्ष 2019 में 3.6 प्रतिशत ही बढ़ा और पूरे साल में मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ 3.5 प्रतिशत की रही।
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ऑटोमोबाइल सेल्स, रेल फ्रेट, पेट्रोलियम प्रॉडक्ट कंजम्प्शन, डोमेस्टिक एयर ट्रैफिक और इंपोर्ट्स (नॉन-ऑइल, नॉन-गोल्ड, नॉन-सिल्वर, नॉन-प्रेशस और सेमी-प्रेशस स्टोन) जैसे कई दूसरे इंडिकेटर्स भी कंजम्पशन, खासतौर से प्राइवेट कंजम्प्शन में सुस्ती का पता दे रहे हैं।
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