कैफे कॉफी डे के फाउंडर वीजी सिद्धार्थ का शव आज यानी बुधवार को नेत्रवती नदी किनारे पर मिला। दरअसल वीजी सिद्धार्थ कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु जाने के दौरान सोमवार रात से लापता हुए थे और उससे पहले उन्होंने एक लेटर में लिखा था कि वह एक उद्यमी के तौर पर असफल रहे। हालांकि, उनके सफर पर नजर डालें तो इसमें सफलताओं की कमी नहीं है। आइये मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर बताते है उनके जीवन का सफर…
ऐसे शुरू किया था अपना करियर
भारत के सफल कारोबारियों में से एक वीजी सिद्धार्थ है जो अपने नाम नहीं बल्कि अपने काम के लिए अच्छी पहचान रखते है। उन्होंने कभी 5 लाख रुपये से अपने सफर की शुरुआत की थी और आज वह भारत के ‘कॉफी किंग’ कहे जाते हैं। 1 अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति के मालिक सिद्धार्थ का कारोबारी सफर बेहद रोचक और प्रेरक है।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो वीजी सिद्धार्थ ऐसे परिवार में जन्मे थे जो लंबे समय से कॉफी उत्पादन से जुड़ा हुआ था। मैंगलुरु यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स में मास्टर डिग्री लेने वाले सिद्धार्थ चाहते तो विरासत में मिली खेती से आराम से जिंदगी गुजार सकते थे। लेकिन युवा सिद्धार्थ काफी महत्वाकांक्षी थे और अपने दम पर कुछ करना चाहते थे।
उन्होंने महज 21 साल की उम्र में अपने पिता से मुंबई जाकर बिज़नेस करने कि बात कही थी। वहीं, उनके पिता ने उन्हें 5 लाख रुपये देने के साथ यह छूट भी दी कि यदि वह असफल हो जाएं तो वापस आकर परिवार का कारोबार संभाल सकते हैं। सिद्धार्थ ने 3 लाख रुपये में जमीन खरीदी और 2 लाख रुपये बैंक में जमा कर लिए। इसके बाद वह मुंबई आ गए और जेएम फाइनैंशल सर्विसेज (अब जेएम मॉर्गन स्टैनली) में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम की शुरुआत की। यहां वह 2 साल रहे और इस दौरान उन्होंने शेयर बाजार की अच्छी समझ हासिल कर ली।
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ऐसे शुरू किया अपना काम
नौकरी अच्छी चलने के बावजूद भी सिद्धार्थ अपना कारोबार शुरू करना चाहते थे। वह नौकरी छोड़कर बेंगलुरु वापस आ गए और बचे हुए 2 लाख रुपये से वित्तीय कंपनी खोलने का फैसला किया। उन्होंने सिवान सिक्यॉरिटीज के साथ अपने सपने को साकार किया। बाद में यह कंपनी साल 2000 में way2wealth securities ltd बनी। सिद्धार्थ इसे बेहद सफल निवेश बैंकिंग और स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी बनाने में सफल रहे।
काफी समय तक फाइनैंशल सर्विसेज में अपनी किस्मत आजमाने के बाद सिद्धार्थ ने 1996 में कॉफी कैफे डे की शुरुआत की। उनका यह कारोबार बेहद सफल रहा और इसने भारत में कॉफी के बिजनस को नई दिशा दी। कंपनी के पास आज 1,750 कैफे हैं। भारत के अलावा ऑस्ट्रिया, कराची, दुबई और चेक रिपब्लिक में भी कंपनी के आउटलेट हैं। इनमें 5 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिला है।
वहीं, सीसीडी ऑर्गनाइज्ड कैफे सेगमेंट की मार्केट लीडर है। इसका सीधा मुकाबला टाटा ग्रुप की स्टारबक्स के अलावा अपेक्षाकृत छोटी कैफे चेंस बरिस्ता और कोस्टा कॉफी से है। स्टारबक्स के भारत में 146 स्टोर हैं। हालांकि, पिछले दो साल में सीसीडी के विस्तार की रफ्तार घटी है। कर्ज तो बढ़ा ही है, चायोस और चाय पॉइंट सरीखी टी कैफे से भी चुनौती मिल रही है। सीसीडी ने वित्त वर्ष 2018 में 90 स्मॉल फॉरमेट स्टोर बंद किए थे।
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पिछले महीने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोका-कोला तेजी से बढ़ते कैफे सेगमेंट में पांव जमाने के लिए सीसीडी का अधिग्रहण चाहती है। इस संभावित खरीदारी का मामला अटलांटा में कोका-कोला के हेडक्वॉर्टर से देखा जा रहा था। कंपनी की ग्लोबल टीम के अधिकारी सीसीडी के मैनेजमेंट से बातचीत कर रही थी। बेवरेज कंपनी कोका-कोला भारत की सबसे बड़ी कॉफी चेन कैफे कॉफी डे में एक बड़ा हिस्सा खरीदने के लिए बातचीत कर रही थी।
सीसीडी के अलावा उन्होंने माइंड्री, ग्लोबल टेक्नॉलजी वेचर्स लिमिटेड, डार्क फॉरेस्ट फर्नीचर कंपनी, SICAL लॉजिलिस्टिक्स में अच्छा निवेश किया था। उन्होंने 3000 एकड़ जमीन पर केले के पेड़ लगाए और केले का निर्यात भी करने लगे।
माइंडट्री में सिद्धार्थ की करीब 21 फीसदी हिस्सेदारी थी, उन्होंने अपने शेयर पिछले दिनों एलऐंडटी को बेच दिए। इस सौदे से उन्हें करीब 2,858 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था। वह करीब एक दशक से इस कंपनी में निवेश कर रहे थे और 18 मार्च 2019 को उन्होंने एलऐंडटी से 3,269 करोड़ रुपये का सौदा किया।
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