बीजेपी की दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का दिल रुकने के कारण मंगलवार रात दिल्ली एम्स में निधन हो गया। दिल्ली के लोधी रोड श्मशान घाट पर आज दोपहर तीन बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश दुनिया के तमाम नेताओं ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया।
सुषमा सवराज काफी मिलनसार व्यक्तित्व रखने वाली कद्दावर नेता थी, जिन्होंने केवल एक ट्वीट पर ही जनता की फरियाद को सुना। पासपोर्ट का मामला हो या विदेश में फंसे भारतीय को लाना हो सुषमा स्वराज ने हर काम के लिए अपनी जी-जान लगा दी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर बताते है, उनके राजनीतिक सफर के बारे में…
साल 1970 में पूर्व विदेश मंत्री ने अपने जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर की थी। इसके बाद उन्होंने बीजेपी को ज्वाइन किया। 1977 में सुषमा हरियाणा की अंबाला कंट सीट से विधायक रही। इसके बाद फिर 1987 से 1990 तक फिर विधायक रहीं।
1977 में जनता पार्टी सरकार में मुख्यमंत्री देवी लाल की कैबिनेट में वे मंत्री बनीं। महज 24 साल की उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने वाली वो देश की पहली महिला थीं। साल 1979 महज 27 साल की उम्र में जनता पार्टी की हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष बनकर उन्होंने अपनी सांगठनिक शक्ति का परिचय दे दिया था। 1987 से 90 के दौरान बीजेपी-लोकदल की गठबंधन सरकार में सुषमा स्वराज हरियाणा में शिक्षा मंत्री रहीं।
1990 में हरियाणा की राजनीति से निकली सुषमा को राज्यसभा के लिए चुना गया। 1996 में उन्होंने दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव जीता। 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री रहीं। मार्च 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में एक बार फिर दक्षिणी दिल्ली से जीत कर पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वाजपेयी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सुषमा एक बार फिर सूचना प्रसारण मंत्री बनीं। सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर फिल्म निर्माण को व्यवसाय का दर्जा दिलाना उनका अहम फैसला था। इस फैसले से इंडियन फिल्म इंडस्ट्री बैंक कर्ज लेने के योग्य बनी।
वहीं, सितंबर 1999 में बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दक्षिण भारत में बेल्लारी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में उतारा। यह कांग्रेस की पारंपरिक सीट थी जो पहले चुनाव से ही उनके पास थी। सुषमा स्वराज ने बेहद मजबूती से यह चुनाव लड़े लेकिन उन्हें महज सात प्रतिशत वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
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अप्रैल 2000 में वे एक बार फिर उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य बनकर दिल्ली पहुंचीं। लेकिन जब उत्तर प्रदेश का बंटवारा हुआ और उत्तराखंड बना तो उन्हें उत्तराखंड भेज दिया गया। उन्हें एक बार फिर सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई जिसे उन्होंने जनवरी 2003 तक निभाया। इसके बाद उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों में मंत्री बनाया गया और साल 2004 में एनडीए की सरकार जाने तक इस पद पर बनी रहीं।
अप्रैल 2006 में उन्हें तीसरे कार्यकाल के लिए मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुना गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मध्य प्रदेश के विदिशा से किस्मत आजमाई और उन्हें सफलता भी मिली। इसके बाद उन्हें लोकसभा में विपक्ष की नेता की जिम्मेदारी दी गई। 2014 में चुनाव तक वे इस पद पर बनी रहीं।
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2014 में हुए ऐतिहासिक चुनाव में उन्होंने एक बार फिर विदिशा से जीत दर्ज की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री बनाया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि सुषमा स्वराज बीजेपी की पहली महिला प्रवक्ता भी रही हैं। उन्होंने 2019 में स्वास्थ्य कारण बताकर लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया।
वहीं, सुषमा स्वराज के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उन्होंने कौशल स्वराज से 1975 में शादी की। उनके पति कौशल स्वराज भी राजनीति से जुड़े रहे हैं। कौशल स्वराज राज्यसभा के सदस्य रहे और इसके बाद मिजोरम के राज्यपाल भी रहे। कौशल स्वराज के नाम सबसे कम उम्र में राज्यपाल बनने का रिकॉर्ड है, वे जब राज्यपाल बने तब उनकी उम्र मात्र 37 साल थी। सुषमा स्वराज और कौशल स्वराज की बेटी भी है, जिनका नाम बांसुरी स्वराज है।