हाल ही में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंत्रियों से जुड़े एक कानून में बड़ा बदलाव किया है। दरअसल, सीएम योगी ने राज्य से मंत्रियों के वेतन, भत्ते और विविध अधिनियम 1981 को खत्म करने का फैसला सुनाया था। उनके इस फैसले के बाद काफी विवाद भी हुआ। बता दें इस कानून के तहत राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरा जा रहा था। लेकिन अब मंत्री और मुख्यमंत्री को अपनी पूंजी में से अपने इनकम टैक्स का भुगतान करना होगा।
यूपी ही एक अकेला ऐसा राज्य नही है, जहां सरकार द्वारा ही मुख्यमंत्री और मंत्रियों का टैक्स भरा जाता हो। यूपी के अलावा पांच अन्य राज्य भी हैं, जिनमें सीएम और मंत्रियों के टैक्स का बोझ सरकारी खजाने पर है। इसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड को जब 2000 में यूपी से अलग किया गया तबसे वहां यह कानून चलता आ रहा है। हालांकि, उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सोमवार को संकेत दिया कि वह इस कानून को खत्म करने पर विचार करेंगे।
यूपी में 4 दशक पुराना कानून खत्म, अब सीएम और मंत्री अपनी सैलरी से भरेंगे इनकम टैक्स
वहीं, 1966 से हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में यूपी की तरह ही मुख्यमंत्री और मंत्रियों का इनकम टैक्स सरकार द्वारा ही भरा जाता है। इसमें सीएम, मंत्री, असेंबली स्पीकर, डेप्युटी स्पीकर और विपक्ष का जो नेता होगा उसके टैक्स का भार भी राज्य सरकार पर होता है।
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मध्यप्रदेश में 1 अप्रैल 1994 से मंत्रियों के साथ-साथ संसदीय सचिव का टैक्स भार राज्य कोष पर है। ईस्ट पंजाब मिनिस्टर सैलरीज ऐक्ट, 1947 के अंतर्गत पंजाब में भी ऐसा होता था। लेकिन मार्च 2018 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे खत्म कर दिया था।
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