दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीते शुक्रवार को मूलचंद बस्ती के निवासियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है, जो कि राजघाट में यमुना बाढ़ के मैदान में स्थित है। दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने अगस्त में बस्ती के लोगों को जल्द से जल्द यह जगह खाली करने के लिए कहा था। परंतु बस्ती के लोगों ने उनके निर्देशों का पालन नहीं किया।
टीन -झोपड़ी में रहने वाले 19 निवासियों द्वारा एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने अगस्त में बस्ती वालों को धमकी देते हुए बस्ती खाली करने को कहा था और यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी झुग्गियों को बलपूर्वक हटाने की भी धमकी दी थी।
17 अगस्त को अंतिम सुनवाई के दौरान दिल्ली विकास प्राधिकरण की ओर से वरिष्ठ वकील प्रभासहाय कौर ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को एससी के दो फैसलों के विषय में बताया जिन्हें अदालत ने खारिज कर दिया था। प्रभासहाय कौर के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की गई याचिका के रिकॉर्ड पेपर में यह साफ-साफ पता चलता है कि याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उसी संपत्ति के लिए चल रहे मुकदमे को वह हाईकोर्ट में हार गए हैं।
तो वहीं शुक्रवार को न्यायालय ने पाया कि 17 अगस्त को एक आदेश पारित किया गया था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा भौतिक तथ्यों को छुपाने और उनका कारण न बताने के संदर्भ में उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही की जाएगी। जिसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उनके द्वारा कोर्ट को जवाब दिया गया था। परंतु जवाब से जुड़ा हलफनामा नोटरीकृत नहीं था।
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कौर ने एससी को सूचित करते हुए बताया कि डीडीए अधिकारियों व अन्य अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की मांग करते हुए याचिका दायर की गई थी। जिसमें यह दावा किया गया था कि झुग्गियों को हटाने के लिए डीडीए की कार्यवाही अजय माकन और अन्य बनाम यूओआई में एचसी के 2019 के फैसले का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि अजय माकन के मामले के अनुसार झुग्गियों को हटाने से पहले उनका सर्वेक्षण और पुनर्वास किया जाना है।
कौर ने बताया कि अवमानना याचिका में जल्द सुनवाई का आवेदन किया गया था। जिस पर एचसी ने पाया कि इस मामले में भी याचिकाकर्ताओं ने 17 अगस्त को दिए गए आदेश के बारे में खुलासा नहीं किया। जिसके चलते एससी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया।
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