सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूर्व आईएएस अफसर अरुण गोयल के चुनाव आयुक्त बनने संबधी फाईल के बारे में जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि ये इतने कम समय में कैसे हुआ, फाईल इतने सुपरफास्ट तरीके से कैसे भागी? क्यों इस फाईल को 24 घंटे का भी समय प्रधानमंत्री तक पहुंचने में नहीं लगा। कोर्ट ने पूछा है कि आखिर ऐसी क्या जल्दी थी?
अदालत ने कानून मंत्री पर उठाए सवाल उसपर सरकार का जवाब-
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्र के मुताबिक पांच जजों की संविधान पीठ जिसमें जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हरिसिकेश रॉय और सीटी रविकुमार ने इस फाइल को पढ़ा और फिर पूछा कि कानून मंत्री ने किस आधार पर चार पूर्व आईएएस अधिकारियों के नाम की छंटनी इस पद के लिए की थी, जिसे चुनाव आयुक्त के इस खाली पद को भरने के लिए आगे प्रधानमंत्री को भेजा गया था।
इसपर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने अदालत को बताया कि प्रशिक्षण और कार्मिक विभाग (डीओपीटी) द्वारा बनाए गए सिविल सेवकों के डेटाबेस से उन्होंने चार नामों को निकाला था। इसपर अदालत ने पूछा कि कानून मंत्री ने लिस्ट में से इन चार नामों को किस आधार पर लिया था? आपके पास बडी संख्या में वरिष्ठ अधिकारी हैं ऐसे में उन्हें चुनने के क्या मानदंड हैं?
अदालत ने कहा आपने एक दिन में चनुाव आयुक्त कैसे चुन लिया?
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हम केवल चयन प्रक्रिया कैसे हो रही है ये जानना चाह रहे हैं, हम किसी व्यक्ति विशेष के बारे में जानकारी नहीं मांग रहे हैं। हम ये भी देख रहे हैं कि जो व्यक्ति चुना गया है उसका गणित में एक शानदार रिकॉर्ड है वो गोल्ड मेडलिस्ट है।
दरअसल कोर्ट भारत के चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी संस्था हो ऐसी याचिका पर सुनावाई कर रही है। अदालत ने फाइल को एक दिन में मंजूरी देने पर कहा है कि इतनी जल्दबाजी में ये सब क्यों किया गया कि आपने एक दिन में देश के चुनाव आयुक्त का निर्णय ले लिया।
अदालत ने कहा कि हम देख रहे हैं कि इस फाइल को 18 नवंबर को पेश किया था, हमने देखा कि उसी दिन ये फाईल कुछ अधिकारियों पर जाने के बाद प्रधानमंत्री के पास सिफारिश के लिए पहुंच जाती है। हम किसी तरह के टकराव की बात नहीं कर रहे हैं लेकिन हम ये पूछ रहे हैं कि आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी थी? क्योंकि सरकारी कार्यालयों की फाइलें तो अक्सर धीमी गति से चलती हैं।
सरकार ने कहा चुनाव आयुक्त जैसे पदों पर नियुक्ति का फैसला अक्सर इतने समय में ही लिया जाता है-
अदालत ने कहा कि ये पद तो मई महीने में खाली हो गया था फिर इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई कि इतने महीनों से तो फैसला लिया नहीं गया फिर एक दिन में ही फैसला कैसे ले लिया जाता है। एक ही दिन फाइल प्रोसेस में आति है और एक ही दिन में उसे स्वीकृत्ति मिलती है और उसी दिन नियुक्ति भी हो जाती है, ये तो 24 घंटे की भी यात्रा नहीं हुई। आपके द्वारा इस प्रोसेस में किस तरह का मूल्यांकन किया गया ?
इसके जवाब में एजी ने कहा कि सरकार ने इस फैसले में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई है। अगर आपको इस तरह के फैसलों में जवाब जानना है तो फिर हम आपके सामने 2015 लेकर अबतक हुई नियुक्तियों की फाइलें सौंप सकते हैं, आप पाएंगे कि हर बार ऐसे मामले 2-3 दिन के अंदर ही आगे बढ़ गए हैं, अधिकतम इन मामलों में तीन दिनों का ही समय लगा है।
एजी ने बताया कि बताया कि बहुत सारे सार्वजनिक पदों की नियुक्ति में अधिकतर 12 घंटे या 24 घंटे का ही समय लगा है, क्या हम इस प्रोसस में किसी खामी को ढूंढ रहे हैं?
एजी ने कहा कि ऐसे पदों की नियुक्ति प्रक्रिया को गोपनीय रखा जाता है लेकिन इसमें छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है। मामले की सुनवाई से पहले ही मुझसे पूछा गया था कि क्या नियुक्ति के इस प्रोसेस में कोई बाधा है क्या तो मुझे इस,में ऐसा कुछ नहीं मिला न ही इन पदों पर कोई आरक्षण लागू होता है, इसलिए इसे उसके बिना ही किया गया है।
कानून मंत्री पर उठे सवाल के जवाब में ये कहा-
कानून मंत्री के नामों को चुनने की प्रक्रिया के जवाब में एजी ने कहा कि इसमें दो चरण शामिल हैं। पहले चरण में प्रशिक्षण और कार्मिक विभाग (डीओपीटी) के डेटाबेस के आधार पर एक पैनल बनाया गया, फिर देखा गया कि कौन किस समय सेवानिर्वित हो रहा है, उसके लिए कितना कार्यकाल उपलब्ध होगा। सभी अधिकारियों का ये डेटाबेस भी सार्वजनिक रुप से जनता के लिए भी उपलब्ध है।
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इसमें बैच भी एक मानदंड है और बैच के आधार पर जो वरिष्ठ है और उनमें से, जिनके पास शायद आवश्यक प्रोफ़ाइल और उपयुक्तता है। उनमें से ये भी देखा जाता है कि इनमें से किसका कार्यकाल लंबा रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने चुनाव आयुक्त के कार्यकाल के नियम के बारे में कानून की धज्जियां उड़ाई हैं-
अदालात ने इसपर कहा कि सरकार चुनाव आयुक्तों के कार्याकाल के मामले में भी गलती कर रही है। कोर्ट के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991 में कहा गया है कि चुनाव आयोग और सीईसी “छह साल तक पद पर रहेंगे”। लेकिन सरकार यहां जिन अधिकारियों को इस पद के लिए चुन रही है उनके पास छह साल की सेवा बाकि नहीं है। ऐसा कर सरकार कानून की धज्जियां उड़ा रही है।
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त दोनों को अलग अलग छह साल का कार्याकाल देने के बजाए अब एक उम्मीदवार को दोनों पदों का छह साल का कार्यकाल दिया जा रहा है, जोकि कानून के विरुद्ध है।
इसपर एजी ने कहा कि सरकार कानून का पालन कर रही है। ये समय के आधार पर होता है जो भी दो चुनाव आयुक्तों में से सिनियर है, इनमें से जो भी कार्यालय में 65 साल की उम्र तक रहता है उसे अलग अलग- छह साल के पद पर जाने पर वहीं नेतृत्व करेगा। ये ऐसा पद है जहां अधिकारी 65 के बाद भी इस पद पर बना रहता है।
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