अगर आप कोई शुभ कार्य करने जा रहे हैं और उस समय कोई छींक दें या फिर कब-कब छींक आना अशुभ होता है या फिर कब-कब इसके आने का कोई महत्व नहीं होता है। ये सब आज हम आपको बता रहे हैं। छींक के बारे में संपूर्ण और सटीक जानकारी आज आपको हम दे रहे हैं, साथ ही बता रहे हैं कि दिन के चार प्रहरों में से किस प्रहर में दिशानुसार छींक आने के क्या महत्व हैं और ये कैसा फल देती है।
शुभ कार्य करने से पहले गाय का छींकना-
“छींक” को संस्कृत में “तुति” कहते हैं। शकुन शास्त्रियों ने इसको अत्यन्त महत्त्व दिया है। शकुन शास्त्र के अनुसार छींक हमेशा अशुभ फल दिया करती है। अपवाद रूप में ही जाते समय अथवा शुभ कार्य करते समय गाय का छींकना घोर अशुभ का सूचक होता है ।
छींक कब-कब होती है निरर्थक-
प्रवास के समय पहले एक व्यक्ति छींके फिर दूसरा भी कोई अन्य तो ऐसी छींक निरर्थक होती है । वृद्ध जन की, बालक की कफ से सर्दी जुकाम से हुई छींक निरर्थक होती है।
सोने से पहले की छींक के क्या हैं मायने-
सोने के पहले भी छींक अशुभ होती है, भोजन के पहले छींक भी अशुभ रहती है किन्तु भोजन के अंत में होने वाली छींक अगले दिन या अगली बार मिष्ठान्न की प्राप्ति करती है ।
शास्त्रों में छींक के हैं दिशानुसार निर्णय-
कहते हैं कोई भी शकुन होने से पहले छींक हो जाय तो शकुन के शुभ होने के बाद छींक हो जाय तो उनके शुभ होने का क्या अर्थ ? अर्थात् एक अकेली छींक सभी शकुनों को उपसर्ग की तरह बोधित करती है। शास्त्रकारों ने छींक का सूक्ष्म विश्लेषण करके इसके दिशानुसार निर्णय किए हैं और दिन के विभाग के अनुसार इसके शुभ-अशुभ फल बताएं हैं। दिशा का निर्णय उस व्यक्ति की स्थिति के अनुसार किया जायगा, जिसे छींक हुई है या जो किसी कार्य विशेष को सोच रहा है अथवा प्रारम्भ कर रहा है ।
प्रथम प्रहर में होने वाली छींक के प्रभाव-
दिन के प्रथम प्रहर में होने वाली छींक उत्तर की तरफ हो तो शत्रु भय और पश्चिम की ओर होने पर दूर गमन कराती है, शेष दिया-विदिशा में उत्तम फल देती है।
दूसरे प्रहर में होने वाली छींक के प्रभाव-
दूसरे प्रहर में होने वाली छींक ईशान कोण में विनाश की, दक्षिण में मृत्यु भय की, उत्तर में शत्रु संगति की सूचना देती है। शेष दिशा-विदिशा में शुभ फल देती है।
तीसरे प्रहर में होने वाली छींक के प्रभाव-
तीसरे प्रहर में होने वाली छींक ईशान कोण में होने पर व्यधि, दक्षिण दिशा में विनाश और पश्चिम दिशा में कलह की सूचना देती है, शेष दिशा विदिशा में उत्तम फल देती है।
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चौथे प्रहर में होने वाली छींक के प्रभाव-
चौथे प्रहर के पूर्व दिशा में अग्नि भय, आग्नेय कोण में भी अग्निभय, दक्षिण में कलह, पश्चिम में चोरी, वायव्य कोण में दूर प्रवास की सूचक होती है, शेष दिशाओं में अनुकूल फल की सूचना देती है । इस विवरण में उन्हीं दिशाओं और कोणों का उल्लेख किया गया है। जिनमें होने वाली छींक अशुभ सूचना देती है, शेष में होने वाली छींक शुभ फल ही प्रदान करती है रात्रि के प्रहरों का भी यही विभाजन और यही फल होता है।