दिल्ली में बारापुला फ्लाईओवर के फेज तीन का काम जल्द ही किया जाएगा। पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों के अनुसार, वो इस सप्ताह इसके तीसरे चरण का काम जल्द पूरा कर देंगे। इसमें 690 मीटर के टुकडे का निर्माण कार्य किया जाना है।
अक्टूबर 2017 में पूरा होना था काम-
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, भूमि अधिग्रहण न हो पाने के कारण इसके तीसरे चरण का काम कई सालों से रुका हुआ था। इसके तीसरे चरण का काम वैसे तो अप्रैल 2015 में शुरु हो गया था, लेकिन जमीन का मामला अटक जाने के कारण समय रहते इसे पूरा नहीं किया गया। हालांकि इस फ्लाईओवर का काम अक्टूबर 2017 में हो जाना था।
सिग्नल फ्री होगा सफर-
बारापुला फ्लाईओवर का ये हिस्सा मयूर विहार और एम्स के बीच सिग्नल-फ्री सफर शुरु करने के लिए है, इससे दिल्ली की इन दो महत्वपूर्ण जगहों की आपस में दूरी कम होगी।
कब से शुरु हो जाएगा निर्माण कार्य-
इस परियोजना से संबधित एक अधिकारी ने अखबार को जानकारी दी है, कि तीसरे हिस्से के निर्माण से संबधित जरुरी सामग्री निर्माण स्थल पर पहुंच गई है जिससे हम दो से तीन दिनों में यहां काम शुरु कर देंगे।
एम्स और पूर्वी दिल्ली की दूरी होगी कम-
बारापुला फ्लाईओवर के इस हिस्से के बन जाने के बाद दिल्ली के सराय काले खां और मयूर विहार फेज वन के बीच बिना किसी रोकटोक के बेहतर कनेक्टिविटी हो पाएगी। ये कोरिडोर बारापुला फ्लाईओवर के फेज़ एक में जाकर मिलेगा और बिना किसी रेड लाईट के पूर्वी दिल्ली को एम्स से सीधे जोड़ेगा।
कब तक पूरा हो जाएगा निर्माण कार्य-
अधिकारियों को उम्मीद है कि वो इस परियोजना का निर्माण अगले साल तक पूरा कर लेंगे। पहले जब इसका निर्माण कार्य शुरु किया गया था तब इसके सामने कुछ निजी ज़मीनें आ रही थी तब पीडब्ल्यूडी को अपना काम रोकना पड़ा था और इस भूमि को अधिग्रहण करने की प्रक्रिया को शुरु करना पड़ा था, जिसमें काफी समय लग गया।
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अधिग्रहण की प्रक्रिया-
2017 में पीडब्ल्यूडी के सामने दो प्लॉट भी आ रहे थे, जिनके अधिग्रहण के लिए विभाग ने दिल्ली सरकार के भूमि एवं भवन विभाग को खत लिखकर अवगत कराया था। भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया “भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013” के अंतर्गत करना सरकारी नियमों के अनुसार अनिवार्य है। दिल्ली सरकार ने इस साल की शुरुआत में पीडब्ल्यूडी को छह एकड़ जमीन सौंपी थी।
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निर्माण कंपनी ने इस कॉरिडोर को सहारा देने के लिए यमुना नदी किनारे अधिक मेहनत करनी होगी। क्योंकि यमुना की नदी की भूमि रेतीली और दलदली है इसलिए यहां निर्माण कठिन है, इसके लिए विभाग को कंक्रीट के बक्से बनाने होंगे जिसमें एक साल का समय उन्हें लग जाएगा जिसके बाद इस फ्लाईओवर के तीसरे हिस्से को आम जनता को सौंपा जा सकता है।