kalawa rules in sanatan dharma: हिंदुओं के त्यौहार किसी भी देश और धर्म के त्यौहारों से भिन्न होते है। हर त्यौहार के पीछे एक अनोखी और विश्वसनीय कहानी जुड़ी हुई है। ऐसे ही हम अपने माथे पर टीका लगाते है। जनेऊ पहनते है और हाथ में कलावा धारण करते है। इसके पीछे का कारण हमारे पौराणिक धर्म और आस्था के केंद्र में माने जाने वाले पुरातन मंदिरों में भी देखने को मिलते हैं। हमारे हाथ से लेकर माथे पर टीका लगाने तक, हर एक बात का जुड़ाव विज्ञान से जुड़ा हुआ है। लेकिन, बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो ये जानते हैं कि आखिर हम अपने हाथ में कलावा क्यों पहनते हैं और इसे धारण करने की आखिरी वजह क्या है। आज हम अपने इस आर्टिकल के जरिए जानेंगे कि इसके पीछे की मान्यता और विज्ञान क्या कहता है।
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ब्रहमा-विण्णु की प्राप्ती-
हम अपने हाथ में कलावा लाल या पीले रंग का पहनते हैं। इसके पीछे की वजह इन दोनों रंगों का शुभ माना जाना रहा है। यह दोनों रंग पवित्रता और शुद्धता की गवाई देते हैं। हालांकि, बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो जानते हैं कि इसे धारण करने का असल तरीका क्या है और इसे क्यों पहना जाता है। दरअसल, कलावे को रक्षा सूत्र कहा जाता है। इसे धारण करने से ब्रहमा व विष्णु भगवान का आशीर्वाद सीधे तौर पर मिल जाता है। इन दोनों के नाम मात्र से हर किसी के दुख-दर्द दूर हो जाते है।
नाकारात्म ऊर्जा को करते है दूर-
हाथ में कलावा बांधने से नाकारत्म ऊर्जा दूर होती है। इसके साथ ही साकारात्म ऊर्जा का नया संचार प्राप्त होता है। हाथ में कलावा धारण करने से कलाई की नशे एक दम अपनी जगह पर ही रहती हैं। अक्सर हम अपने हाथों से कुछ भारी सामान उठा लेते हैं। जिससे हमारे हाथ की नशे कुछ समय के लिए अलग हो जाती है। हालांकि, इसे पहनने से नशे अपनी जगह पर ही बनी रहती है।
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कुवारे लड़कें-लडकियों को इस हाथ में पहनना चाहिए कलावा-
सनातन धर्म के अनुसार कलावे को तीन बार ही लपेट कर हाथ में पहनना चाहिए। इसके पीछे की एक मान्यता भी है। हिंदू धर्म के मुताबिक, ब्रहमा, विष्णू और महेश को ही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता कहा जाता है। इन तीन देवों के इशारे से ही हमारी पृथ्वी का संचार चलता है। हाथ में तीन बार कलावा पहनने से इन तीनों देवों की सीधे प्राप्ती हो जाती है। साथ ही कुवारें लड़के और लड़कियों को दाएं हाथ में कलावा पहनना चाहिए। वहीं विवाहित महिलाओं को बायें हाथ में कलावे को ग्रहण करना चाहिए।