भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत किया।
नया फैसला: गुजारा भत्ता का अधिकार-
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने फैसला सुनाया कि:
- मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को तलाक के बाद भी पति से गुजारा भत्ता मिलेगा
- यह अधिकार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत है
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह दान नहीं, बल्कि एक अधिकार है
1986 के कानून पर टिप्पणी-
कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून से ऊपर नहीं होगा।
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का सफर-
यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए लंबे संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। आइए, इस सफर के कुछ प्रमुख मोड़ों पर नजर डालें:
शाह बानो केस (1985): न्याय की पहली किरण-
- शाह बानो ने पति से गुजारा भत्ता मांगा
- सुप्रीम कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला दिया
- इस फैसले ने व्यापक विवाद खड़ा किया
1986 का कानून: पीछे हटने का प्रयास-
- राजीव गांधी सरकार ने नया कानून बनाया
- मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ते को सीमित किया गया
- कानून को भेदभावपूर्ण माना गया
गूलबाई केस (1963): वैध निकाह की नींव-
- मुस्लिम कानून के तहत वैध शादी के लिए दिशानिर्देश तय किए गए
- मुस्लिम महिलाओं को अवैध या जबरन शादी से बचाने का प्रया
डेनियल लतीफी केस (2001): न्याय की वापसी-
- 1986 के कानून को चुनौती दी गई
- कोर्ट ने शाह बानो फैसले को बरकरार रखा
- मुस्लिम महिलाओं के लिए लंबी अवधि के गुजारा भत्ते का रास्ता खुला
नूर सबा खातून केस (1997): संपत्ति में हक
- मुस्लिम महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा मांगने का अधिकार मिला
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तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला-
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया, जो मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम था।
नए फैसले का महत्व-
बुधवार का फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत करता है:
- तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी
- समानता और सम्मान की दिशा में एक और कदम
- धार्मिक और सामाजिक बाधाओं को दूर करने का प्रयास
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समाज पर प्रभाव-
यह फैसला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक बदलाव भी ला सकता है:
- मुस्लिम समुदाय में महिलाओं की स्थिति में सुधार
- शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि
- समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने की संभावना
चुनौतियां और आगे का रास्ता-
हालांकि यह फैसला एक बड़ी जीत है, लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी बाकी हैं:
- कानून का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना
- सामाजिक और धार्मिक रूढ़िवादिता से निपटना
- महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना
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महिलाओं को मिला अधिकार-
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल उनके कानूनी अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि समाज में उनकी स्थिति को भी सुधारने का प्रयास करता है। हालांकि, वास्तविक बदलाव लाने के लिए कानून के साथ-साथ सामाजिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन की आवश्यकता होगी।