Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इस बार विवाद का केंद्र ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और बॉलीवुड अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत बने हुए हैं। गुरुवार को कंगना रनौत ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का समर्थन करते हुए शंकराचार्य के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शिंदे को विश्वासघाती और देशद्रोही कहकर सबकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।”
शंकराचार्य का विवादित बयान-
दरअसल हाल ही में, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने शिवसेना (यूबीटी) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि, “उद्धव ठाकरे धोखे के शिकार हुए हैं, और इससे कई लोग दुखी हैं। मैंने उनसे कहा है कि जब तक वे फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, तब तक लोगों का दर्द कम नहीं होगा।” उन्होंने यह भी कहा कि “जो धोखा देता है, वह हिंदू नहीं हो सकता, जो धोखा सहन करता है, वही हिंदू है।”
कंगना रनौत का पलटवार-
शंकराचार्य के इस बयान पर पलटवार करते हुए कंगना रनौत ने कहा, “राजनीति में गठबंधन, समझौते और पार्टी का विभाजन बहुत सामान्य और संवैधानिक है। कांग्रेस पार्टी 1907 में और फिर 1971 में विभाजित हुई थी। अगर एक राजनेता राजनीति नहीं करेगा, तो क्या वह गोलगप्पे बेचेगा?” उन्होंने आगे कहा, “धर्म भी कहता है कि अगर राजा खुद अपनी प्रजा का शोषण करने लगे, तो राजद्रोह ही परम धर्म है।”
राजनीति में गठबंधन , संधि और एक पार्टी का विभाजन होना बहुत सामान्य और संवैधानिक बात है, कांग्रेस पार्टी का विभाजन 1907 में और फिर 1971 में हुआ, अगर राजनीति में राजनीतज्ञ राजनीति नहीं करेगा तो क्या गोलगप्पे बेचेगा?
शंकराचार्य जी ने उनकी शब्दावली और अपने प्रभाव और धार्मिक शिक्षा… https://t.co/UV2KuLwVUz
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) July 17, 2024
मंडी की सांसद कंगना रनौत ने शंकराचार्य पर आरोप लगाया कि उन्होंने ऐसी “तुच्छ” टिप्पणियां करके हिंदू धर्म का अपमान किया है। उन्होंने कहा, “शंकराचार्य जी ने अपने शब्दों और अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया है… उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को देशद्रोही और धोखेबाज कहकर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है, जिससे हम सभी की भावनाएं आहत हुई हैं।”
महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़-
यह विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। पहली बार किसी धार्मिक नेता ने इतनी सीधे तौर पर राज्य की राजनीति पर टिप्पणी की है। इससे राजनीति और धर्म के बीच की रेखा और भी धुंधली हो गई है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में इस तरह के बयानों का असर चुनावी राजनीति पर भी पड़ सकता है।
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इस पूरे विवाद ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। क्या धार्मिक नेताओं को राजनीतिक मामलों में इतनी सीधी भूमिका निभानी चाहिए? क्या राजनीतिक दलों को धार्मिक नेताओं के बयानों पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया देनी चाहिए? ये सवाल अब महाराष्ट्र की जनता के बीच चर्चा का विषय बन गए हैं।
नए समीकरण-
महाराष्ट्र की राजनीति में यह नया विवाद आने वाले समय में कई नए समीकरण बना सकता है। धार्मिक नेताओं की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता और राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रियाएं, दोनों ही चिंता का विषय हैं। आम जनता अब यह देखने के लिए उत्सुक है कि आगे यह विवाद किस ओर मोड़ लेता है और क्या इसका असर आने वाले चुनावों पर पड़ेगा।
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