Saif Ali Khan: भोपाल के शाही परिवार की विरासत एक बार फिर चर्चा में है। एनिमी प्रॉपर्टी विशेषज्ञ जगदीश छवाणी ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनका कहना है, कि सैफ अली खान की दादी सजीदा सुल्तान को भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान का उत्तराधिकारी नियमों के विरुद्ध बनाया गया था। यह निर्णय कथित तौर पर सैफ के दादा इफ्तिखार अली खान पटौदी और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच के करीबी संबंधों के कारण लिया गया।
विभाजन के बाद की कहानी(Saif Ali Khan)-

1947 में जब देश का विभाजन हुआ, नवाब हमीदुल्लाह खान की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान 1950 में पाकिस्तान चली गईं। भारत के गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले एनिमी प्रॉपर्टी कस्टोडियन के कार्यालय ने पटौदी परिवार की भोपाल में स्थित पैतृक संपत्तियों को ‘एनिमी प्रॉपर्टी’ घोषित कर दिया है। इन संपत्तियों की कीमत लगभग 15,000 करोड़ रुपये आंकी गई है।

कानूनी पेचीदगियां(Saif Ali Khan)-
‘घर बचाओ संघर्ष समिति’ के उप-संयोजक छवाणी के अनुसार, भोपाल उत्तराधिकार अधिनियम 1947 के तहत सबसे बड़ी संतान यानी आबिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी घोषित किया जाना चाहिए था। लेकिन दूसरी बेटी सजीदा सुल्तान, जो भारत में रहीं और इफ्तिखार अली खान पटौदी से विवाह किया, को संपत्तियों का कानूनी वारिस बना दिया गया।
पाकिस्तानी नागरिक-
1960 में भोपाल के नवाब के निधन के बाद, पाकिस्तानी नागरिक होने के कारण आबिदा सुल्तान भारत के रक्षा अधिनियम के तहत खिताब या संपत्तियां विरासत में नहीं पा सकती थीं। छवाणी का दावा है, कि जनवरी 1962 में जारी अधिसूचना, जिसमें सजीदा सुल्तान को भोपाल का नवाब घोषित किया गया, में भोपाल उत्तराधिकार अधिनियम का कोई संदर्भ नहीं था।

वर्तमान जांच और प्रभावित संपत्तियां-
गृह मंत्रालय की एक टीम ने नवाब हमीदुल्लाह खान की संपत्तियों की नई जांच शुरू कर दी है। एनिमी प्रॉपर्टी कार्यालय द्वारा बनाई गई सूची में 30 से अधिक संपत्तियां शामिल हैं। इनमें फ्लैग स्टाफ हाउस, जहां सैफ ने अपना बचपन बिताया, अहमदाबाद पैलेस, और कोहेफिजा में स्थित सोफिया मस्जिद शामिल हैं। आरोप है कि इन संपत्तियों को एनिमी प्रॉपर्टी कानूनों के अधीन होने के बावजूद निजी संपत्ति के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया।
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परिवार की विरासत-

यह मामला न केवल एक परिवार की विरासत का है, बल्कि यह भारत के विभाजन के बाद की जटिल कानूनी और राजनीतिक वास्तविकताओं को भी प्रतिबिंबित करता है। गृह मंत्रालय की जांच के निष्कर्ष न केवल पटौदी परिवार के लिए बल्कि भविष्य में इसी तरह के अन्य मामलों के लिए भी महत्वपूर्ण मिसाल बन सकते हैं।
इस मामले ने एक बार फिर रियासती काल की संपत्तियों और उनके वर्तमान स्थिति के बारे में गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला आने वाले समय में और भी जटिल मोड़ ले सकता है, क्योंकि इसमें कानूनी, ऐतिहासिक और राजनीतिक पहलुओं का एक जटिल ताना-बाना शामिल है।
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