Mukti Bhavan: काशी, वाराणसी, बनारस, बेनारस – भारत के इस प्राचीन शहर के कई नाम हैं। यह वह पवित्र भूमि है जहां मां गंगा हर किसी को स्वर्ग के द्वार तक पहुंचने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करती हैं। इस पावन धरती से एक प्रसिद्ध कहावत है, ‘काशी मरणम मुक्ति’, जिसका अर्थ है काशी में मृत्यु का अर्थ है परम मुक्ति। भारत भर से लोग अपने बुढ़ापे में वाराणसी आते हैं, इस इच्छा के साथ कि वे इस पवित्र भूमि पर अपनी आखिरी सांस लें और मणिकर्णिका घाट पर उनका अंतिम संस्कार हो। ऐसा क्यों? क्योंकि कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव मृतकों के कानों में तारक मंत्र का जाप करते हैं, जिससे उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष और मुक्ति मिलती है।
काशी लाभ मुक्ति धाम-
काशी के इस पवित्र शहर में एक ऐसा घर है जहां लोग केवल तभी चेक-इन कर सकते हैं जब वे मौत के करीब हों, और उन्हें 15 दिनों से अधिक नहीं रहने दिया जाता है, ताकि स्थान किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जा सके जिसे इसकी आवश्यकता हो। कुछ लोगों का मानना है कि मृत्यु की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है और इसलिए रहने की अवधि को 15 दिनों तक सीमित करना उचित नहीं है, लेकिन जो लोग इस घर के बारे में जानते हैं, उनके अनुसार मरने वाले व्यक्ति को हमेशा पता होता है कि पृथ्वी से उसका प्रस्थान कब होने वाला है।
इस घर का नाम है मुक्ति भवन, जिसे काशी लाभ मुक्ति धाम भी कहा जाता है। लोग यहां अपने अंतिम दिन काशी में बिताने और अंतिम संस्कार कराने के लिए पैसे के साथ या बिना पैसे के आ सकते हैं।
“यहां एक अनोखी शांति है,” बताते हैं मुक्ति भवन के प्रबंधक भैरव नाथ शुक्ला। “लोग यहां डरते नहीं हैं। वे अपनी मृत्यु का स्वागत करते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि यह उन्हें मोक्ष की ओर ले जाएगी।”
सभी के लिए खुला है मुक्ति भवन-
मुक्ति भवन उन सभी का स्वागत करता है जो मानते हैं कि वाराणसी में मृत्यु आत्मा को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देती है, और यह धर्म, वर्ग या जाति के आधार पर लोगों में भेदभाव नहीं करता है। मुक्ति भवन वाराणसी में स्थित एक छोटा, 12 कमरों वाला गेस्ट हाउस है, जो उन लोगों के लिए है जो मानते हैं कि वे अपने अंतिम दिनों में हैं और पवित्र शहर में मरना चाहते हैं। यह दशकों से हजारों लोगों के लिए एक आश्रय रहा है, और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद की है।
“हमारे यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – हर धर्म के लोग आते हैं,” शुक्ला जी आगे बताते हैं। “मृत्यु सबके लिए समान है, और काशी की मुक्ति भी सभी के लिए उपलब्ध है।”
कई बुजुर्ग अपने परिवार के सदस्यों के साथ मुक्ति भवन आते हैं और शहर में मरने की उम्मीद के साथ चेक-इन करते हैं। कुछ लोग 10 दिनों से कम समय में मृत्यु को प्राप्त होते हैं, जबकि जो 14 दिनों से अधिक समय तक जीवित रहते हैं, उन्हें अपने परिवार के साथ थोड़ा और जीवन जीने के लिए विनम्रतापूर्वक घर वापस भेज दिया जाता है।
जहां मृत्यु से डर नहीं, बल्कि स्वीकृति है-
मुक्ति भवन के अंदर, मृत्यु डर का विषय नहीं है, बल्कि एक ऐसी घटना है जो लोगों को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करेगी, जो जीवन का परम लक्ष्य है। यहां मृत्यु का कोई भय नहीं है, कोई शोक नहीं है, बल्कि जो आने वाला है उसकी सिर्फ स्वीकृति है।
“मैंने अपनी जिंदगी जी ली है,” कहते हैं 82 वर्षीय रामानंद मिश्रा, जो अपने बेटे के साथ मुक्ति भवन में रह रहे हैं। “अब मैं भगवान शिव के चरणों में जाने के लिए तैयार हूं। काशी में मरना मेरा सौभाग्य होगा।”
मुक्ति भवन में, प्रतिदिन सुबह और शाम को भजन-कीर्तन होता है। लोग अपने शेष दिन गंगा के किनारे बैठकर या मंदिरों में जाकर बिताते हैं। वे रामायण और गीता का पाठ करते हैं, और मृत्यु की प्रतीक्षा करते हैं, जिसे वे मोक्ष का द्वार मानते हैं।
काशी में मुक्ति की प्रक्रिया-
और जैसे-जैसे काशी लोगों के लिए ‘मुक्ति’ सुनिश्चित करती है, बुजुर्ग यहां अपने दिन बिताने के लिए कतार में लगते हैं। और भीड़भाड़ से बचने के लिए, केवल उन्हीं लोगों को मुक्ति भवन में रहने की अनुमति दी जाती है जो मृत्यु के कगार पर हैं। अगर किसी व्यक्ति में मृत्यु के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, तो उनसे विनम्रता से जाने के लिए कहा जाता है। इसके साथ ही, अधिकतम 15 दिनों का ठहराव अनुमति है, और अगर इस अवधि के भीतर मृत्यु नहीं होती है, तो व्यक्ति को जाना होगा और दूसरों के लिए जगह बनानी होगी।
मृत्यु के बाद, व्यक्ति के अंतिम संस्कार या तो मणिकर्णिका घाट या हरिश्चंद्र घाट पर, हिंदू रीति-रिवाजों के साथ किए जाते हैं।
“हमारे यहां प्रतिदिन औसतन एक या दो लोग मरते हैं,” बताते हैं शुक्ला जी। “हम उनके परिवारों की मदद करते हैं और अंतिम संस्कार की व्यवस्था करते हैं। हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वे शांति से इस दुनिया को छोड़ें।”
मुक्ति भवन का सामाजिक महत्व-
मुक्ति भवन केवल एक गेस्ट हाउस नहीं है; यह एक सामाजिक संस्था है जो हजारों लोगों को उनके जीवन के अंतिम क्षणों में सांत्वना प्रदान करती है। यह जीवन और मृत्यु के बीच की सीमा को धुंधला कर देता है, और मृत्यु को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करता है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए, न कि डरना चाहिए।
“अधिकांश लोग मृत्यु से डरते हैं,” कहते हैं डॉ. रवि प्रकाश, जो मृत्यु और मरने के मनोविज्ञान पर शोध करते हैं। “लेकिन मुक्ति भवन में, लोग मृत्यु को एक नए जीवन की शुरुआत के रूप में देखते हैं। यह एक अद्भुत दृष्टिकोण है जो हमारे समाज के लिए बहुत कुछ सिखा सकता है।”
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मुक्ति भवन की कहानी हमें जीवन और मृत्यु के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें सिखाती है कि मृत्यु भी जीवन का एक हिस्सा है, और इसका सम्मान और गरिमा के साथ सामना किया जाना चाहिए। काशी में, मृत्यु केवल अंत नहीं है; यह एक नई शुरुआत है। और मुक्ति भवन इस शुरुआत का द्वार है, जहां लोग अपने जीवन के अंतिम अध्याय को लिखते हैं, यह आशा करते हुए कि यह उन्हें अनंत शांति की ओर ले जाएगा।
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