Sikandar Movie Review: एक लंबे अरसे से ईद रिलीज पर सलमान खान का वर्चस्व रहा है। हर साल वह ईद के मौके पर अपने फैंस के लिए ईदी के रूप में अपनी फिल्म लेकर आते हैं। इस बार उन्होंने साउथ के मशहूर डायरेक्टर एआर मुरुगादॉस के साथ जुगलबंदी की है। निर्देशक एआर मुरुगादॉस 2008 में जब आमिर खान की ‘गजनी’ लेकर आए थे, तब फिल्म ने हंगामा मचा दिया था और हिंदी के दर्शकों में निर्देशक को अच्छी-खासी पहचान मिली थी।
अक्षय कुमार स्टारर ‘हॉलिडे’ में भी उनके निर्देशन को पसंद किया गया, मगर इस बार एआर मुरुगादॉस का जलवा कायम नहीं रह पाता। उन्होंने अपनी फिल्म में तमाम मसाले डाले हैं, मगर उसकी मिक़दार में मार खा गए हैं। यही वजह है कि सलमान खान का स्वैग, एक्शन, इमोशन सब जाया हो जाता है।
Sikandar Movie Review ‘सिकंदर’ की कहानी-
कहानी है राजकोट की जनता के दिलों में राज करने वाले संजय (सलमान खान) की, जो राजकोट का राजा है और अपनी जनता की भलाई के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने का जज्बा रखने वाले संजय को लोग फरिश्ता मानते हैं। उसे सिकंदर और राजा साहब के नामों से भी जाना जाता है। साईश्री (रश्मिका मंदाना) संजय की पतिव्रता पत्नी है, जो हर समय संजय की सलामती की चिंता करती है।
कहानी की शुरुआत होती है मिनिस्टर प्रधान (सत्यराज) के बेटे अर्जुन प्रधान की बेहूदगी से, जहां वह फ्लाइट में एक महिला को मॉलेस्ट करने की कोशिश कर रहा होता है, मगर तभी उस महिला को संजय आकर बचाता है और अर्जुन को उस महिला के पैरों में गिर कर माफी मांगने पर मजबूर कर देता है। अर्जुन और मिनिस्टर प्रधान संजय से इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए उसके पीछे पड़ जाते हैं।
Sikandar Movie Review कहानी का मोड़-
अर्जुन की जिंदगी में उस वक्त तूफान आ जाता है, जब साईश्री प्रतिशोध की इस आग में कुर्बान हो जाती है। साईश्री के जाने के बाद संजय को पता चलता है कि उसकी पत्नी गर्भवती थी। वह गहरे शोक में डूब जाता है, पर उसे ये बात सहारा देती है कि उसकी पत्नी ने अपने ऑर्गन डोनेट कर दिए थे और इस तरह से तीन अलग-अलग लोगों के अंगों के जरिए साईश्री जीवित रहेगी।
मिनिस्टर प्रधान षड्यंत्र रच कर संजय को पंजाब में हुए ब्लास्ट का दोषी साबित करना चाहता है। उसकी बदले की लड़ाई उस वक्त और ज्यादा विभत्स रूप ले लेती है, जब वह अपने बेटे अर्जुन को खो देता है। अब मिनिस्टर प्रधान का एक ही लक्ष्य है कि किसी भी तरह से उन तीन लोगों को खोज कर खत्म करना, जिन्हें साईश्री ने अंगदान किया है।
इधर राजकोट से मुंबई आ चुके संजय के जीवन का भी एक ही मकसद है, उन तीनों की जान बचाना, जिनके जरिए उसकी पत्नी जिंदा है। क्या संजय उन तीनों की जान बचा पाता है या मिनिस्टर के षड्यंत्र का शिकार होकर जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाता है?
Sikandar Movie Review निर्देशक की कमजोर पकड़-
सलमान खान की मौजूदगी में हीरो का ओवर द टॉप होना स्वाभाविक है, मगर समस्या तब होती है, जब निर्देशक एआर मुरुगादॉस की कहानी में नयेपन का अभाव नजर आता है। मुरुगादॉस अपनी फिल्म के किरदारों को गढ़ने में कमतर साबित होते हैं। कहानी में कई चरित्र ऐसे हैं, जिनका समुचित विकास नहीं किया गया है।
कमजोर कहानी और ढीले-वाले स्क्रीनप्ले के चलते फिल्म प्रभाव नहीं जमा पाती। वन लाइनर के लिए मशहूर रही सलमान की फिल्मों की तरह इस बार भाई के वो डायलॉग भी नहीं मिलते। हां, एक्शन फिल्मों के लिए जाने जाने वाले एआर मुरुगादॉस का एक्शन धमाकेदार है। एक्शन दृश्यों को बहुत ही कमाल तरीके से कोरियोग्राफ किया गया है।
Sikandar Movie Review सिनेमैटोग्राफी और संगीत-
तिररू की सिनेमैटोग्राफी में दम है। टॉप एंगल से लिए गए भीड़ के दृश्य ग्रेंजर एड करते हैं। निर्देशक ने एक्शन के साथ इमोशन जोड़ने की कोशिश की है, मगर वह भी दर्शकों को टुकड़ों में मिलता है। फिल्म के कई दृश्य अतार्किक लगते हैं। कहानी में तारतम्यता की कमी है। फिल्म का रन टाइम 2 घंटे 35 मिनट का है, जो लंबा लगता है। संतोष नारायण का बीजीएम विषय के मुताबिक है। संगीत की बात की जाए तो प्रीतम के दो गाने ‘जोहरा जबीं’ और ‘बम बम’ बोले ठीक ठाक बन पड़े हैं।
सलमान का स्वैग और रश्मिका की ताजगी-
सलमान खान हमेशा की तरह अपने स्वैग के साथ प्रस्तुत हुए हैं। एक्शन दृश्यों में वे जमते हैं, मगर भूमिका का समुचित विकास न होने के कारण इमोशनल दृश्यों में वे कनेक्ट नहीं कर पाते। हालांकि उनके कुछ डांस मूव्ज मजेदार लगे हैं।
रश्मिका मंदाना को फिल्म में स्क्रीन स्पेस कम मिला है, मगर छोटी-सी भूमिका में वे खूबसूरत और फ्रेश लगी हैं। बीते दिनों उनके और सलमान खान के बीच के एज गैप को लेकर काफी चर्चा रही है। फिल्म में एक डायलॉग ‘उम्र का अंतर है, मगर सोच का नहीं’ के जरिए उसे जस्टिफाई किया गया है।
सहायक कलाकार-
प्रतीक बब्बर अर्जुन की नेगेटिव भूमिका में नाटकीय लगे हैं। मिनिस्टर प्रधान के चरित्र में सत्यराज अभिनय का शिकार मालूम होते हैं। सलमान खान के सहयोगी की भूमिका में शरमन जोशी जैसे उम्दा कलाकार को वेस्ट किया गया है। काजल अग्रवाल छोटी-सी भूमिका में औसत हैं। इंस्पेक्टर प्रकाश के रूप में किशोर सहज लगे हैं। बाल कलाकार ने भी अच्छा काम किया है।
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क्या है ‘सिकंदर’ की खूबियां और खामियां?
‘सिकंदर’ में अगर कुछ अच्छा है तो वह है इसका एक्शन और सलमान खान का स्वैग। फिल्म का टेक्निकल पहलू भी अच्छा है। लेकिन कमजोर कहानी, ढीला स्क्रीनप्ले और लंबा रन टाइम फिल्म के अनुभव को कम कर देता है। कहानी में मौलिकता की कमी है और इमोशनल कनेक्शन भी फीका है। रश्मिका मंदाना की खूबसूरती और सलमान के साथ उनकी केमिस्ट्री फिल्म के कुछ पलों में दिखाई देती है, पर स्क्रीन स्पेस कम होने के कारण वह भी दर्शकों को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाती।
कुल मिलाकर, ‘सिकंदर’ एक सामान्य मसाला फिल्म है जो सलमान के फैंस को थोड़ा बहुत एंटरटेन कर सकती है, पर बड़े पर्दे पर कोई नया या यादगार अनुभव नहीं देती। एआर मुरुगादॉस से उम्मीद थी कि वे सलमान के साथ कुछ अलग और दमदार लेकर आएंगे, पर यह जोड़ी अपना जादू नहीं चला पाई। अगर आप सलमान खान के दीवाने हैं और उनकी हर फिल्म देखते हैं, तो ‘सिकंदर’ को एक बार देखा जा सकता है, लेकिन अगर आप कहानी और कंटेंट चाहते हैं, तो शायद आपको निराशा हाथ लगेगी।
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