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Dastak India > Home > धर्म > अच्छे लोग क्यों सहते हैं दुख? कर्मों के इस खेल पर भगवद गीता का जवाब
धर्महोम

अच्छे लोग क्यों सहते हैं दुख? कर्मों के इस खेल पर भगवद गीता का जवाब

अजय चौधरी
Last updated: April 9, 2025 10:26 pm
अजय चौधरी
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shri krishna
Photo Source- Pixabay
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क्या आपने कभी सोचा कि अक्सर अच्छे लोग ही दुख क्यों सहते हैं, जबकि गलत करने वाले मजे में रहते हैं? भगवद गीता में छिपा है इसका जवाब—कर्म का खेल कई जन्मों तक चलता है। जानिए कैसे दुख हमें सजा नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि का रास्ता दिखाता है।

कर्म का रहस्य क्या है?


“अवश्याया भवितु द्विजेनि यात्या दुष्टरमवाप्निभावस्थिताः।”

यानी जो होना है, वो तो होगा ही, कोई रोक नहीं सकता। ये सवाल तो हर किसी के मन में आता है—अगर कर्म सच में है, तो अच्छे लोग दुख क्यों सहते हैं? और जो गलत करते हैं, वो मजे में क्यों दिखते हैं? भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को एक गहरा सच बताते हैं—कर्म का हिसाब-किताब इतना सीधा नहीं है जितना हम सोचते हैं। ये एक जन्म का खेल नहीं, बल्कि आत्मा की अनंत यात्रा है। चलिए, इसे आसान भाषा में समझते हैं।

1. कर्म का हिसाब: एक जन्म से आगे की बात–
हम अक्सर सोचते हैं कि अच्छा करो, तो तुरंत अच्छा मिलेगा। लेकिन गीता कहती है—कर्म का फल कई जन्मों में बंटा होता है। आज का दुख पिछले जन्म का नतीजा हो सकता है, और आज का अच्छा काम अगले जन्म में फल देगा।
गीता (15.8) में लिखा है:


"जैसे हवा फूलों की खुशबू ले जाती है, वैसे ही आत्मा कर्मों को एक शरीर से दूसरे में ले जाती है।"


तो जो इंसान अच्छा है, फिर भी परेशान है, शायद वो पुराने कर्मों का बोझ खत्म कर रहा हो। और जो गलत कर के भी खुशहाल दिखता है, वो पिछले अच्छे कर्मों का फल भोग रहा है—पर मौजूदा गलतियों की सजा उसे भी मिलेगी।

Hare Krishna
Photo Source- Pixabay

2. दुख सजा नहीं, आत्मा की सफाई है–
गीता (2.14) में श्रीकृष्ण कहते हैं:


"सुख-दुख, ठंड-गर्मी ये सब मौसम की तरह आते-जाते हैं, इन्हें सहन करो, ये स्थायी नहीं हैं।"


सोना तपने के बाद ही चमकता है। वैसे ही दुख आत्मा को शुद्ध करता है। ये सजा नहीं, बल्कि हमें अहंकार से मुक्त करके, दुनिया के मोह से दूर करके, सच्चाई के करीब लाता है। जो दुख को समझदारी से सहते हैं, वो आत्मा के रास्ते पर आगे बढ़ रहे होते हैं।

3. अच्छाई की असली कमाई: भीतर की ताकत–
आजकल लोग पैसा, शोहरत को कामयाबी मानते हैं। लेकिन गीता कहती है—असली दौलत है अंदर की मजबूती। जो मुसीबत में भी दया रखता है, धैर्य रखता है, वो अपनी आत्मा को मजबूत करता है। गलत लोग बाहर से खुश दिख सकते हैं, पर अंदर से उनका मन अशांत रहता है। अच्छे कर्म का फल हमेशा पैसे में नहीं, बल्कि शांति और ईश्वर से जुड़ाव में मिलता है।

4. मैं का भ्रम: अहंकार बनाम आत्मा–
हमें दुख इसलिए बुरा लगता है क्योंकि हम सोचते हैं कि सब हमारे हाथ में है। लेकिन गीता (3.27) में लिखा है:


"सारे काम प्रकृति के गुणों से होते हैं, अहंकारी बेवकूफ ही सोचता है कि मैं करने वाला हूँ।"

अहंकार तुरंत इंसाफ चाहता है। पर आत्मा जानती है कि ईश्वरीय न्याय हमारी समझ से परे है।

5. दुख आज का, फल कल का: बदलाव मुमकिन है–
कर्म का मतलब ये नहीं कि सब कुछ तय है। श्रीकृष्ण कहते हैं—पिछले कर्म आज को बनाते हैं, पर आने वाला कल हमारे हाथ में है। सच चुनो, प्यार चुनो, तो कर्म का रास्ता बदल सकता है। दुख एक सजा नहीं, बल्कि मौका है—हम इसे कोस सकते हैं या सीख सकते हैं।

Vishnu bhagwan
Photo Source- Google

6. मुसीबत से मिलती है सबसे बड़ी सीख-
“मुझे ही क्यों?” ये सवाल छोड़कर पूछो—”ये मुझे क्या सिखा रहा है?” कई संतों ने भारी दुख झेलकर ही आत्मज्ञान पाया। दुख हमें सोचने पर मजबूर करता है, झूठे भ्रम तोड़ता है, और आत्मा को मजबूत करता है। जो दुख दिखता है, वो कई बार छिपा हुआ आशीर्वाद होता है।

7. धर्म न छोड़ें: दुख में भी कर्तव्य निभाएं–
महाभारत में अर्जुन दुखी होकर युद्ध छोड़ना चाहते थे। लेकिन श्रीकृष्ण ने कहा—अपना कर्तव्य निभाना ही असली समझदारी है। गीता (3.35) कहती है:


"अपने धर्म में मरना बेहतर है, दूसरों का रास्ता डरावना है।"

चाहे माँ-बाप हों, स्टूडेंट हों, या नौकरीपेशा—दुख को बहाना न बनाएं। इसे धर्म का हिस्सा मानकर आगे बढ़ें।

8. आजादी और कर्म: हमारी चॉइस मायने रखती है–
कर्म का मतलब ये नहीं कि सब पहले से लिखा है। हालात पिछले कर्मों से आते हैं, पर उसका जवाब हमारी मर्जी से तय होता है। दुख में पैदा हुआ इंसान गुस्सा चुन सकता है या समझदारी। सुख में पैदा हुआ अहंकार चुन सकता है या नम्रता। भविष्य हमारे आज के फैसलों से बनता है।

ये भी पढ़ें- 7 अनोखे हनुमान मंदिर, जहां आज भी जीवित है अंजनीपुत्र की दिव्य शक्ति

9. फल की चिंता छोड़ें: असली शांति यहीं है–
श्रीकृष्ण कहते हैं—सबसे बड़ा दुख तब होता है जब हम नतीजों से चिपके रहते हैं। गीता (2.47) का मंत्र है:


"कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"

निष्काम कर्म यानी बिना उम्मीद के काम करना हमें सच्ची शांति देता है। इसका मतलब बेकार बैठना नहीं, बल्कि ईश्वर पर भरोसा रखते हुए आगे बढ़ना है।

Radha Krishna
Source – Google

10. असली इंसाफ: मोक्ष है सबसे बड़ा इनाम–
गीता दुनिया का इंसाफ नहीं, बल्कि उससे बड़ी चीज—मोक्ष का वादा करती है। जो दुख सहते हुए भी सही रास्ते पर चलते हैं, वो जन्म-मरण के चक्कर से आजाद हो जाते हैं। ये सुख-दुख की छोटी लड़ाई से ऊपर की बात है।

आखिर में: दुख को समझें, उसे गले लगाएं–
तो अगली बार जब पूछें—”अच्छे लोग दुख क्यों सहते हैं?” तो गीता का जवाब याद करें। दुख सजा नहीं, बल्कि आत्मा को ऊँचा उठाने का जरिया है। ये हमें शांति, सच और मोक्ष की ओर ले जाता है। कर्म का खेल समझें, और दुख को अपना गुरु बनाएं।

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अजय चौधरी दस्तक इंडिया मीडिया समूह के मुख्य संपादक हैं, 2016 में उन्होंने इस समूह की स्थापना की थी। इससे पहले उन्होंने अखबार से लेकर टीवी क्षेत्र में अपना कौशल दिखाया है।
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