बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा काजोल (Kajol), जो 90 के दशक में अपनी दमदार अदायगी और ज़बरदस्त हिट फिल्मों से दर्शकों के दिलों पर राज करती रहीं, आजकल एक अलग पहचान के साथ सामने आ रही हैं — एक मां के रूप में। हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने बेहद ईमानदारी से अपने पारिवारिक अनुभवों को साझा किया।
काजोल ने बताया कि उनके और उनके बच्चों के बीच सबसे ज़्यादा बहसें डाइनिंग टेबल पर हुई हैं। यह जगह, जहां अक्सर परिवार एक साथ बैठता है, उनके लिए एक “सीखने की क्लास” बन गई।
“मां, बस आराम करो…”
काजोल ने एक किस्सा साझा किया जो उनके दिल को छू गया। उनकी बेटी नीसा ने एक दिन बहस के दौरान कहा, “मां, बस आराम करो। मुझे पता है मैं क्या कर रही हूं, और जब भूख लगेगी तब खा लूंगी।”
इस एक वाक्य ने काजोल की सोच को झकझोर कर रख दिया। उन्हें एहसास हुआ कि जो बातें वह लगातार अपनी मां होने की जिम्मेदारी समझकर कहती आ रही थीं, वे ज़रूरी नहीं कि हमेशा सही हों।
मातृत्व नहीं, एक यात्रा है यह
काजोल (kajol) मानती हैं कि मातृत्व कोई तयशुदा नियमों वाला सफर नहीं, बल्कि एक अलग-अलग अनुभवों और सीखों की यात्रा है। वह खुद को कई बार खोया हुआ महसूस करती हैं, लेकिन इन भावनाओं के बीच उन्होंने सीखा कि बच्चे भी कभी-कभी अपने बड़ों को कुछ बड़ा सिखा सकते हैं।
“मैंने बच्चों से इंसानियत सीखी”
अपने अनुभव साझा करते हुए काजोल ने कहा, “अब मुझे आदत हो गई है। मैंने यह मान लिया है कि मेरे बच्चे भी मेरे शिक्षक हैं। जब मैं कहती हूं कि मैं एक अच्छी मां हूं, तो उसमें कोई घमंड नहीं होता। यह सिर्फ इस वजह से है कि मेरे बच्चों ने मुझे एक बेहतर इंसान बना दिया है।”
काजोल ने यह भी बताया कि शुरू में वह अपनी बेटी नीसा की भूख और खानपान को लेकर बहुत चिंतित रहती थीं, खासकर जब वह बोर्डिंग स्कूल में गई और फिर लंदन चली गई।
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