उत्तराखंड की ऊँचाई पर बसी एक झील है – रूपकुंड, जो जितनी सुंदर है, उतनी ही रहस्यमयी भी। समुद्र तल से करीब 16,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस झील को आमतौर पर “कंकालों की झील” कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका यह नाम सिर्फ एक मिथक नहीं, बल्कि एक डरावनी सच्चाई है?
कंकालों की खोज
1942 में जब ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड ने इस झील के किनारे इंसानी कंकाल देखे, तो यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई। सैकड़ों नरकंकाल, कुछ पूरे के पूरे – खोपड़ी, पसलियां, पैर, और यहां तक कि जूते भी।
शुरू में माना गया कि ये कंकाल युद्ध में मारे गए सैनिकों के हो सकते हैं। लेकिन बाद में वैज्ञानिक शोध से पता चला कि इन लोगों की मौत एक ही तरह की गोल, कठोर वस्तु से हुई है – यानी भारी ओलों से।
मौत आई थी आसमान से
2004 में हुए डीएनए और फोरेंसिक शोध से सामने आया कि ये लोग कोई सेना या डाकू नहीं थे, बल्कि तीर्थयात्री थे। वे संभवतः 9वीं सदी में नंदा देवी तीर्थ यात्रा पर निकले थे, और अचानक मौसम बिगड़ने के कारण ओलों की भयंकर बारिश में फंस गए। ओले इतने बड़े और कठोर थे कि सीधे सिर पर लगते ही कई लोगों की मौके पर ही मौत हो गई।
ट्रैकर्स और एडवेंचर लवर्स
आज रूपकुंड झील ट्रैक एक लोकप्रिय ट्रैकिंग डेस्टिनेशन है। हर साल देश-विदेश से हजारों एडवेंचर प्रेमी यहाँ आते हैं। हालांकि, पर्यावरणीय क्षति के कारण अब इस ट्रैक को कई बार बंद भी किया जा चुका है।
झील जो गर्मियों में डराती है
सर्दियों में यह झील पूरी तरह से जम जाती है, और गर्मियों में जैसे ही बर्फ पिघलती है, किनारों पर कंकाल फिर से दिखने लगते हैं। ये दृश्य जितना दुर्लभ है, उतना ही झकझोर देने वाला भी।
इसे भी पढ़ें : पुरी रथ यात्रा में दर्दनाक हादसा: भीड़ के दबाव में 3 की मौत