जनसंख्या में गिरावट
Population Foundation of India (PFI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब जनसंख्या संकट की ओर नहीं, बल्कि एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। संस्था का मानना है कि जनसंख्या वृद्धि की दर में हो रही गिरावट दर्शाती है कि अब यह मुद्दा ‘आबादी का बोझ’ नहीं बल्कि ‘नीतिगत अवसर’ के रूप में देखा जाना चाहिए।रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल प्रजनन दर (TFR) 2.0 तक आ चुकी है, जो replacement level से भी नीचे है। इससे संकेत मिलता है कि भारत धीरे-धीरे स्थिर जनसंख्या की ओर बढ़ रहा है।
महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार जरूरी
रिपोर्ट इस ओर भी इशारा करती है कि जनसंख्या को स्थिर करने के लिए महिला शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में निवेश अत्यंत आवश्यक है। बाल विवाह, कम उम्र में मातृत्व और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी समस्याएं अभी भी ग्रामीण भारत में जड़ें जमाए हुए हैं।PFI की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा के अनुसार, “हमें जनसंख्या को नियंत्रित करने के कठोर उपायों की आवश्यकता नहीं है। बल्कि महिलाओं और युवाओं के लिए अवसरों को बढ़ाना, दीर्घकालिक समाधान साबित होगा।”
जनसांख्यिकीय लाभ उठाने का समय
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत एक “जनसांख्यिकीय डिविडेंड” की स्थिति में है, जहाँ युवा आबादी सबसे बड़ी संपत्ति हो सकती है। इसके लिए स्किल डेवलपमेंट, हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और रोजगार के अवसर पैदा करना नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिए।
राज्यों में असमानता अब भी चुनौती
हालांकि, रिपोर्ट इस बात पर भी बल देती है कि राज्यों में जनसंख्या संक्रमण (Demographic Transition) की गति असमान है। दक्षिणी राज्य स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों को अभी लंबा रास्ता तय करना है।
नीतिगत फैसलों का समय है अब
PFI की रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि भारत को अब जनसंख्या को लेकर भय आधारित सोच से बाहर निकलकर डेटा-आधारित और अधिकार आधारित नीति बनानी होगी। जनसंख्या नियंत्रण के कठोर कानूनों की बजाय सरकारों को अब स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, लैंगिक समानता, और युवाओं की क्षमता विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यदि सही निर्णय लिए गए, तो यह जनसांख्यिकीय बदलाव भारत को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्र बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
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