बॉलीवुड की जब भी बात होती है, तो नायकों के साथ-साथ खलनायकों की छवि भी दिलो-दिमाग में उभरती है, और उन खलनायकों में एक नाम ऐसा है, जो न केवल पर्दे पर डर का पर्याय बना, बल्कि असल ज़िंदगी में एक बेहद सम्मानित कलाकार के रूप में जाना गया—प्राण।
प्राण कृष्ण सिकंदर अहलूवालिया, यानी हमारे अपने प्राण साहब, जिन्होंने 1938 में अभिनय की शुरुआत की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1940 में पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ में खलनायक के तौर पर उन्होंने अपने फिल्मी सफर की नींव रखी और 1942 की हिंदी फिल्म ‘खानदान’ से नायक बनकर लोगों के दिलों में बस गए।
एक खौफनाक पर पर्दे का प्रिय चेहरा
1950 से 1990 के दशक तक प्राण ने अपने अभिनय से सिनेमा को विलेन की परिभाषा दी।
उनकी फिल्मों में ‘मधुमती’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘राम और श्याम’ और ‘जंजीर’ जैसी फिल्में शामिल हैं।उनकी गंभीर आवाज, तीखा लहजा और प्रभावशाली हाव-भाव दर्शकों को थर्रा देते थे।
बॉलीवुड का सबसे महंगा खलनायक
1969 से 1982 के बीच प्राण हिंदी सिनेमा के सबसे महंगे और व्यस्ततम अभिनेताओं में शुमार थे।
उन्होंने ‘जंजीर’ के लिए अमिताभ बच्चन को रिकमेंड किया था, जिसने उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ बना दिया।
सम्मान और पहचान
प्राण को अभिनय जगत में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया:
- 🎖️ 1997: फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
- 🏅 2000: स्टारडस्ट ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’
- 🇮🇳 2001: पद्म भूषण
- 🥇 2013: दादा साहब फाल्के अवार्ड (उनके घर पर ही प्रदान किया गया)
अलविदा, अभिनय के महारथी
12 जुलाई 2013 को प्राण साहब ने 93 वर्ष की उम्र में लीलावती अस्पताल, मुंबई में अंतिम सांस ली। लेकिन उनका योगदान आज भी सिनेमा की हर पीढ़ी को प्रेरित करता है।
प्राण क्यों हैं हमेशा ज़िंदा?
प्राण ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने खलनायकी को एक नई पहचान दी। वो सिर्फ डराते नहीं थे, अपने किरदार को जीते थे। उनकी मौजूदगी भर से सीन का पूरा माहौल बदल जाता था। उन्होंने यह सिद्ध किया कि अभिनय सिर्फ हीरो का नहीं, विलेन का भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है।