उत्तरप्रदेश और उतराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने आज अपनी आखिरी सांस ली। अपने जन्मदिन पर ही उन्होंने अपने जीने की डोर छोड़ दी। एनडी तिवारी की उम्र 93 वर्ष की थी और पिछले एक साल से वह बीमार चल रहे थे। जिसके चलते वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। दिल्ली के साकेत में मैक्स अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। आपको बता दे कि एनडी तिवारी केंद्र में वित्त और विदेश मंत्री भी रह चुके है।
2008 में, विवादों में आने के बाद तिवारी ने 89 साल की उम्र में उज्ज्वला से शादी की थी और रोहित शेखर को अपना बेटा भी माना था। उज्जवला ही रोहित शेखर की मां है, जिन्होंने तिवारी के साथ लम्बे समय तक अपना हक़ पाने के लिए लड़ाई लड़ी थी और इसमें तिवारी ने हार मानकर उज्जवला को अपनाया था। और रोहित शेखर को अपना बेटा मानते हुए उसे अपनी संपत्ति का वारिस भी बनाया था। दरअसल, उज्जवला से एनडी तिवारी के पुराने प्रेम संबंध थे लेकिन उन्होंने उससे शादी नहीं की थी।
यहां से शुरू किया उन्होंने अपने पॉलिटिकल जीवन का सफ़र
एनडी तिवारी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए किया। उन्होंने एमए में पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया था। बाद में उन्होंने इसी यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। 1947 में आजादी के साल ही एनडी तिवारी इस यूनिवर्सिटी में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी। आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया।
1965 में कांग्रेस के टिकट पर जीते
कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए। यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई। 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली। 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था। 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
वह पहली बार 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन 1977 में जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उन्हें सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चुके है। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने।