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Dastak India > Home > देश > जयंत चौधरी बीच मझधार में फंसे, न रही कोई विचारधारा, किसानों से भी हुए दूर!
देश

जयंत चौधरी बीच मझधार में फंसे, न रही कोई विचारधारा, किसानों से भी हुए दूर!

अजय चौधरी
Last updated: March 4, 2024 6:38 pm
अजय चौधरी
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Jayant Chaudhary
Photo Source - Twitter
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किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के पौत्र और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी अखिलेश यादव से ऐसे रुठे कि जल्दबाजी में अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार बैठे हैं, फिलहाल के समीकरणों से तो ऐसा ही लग रहा है। जयंत चौधरी ने अखिलेश से रुठकर त्वरित एनडीए में जाने का जो फैसला किया और चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने के बाद जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी की उन्होंने तारीफों के पुल बांधें उससे लगता है कि खुशी-खुशी में और समाजवादी पार्टी से बदला लेने के चक्कर में उन्होंने गलत राह चुन ली है।

देश के किसानों को तो जयंत का ये फैसला पहले ही गलत लग रहा था लेकिन अब पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसानों को भी उनका ये फैसला गलत लगने लगा है। पहले पश्चिम के जाट और किसान वर्ग सोच रहा था कि अखिलेश जयंत के साथ गलत कर रहे हैं इसलिए उन्होंने सही फैसला लिया है लेकिन अब उन्हें भी लगने लगा है कि गलती हो गई है, इससे अच्छा जयंत अकेले ही चुनाव लड़ लेते भले ही सारी सीटें हार जाते किसानों का स्वाभीमान तो बचा रहता और उनकी विचारधारा भी कायम रहती।

आपकी दिखाई गई बड़ी तश्वीर जनता देख चुकी है @jayantrld 😓
आपने 750 से अधिक किसानों की शहादत का सौदा मात्र 2 सीटों के लिए कर दिया।
जिन्होंने हमारी बहनों को सड़कों पर घसीटा उन्हीं की गोद मे जाकर बैठ गए@JAT_SAMAAJ और किसान कौम इस विश्वासघात को कभी नहीं भूलेंगे।@BajrangPunia… pic.twitter.com/8ozjzcONzh

— Mohit Tomar (@i_mohittomar) March 3, 2024

जयंत को अब बीजेपी के साथ क्या दिक्कत आ रही है?

अखिलेश जयंत को कहने के लिए सात सीटें दे रहे थे लेकिन असल में उन्हें चार सीटों पर अपने नेता खड़े करने का मौका मिल रहा था और किसानों की विचारधारा भी बची हुई थी। लेकिन जयंत बीजेपी के साथ ऐसे मौके पर जुड़े जब दिल्ली में एमएसपी को लेकर बड़े स्तर पर किसान आंदोलन चल रहा है। जयंत किसान नेताओं का चेहरा थे और किसान जिस पार्टी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे उसी के साथ जाकर वो मिल जाते हैं और वहां भी उन्हें पूरा सम्मान नहीं मिल पा रहा है।

अगर जयंत चौधरी एनडीए गठबंधन में आकर किसानों के हितों का ध्यान रख पाते उनकी मांगे सरकार से मंगवा पाते और अपने लिए लोकसभा की कम से कम चार सीटें एनडीए गठबंधन में ले पाते और समाजवादी की राज्यसभा छोड़ बीजेपी की मदद से राज्यसभा में जाते तो उनका सम्मान बचा रहता।

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साथ ही उनके दो विधायकों को यूपी में मंत्रीपद दिया जाना था जिसपर अभी तक यूपी सरकार ने चुप्पी साध रखी है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मंत्रीपद दिए जाते तो रालोद की इज्जत बची रहती लेकिन अभी कुछ ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। आचार सहिंता लगने वाली है और उसके बाद यूपी में भी मंत्रीपद चुनाव के बाद ही मिल पाएगा, तब दिया जाएगा या नहीं वो भी नहीं पता। हालांकि जयंत को 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही केंद्र में मंत्रीपद देने का वायदा था, वो भी अब धूमिल होता दिखाई दे रहा है।

शायद @jayantrld भूल गए कि राजनीति विपक्ष की होती है. पक्ष की तो सत्ता और दलाली होती है. चौधरी चरण सिंह इसलिए बड़े बने क्योंकि वो सत्ता के खिलाफ लड़े. आज तेजस्वी और राहुल सत्ता के खिलाफ संघर्ष करके बड़े बन रहे है. अब जयंत ना कौम के काम का रहा ना राजनीति के !

— Gunnu जाटणी (@JatniGunnu) March 4, 2024

अखिलेश से क्यों बिगड़ी थी बात-

जयंत ने अखिलेश के साथ गठबंधन कर यूपी विधानसभा चुनाव में 8 विधायक जीते थे, उनमें से 3 केंडिडेट जो अखिलेश के थे रालोद के चुनाव चिन्ह पर जीतकर आए थे बाद में एक विधायक उपचुनाव में गठबंधन के तहत ही जीता था और इन्होंने सत्ताधारी दल बीजेपी को हाराने का काम यूपी में किया था। एक विधायक जयंत का इंडिया गठबंधन के तहत राजस्थान विधानसभा चुनाव में आया है वो भी बीजेपी के खिलाफ। कुल मिलाकर अब रालोद के पास 10 विधायक हैं।

अखिलेश इस लोकसभा चुनाव में रालोद को तीन अपने कैंडिडेट दे रहे थे और मुज्जफरनगर से अखिलेश हरेंद्र मलिक पर अड़े थे। चर्चा है कि उन्होंने जयंत से बिना पूछे उन्हीं के सामने हरेंद्र मलिक से कह दिया कि तुम जाओ चुनाव की तैयारी करो। जयंत किसी अन्य को मुज्जफरनगर सीट से लड़ाने को तैयार थे, लेकिन मलिक को नहीं। क्योंकि इतिहास में मलिक ने एक समय चौ. अजित सिंह की जगह मुलायम यादव का साथ देकर अजित सिंह के विधायक तोड़ मुलायम यादव को यूपी का मुख्यमंत्री बनाने में सहयोग दिया था। जिस वजह से अजित सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। इस धोखे को चौधरी परिवार कभी नहीं भूल सकता है। ऐसे में हरेंद्र मलिक को मुज्जफरनगर से लड़ाने पर किसी भी कीमत पर राजी नहीं हो सकता था।

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बीजेपी की चुप्पी से जयंत न घर के रहे न घाट के-

लेकिन फिलहाल जिस तरह बीजेपी ने जयंत के मामले में चुप्पी साध रखी है और जयंत बेचैन हैं। हालात अब ऐसे हो गए हैं कि जयंत न तो घर के रहे हैं न घाट के। यहां घर किसान हैं और घाट बीजेपी। बीजेपी जयंत को बस इस्तेमाल कर रही है और निचोड़ कर फेंक देना चाहती है ऐसा अब किसान मान रहे हैं। किसानों का तो ये भी मानना है कि चौ. चरण सिंह की जो उनकी अपनी पार्टी थी वो अब खत्म हो गई है, बीजेपी अब नहीं तो पांच सालों में आरएलडी को अपने में मिला कर उसका राजनीतिक क्षेत्र पूरी तरह छीन लेगी ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं।

जयंत चौधरी जी ने ऐसी छड़ी घुमाई है, भरोसा,स्वाभिमान एक साथ चूर चूर कर दिया वेस्ट यूपी के लोगों का।
अब जो लोग आरएलडी आई रे गाने पर छुप छुप के नाचते थे,अब खुलकर नाच सकते है…@jayantrld

— Chanchal Chaudhary (@Bholi_16) March 3, 2024
TAGGED:Farmersjayant chaudharyrldकिसानचौधरी चरण सिंहजयंतपश्चिमी उत्तरप्रदेशराष्ट्रीय लोकदल
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By अजय चौधरी
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अजय चौधरी दस्तक इंडिया मीडिया समूह के मुख्य संपादक हैं, 2016 में उन्होंने इस समूह की स्थापना की थी। इससे पहले उन्होंने अखबार से लेकर टीवी क्षेत्र में अपना कौशल दिखाया है।
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