शुक्रवार को देश की संसद में एनडीए सांसद दल की बैठक थी जिसमें राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के अध्यक्ष जयंत चौधरी भी पहुंचे थे, लेकिन उन्हें बाकि एनडीए नेताओं की तरह मंच पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ न तो जगह मिल सकी न ही मंच से बोलने का अवसर मिल सका। वो सामने दूसरी पंक्ती में बैठे नजर आए। जबकि एक-एक सीट वाले जीतन राम मांझी और अनुप्रीया पटेल को मंच पर भी जगह मिली और वो दोनों बोले भी। इस घटना के बाद ही आरएलडी समर्थकों और विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने जयंत चौधरी के साथ हुए इस व्यवहार पर सवाल उठाने शुरु कर दिए हैं।
जयंत चौधरी का अपमान जाटों का अपमान-
जयंत चौधरी के इस अपमान को जाटों के अपमान से जोड़ कर देखा जा रहा है, कहा जा रहा है कि भाजपा जाट समाज के वोट न मिलने से नाराज है। हरियाणा सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया है इसलिए अब भाजपा दो सीटों वाले जयंत चौधरी को भाव नहीं देना चाहती है, उन्हें उनके एनडीए में रहने या न रहने से फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि जाट समाज की तरफ से अभी इस मुद्दे पर चुप्पी बरती जा रही वो इसे चौधरी चरण सिंह के अपमान के रुप में तो देख रहे हैं लेकिन अभी मंत्रीमंडल के विस्तार होने तक चुप रहकर देखना चाहते हैं कि एनडीए सरकार जयंत को कोई तवज्जो बड़े मंत्रीपद के रुप में देगी या नहीं।
जयंत चौधरी का फोन स्विच ऑफ-
जानकार बता रहे हैं कि इस घटना के बाद से ही जयंत चौधरी का फोन स्विच ऑफ आ रहा है। उनके कई सारे शुभचिंतकों ने और चौधरी चरण सिंह की विचारधारा से जुड़े लोगों ने जयंत चौधरी से इस घटना के बाद संर्पक साधने की कोशिश की है, लेकिन जानकारी के अनुसार जयंत चौधरी ने अपना फोन बंद कर लिया है और वो इस मसले को लेकर किसी से न तो बातचीत कर रहे हैं न ही घर से बाहर निकल रहे हैं। इससे पहले भी भाजपा ने चुनाव के दौरान जयंत को प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करने से रोका था तब भी जयंत कुछ दिनों के लिए चुनाव से गायब हो गए थे और उन्होंने अपना फोन बंद कर लिया था। वो उस दौरान अपने प्रत्याशी के लिए की गई योगी की रैली में भी नहीं गए थे।
संजीव बालियान का इस केस से क्या संबध हो सकता है-
पश्चिमी उत्तरप्रदेश से वरिष्ठ पत्रकार ट्वीटर पर जयंत चौधरी के इस अपमान को संजीव बालियान की हार से जोड़ कर देख रहे हैं। संजीव बालियान अपने आप को कुछ समय से पश्चिम का सबसे बड़ा जाट नेता और चरण सिंह परिवार से बड़ा मानने लगे थे। उन्होंने पिछले चुनाव में जयंत के पिता अजित सिंह को 6000 वोटों से हराया था। मलिक के अनुसार पश्चिम का कोई भी जाट नेता नहीं चाहता कि उनके अलावा कोई दूसरा यहां से बड़ा जाट नेता बनकर उभरे इसी खेल ने जयंत चौधरी को संसद में शुक्रवार को मंच पर न बैठने देकर पटकनी दी गई है।
संजीव बालियान और सत्यपाल सिंह के बीच थी तल्खी-
पश्चिम में किसान आंदोलनों की वजह से भाजपा कमजोर पड़ रही थी इसलिए उनके लिए चुनाव से पहले जयंत को अपने खेमे में मिलाना जरुरी हो गया था। भाजपा में मुज्जफरनगर से पूर्व सांसद और दंगे का चहेरा संजीव बालियान और बागपत से पूर्व सांसद सत्यपाल सिंह के बीच बड़ा जाट नेता कौन इसको लेकर तल्खी थी। संजीव बालियान का इस बार चुनाव काफी भारी था उन्हें डर था अगर वो ये चुनाव हारे तो उनकी जगह सत्यपाल सिंह को केंद्र में मंत्री बना दिया जाएगा। इसका हल निकालने के लिए उन्होंने भाजपा और आरएलडी के समझौते पर जोर दिया और बागपत सीट जो कि आरलडी की परंपरागत सीट रही है समझौते के बाद वो आरएलडी के खाते में चली गई।
बालियान की हार से अजित सिंह की हार का बदला-
ऐसे में सत्यपाल सिंह बिना चुनाव लड़े ही संजीव बालियान से हार गए, वहीं मुज्जफरनगर सीट के बारे में कहा जा रहा है कि जयंत ने भाजपा के संजीव बालियान के लिए प्रचार तो किया लेकिन वो अभी अजित सिंह को हार को भूले नहीं थे इसलिए उन्होंने खुलकर प्रचार नहीं किया जिसका नतीजा हुआ कि बालियान वहां से हार गए। सपा सांसद हरेंद्र मलिक ने भी इस जीत को चौधरी अजित सिंह की हार का बदला बताकर जीत उन्हें समर्पित की। ऐसे में संजीव बालियान को लगता है कि उन्हें जयंत चौधरी ने जान बूझकर चुनाव हरवाया है।
भूपेंद्र चौधरी से मिलकर बालियान काट रहे जयंत का पत्ता-
भाजपा के उत्तरप्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी जाट हैं, कहा जा रहा है हार के बाद संजीव बालियान ने भूपेंद्र चौधरी के साथ मिलकर जयंत चौधरी का पत्ता काटने की पूरी तैयारी कर ली है। सूत्रों के मुताबिक भूपेंद्र चौधरी को बालियान ने समझा लिया है कि अगर जयंत पश्चिम से निकलकर केंद्र में बड़े मंत्री बन जाते हैं तो कल भूपेंद्र चौधरी का भी चेहरा छोटा पड़ सकता है। ऐसे में इन दोनों ने मिलकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को ये समझाने की कोशिश की है कि जयंत की वजह से भी पार्टी मुज्जफरनगर और कैराना जैसी सीटें को हारी है और अन्य पास की सीटों पर भी भाजपा मुश्किल से जीत पाई है।
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कहा जा रहा है कि इन्हीं वजहों से ही संसद में हुई एनडीए की मीटिंग में जयंत चौधरी को मंच पर कोई जगह नहीं दी गई थी, बालियान की कोशिश है कि जयंत को अब कोई बड़ा मंत्रीपद भी न मिल पाए और वो बस एनडीए के एक सहयोगी बनकर रह जाएं। हालांकि इन सभी घटनाक्रमों के बाद उम्मीद है कि भाजपा जयंत को कैबिनेट में जगह न देकर एक राज्यमंत्री का पद दे सकती है, या फिर उससे भी इंकार कर सकती है।
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