सिर्फ दिखावा है सपा का घमासान, असली मंशा है कुछ ओर
अजय चौधरी
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समाजवादी पार्टी में घमासान मचा है, लड़ाई बाप बेटे के बीच में है, इस लड़ाई के कई बाहरी सुत्रधार भी बताए जा रहे हैं। लड़ाई में पार्टी दो धड़ो में बंटती भी नजर आ रही है । अलग अलग चुनाव लड़ने को लेकर चुनाव चिन्ह साइकिल पर भी घमासान है, जिसे लेकर चुनाव आयोग का भी दरवाजा खटखटाया जा रहा है। मगर असल में लड़ाई है ही नहीं।
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सपा के घमासान को समझने के लिए सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ दल है। सत्ता के विरुद्ध हमेशा ही विरोधी भावना जनता के मन में होती है जिसे अंग्रेजी में एंटी इनकमबेंसी कहते हैं। अगर हम पर कोई बड़ी विपत्ति आ जाए तो हम छोटी सभी समस्याओं को कुछ समय के लिए भूल जाते हैं। जैसे मोदी सरकार के नोटेबंदी के बड़े फैसले के बाद से ही देश छोटी बड़ी सभी समस्याओं को भूल गया बस सबकी जुबान पर एक ही चीज।
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दिवाली के बाद नवंबर के शुरूआती उन दिनों दिल्ली एनसीआर भारी प्रदूषण का सामना कर रहा था। प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या बन गया था और पूरी दुनिया में दिल्ली का प्रदूषण चर्चा का विषय था। टीवी डिबेट, दिल्ली सरकार, सुप्रीम कोर्ट हर कोई तो लगा था इस समस्या का समाधान करने। दिल्ली में कृतिम बारिश तक कराने पर विचार किया जा रहा था। मगर देखो नोटबंदी क्या हुई। दिल्ली का प्रदूषण अपने आप खत्म हो गया। क्या आम जनता दिल्ली और केंद्र सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सब भूल गए प्रदूषण को। विश्व में भी उसके बाद इस पर चर्चा सुनने को नहीं मिली।
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सपा ने भी बड़ी समस्या ला बाकि सभी छोटी समस्या को भुलाने का अनुभव मोदी सरकार से ही लिया है। सपा की लड़ाई में एक बात सोचने योग्य ये है कि सपा के 5 साल के कार्यकाल में कभी ये समस्या सामने क्यों नहीं आई कि मुख्यमंत्री को मुलायम यादव या शिवपाल यादव काम नहीं करने दे रहे। ये चुनाव के समय ही घमासान क्यों मच गया। इस घमासान का आरोपी अमर सिंह को बनाया जा रहा हो या किसी और को मगर इसका मुख्य मकसद अखिलेश की छवि सुधारना है। जनता को ये लगना चाहिए कि अखिलेश काफी अच्छे मुख्यमंत्री हैं उन्हें तो ये सब रोक रहे थे काम करने से। अगर अखिलेश और मुलायम दोनों ही धड़े अपने अलग अलग कैंडिडेट भी चुनाव में उतारें तो भी मैच फिक्सिंग ही होगी। और बाद में सब एक कर पार्टी को एक कर लिया जाएगा।
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बात तो ये भी है अगर घमासान नहीं होगा तो मुज्जफरनगर, दादरी, कैराना और सपा के गुंडाराज को जनता कैसे भूल पाएगी। राजनेता तो यही चाहते हैं बस जनता उलझी रहे।