अजय चौधरी
जहां तक भी खुला आसमान बाकी है मुझे पता है मेरी उड़ान बाकी है,
नया सफर मैं शुरु करुं तो कैसे करुं अभी तो पहले सफर की थकान बाकी है…
गजल दिनेश रघुवंशी, पुस्तक- आसमान बाकी है
आपने बहुत सारे काव्यमंचों पर और अपनी टीवी स्क्रीन पर सुप्रसिद्ध कवि दिनेश रघुवंशी को काव्य पाठ करते जरुर देखा होगा। लेकिन कभी आपने बुलंदशहर के खेरपुर गांव के इस छोटे से बच्चे का कवि दिनेश रघुवंशी बनने का सफर जाना है? कवि दिनेश रघुवंशी ने दस्तक इंडिया से खास बातचीत में इन सभी बातों का जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि शुरुआती दिन कितने कठिनाई से भरे थे। कैसे बचपन में ही पिता का साया सर से उठ गया और माता मायके चली गई। तब वो एकदम अकेले हो चले थे और समझने लगे थे अब सफर अकेले ही तय करना है।
कैसे हुई लेखन की शुरुआत-
जब दिनेश रघुवंशी दो वर्ष के थे तभी अचानक उनके पिता का देहांत हो गया। वो छोटी उम्र में ही अपने पिता के नाम पत्र लिखा करते थे। वो बस अपने ख्यालातों को कागजों पर उकेरते रहे, उन्होंने कब बडा रुप ले लिया उन्हें पता ही न चला। दिनेश रघवंशी कहते हैं पिता का स्वर्गवास होने के बाद उन्हें लगने लगा था कि अब वो दुनिया में अकेले हैं और उन्हें कुछ करना है तो उनका कोई सहारा नहीं है। इसलिए उन्हें समय से पहले ही समझदारी आ गई और वो लेखनी मजबूत करते गए। रघुवंशी का सफर गजलों से शुरु हुआ और फिर गीतों से होता हुआ मुक्तकों और दोहों पर आया। 27 वर्ष की आयु में उनकी पहली पुस्तक का प्रकाशन हो गया था।
मां के ऊपर कैसे लिख पाए 750 से ज्यादा मुक्तक-
उन्होंने अपनी माता के संघर्ष को करीब से देखा। उन्होंने अपनी मां के सारे संघर्षों को कविता में ढालने की कोशिश की है। दिनेश कहते हैं वो अपनी कहानी कहानी कहते हैं दुनिया उसे अपनी समझ लेती है।
“किसी पावन सी नदियां सी ही जिसमें एक रवानी है जिसे खुद को मिटाकर दूसरों को रह दिखानी है। अगर लिखने पर आ जाए तो हर औलाद ये लिखे मेरी मां की कहानी ही तो हर मां की कहानी है।”- मुक्तक दिनेश रघवंशी
कहानी सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती। दिनेश रघुवंशी ने अपनी जिंदगी के बहुत से पहलुओं और कविता लेखन पर दस्तक इंडिया से बातचीत की है। जिससे इस क्षेत्र में आने वाले लोग प्रेरणा ले सकते हैं। बाकी बातें आप इस वीडियो इंटरव्यू में देखकर जान सकते हैं-