सोनम शर्मा
बीते कुछ दिनों से संघ प्रमुख मोहन भागवत कुछ ऐसे कदम उठा रहे हैं , वो कुछ ऐसी बैठकें कर रहे हैं जिससे उनमें कुछ बदलाव नजर आ रहा है। तो क्या यह सिर्फ बदलाव है या इसके पीछे कोई बड़ी वजह छुपी हुई है। भागवत हाल ही में दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित मस्जिद पर इमाम उमर अहमद इलियासी और उनके परिवार से मिले। वो वहां एक मदरसे में गए, उन्होंने वहां तालीम ले रहे बच्चों को भी एक व्याख्यान दिया। इससे पहले उन्होंने दिल्ली में ही मुस्लिम बुद्धीजीवियों से भी मुलाकात की थी। इससे मोहन भागवत के सुर अब बदले-बदले नजर आ रहे हैं।
2018 से लेकर अबतक कितने बदले मोहन भागवत के सुर-
अगर आप मोहन भागवत की पहले की बातों को सुने तो आपको भी इन बातों में बदले-बदले सुर नजर आएंगे। सितंबर 2018 की बात करें तो मोहन भागवत का हिंदुत्व पर कहना था कि यदि हिंदू ना हो तो हिंदुस्तान नहीं है, उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में जो भी रह रहा है चाहे वह किसी भी धर्म का हो लेकिन जब वह हिंदुस्तान में हैं तो वो एक हिंदू ही है। फिर नवंबर 2020 में उन्होंने कहा कि यदि भारत को भारत रहना है तो हिंदू को हिंदू ही रहना होगा।
फिर जुलाई 2021 में उनका यह बयान था कि ना हिंदू महान है ना मुस्लिम महान है, महान केवल हिंदुस्तान है। यहां उनके कहने का अर्थ यह था कि हिंदू-मुस्लिम ना करें देश में एकता बनाए रखें। यहीं से धीरे-धीरे उनके सुर में बदलाव आना शुरू हो गया। इसके बाद जब ज्ञानवापी आया तो उनका एक और बयान रहा, उन्होंने कहा कि अब हर मस्जिद में जाकर शिवलिंग ना ढूंढे। जब ज्ञानवापी का मुद्दा छेड़ा गया उस वक्त भारत में हिंदू मुस्लिम में आपस में बहस और भिड़ंत की कुछ घटनाएं सामने आ रही थी। इस दौरान कई ऐसी खबरें थी जहां हिंदू मुस्लिम आपस में लड़ झगड़ कर एक दूसरे की जान तक ले बैठते थे। तब मोहन भागवत की यह बात बड़ी ही अच्छी रही की वह ज्ञानवापी के मामले में हिंदू मुस्लिम के बीच में होने वाली भिड़ंत को शांत करा रहे थे, मामला सुलझाने की कोशिश कर रहे थे।
मुस्लिम बुद्धीजीवियों ने मोहन भागवत से कहा हमें जिहादी न कहें-
पिछले महीने मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मोहन भागवत से कहा कि हमें आपसे बात करनी है, इसके बाद मोहन भागवत ने उनसे बातचीत की जिसके दौरान इस बातचीत के दौरान काफी प्रसिद्ध लोग शामिल थे जिसमें पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, शाहिद सिद्दीकी, नजीब जंग जो कि दिल्ली के उपराज्यपाल थे, जमीरउद्दीन शाह मौजूद थे। बातचीत के दौरान मुस्लिम पक्ष ने उनसे कहा कि मुसलमानों को यह अच्छा नहीं लगता उन्हें जिहादी कहा जाए, और उनके देशभक्ति को चुनौती दी जाए, उन्होंने कहा कि बार-बार हिंदू राष्ट्र की बात ना की जाए।
बातचीत के दौरान चार बातें मोहन भागवत ने भी उनसे कही, उन्होंने कहा कि हिंदुओं को भी अच्छा नहीं लगता जब गौ-माता का अपमान किया जाता है, ऐसा ना किया जाए। आरएसएस यह नहीं चाहती कि मुस्लिम अपना धर्म छोड़ दें, हमारा जो संविधान है वही हमारा अधिकार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर तरफ कुछ ऐसे लोग हैं जो कुछ भी बोल देते हैं, उन्हें पता ही नहीं होता कि क्या बोलना है। उनकी इन बातों से अलग-अलग धर्म के लोगों में रोष फैल जाता है।
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क्या यह सोच सिर्फ मोहन भागवत की है या बीजेपी की भी है?
अब सवाल यह है कि मोहन भागवत ने अपनी बात रखी और मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी मोहन भागवत के आगे अपनी बातें रखी। क्या यह बातें केवल मोहन भागवत तक ही सीमित है या फिर एक बड़ी सोच है जोकि संघ परिवार में आ रही है, जिसमें बीजेपी भी शामिल है। क्या अब हिंदू-मुस्लिम का नारा नहीं होगा यह बड़ा सवाल है, जिसका जवाब आने वाले वक्त में बीजेपी और आरएसएस की रणनीति तय करेगी।
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