स्नेहा मिश्रा
दिल्ली हाईकोर्ट ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के मामले में एक बड़ा फैसला लिया है। उच्च न्यायालय के फैसला के मुताबिक, अब कोई भी नौकरी देने वाला संस्थान अपने कर्मचारी को कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह की एकल न्यायाधीश पीठ ने सरकारी स्कूल की एक टीचर की याचिका पर यह फैसला लिया है जिसमें शिक्षिका ने वैक्सीन लगवाने के लिए मजबूर न करने और अन्य जिम्मेदारियों को निभाने की अनुमति मांगी थी। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को इस विषय से संबंधित प्राधिकरण के लिए आश्वासन देते हुए 30 दिनों के अंदर ही निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
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इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने भारत संघ और अन्य कई मामलों में यह बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह किसी भी चिकित्सा उपचार को लेने से इंकार कर सकता है। जब तक कि उसे खुद के स्वास्थ्य के विषय में पूर्ण जानकारी है। एक समन्वय पीठ के द्वारा पारित अन्य आदेश में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार यह बताया है कि किसी भी कंपनी को टीकाकरण अनिवार्य की आवश्यकता नहीं है। जिसके बाद ही सभी कर्मचारियों को अपनी नौकरी पर लौटने की अनुमति दी गई थी।
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न्यायालय के मुताबिक, समान तथ्य स्थितियों से संबंधित आदेशों को मद्देनजर रखते हुए सभी लंबित आवेदनों सहित वर्तमान याचिका का निस्तारण इस निर्देश के साथ किया जाता है कि उपरोक्त पारित विभिन्न आदेशों के अनुसार याचिकाकर्ता द्वारा कोविड-19 के लिए उस पर दबाव नहीं डाला जा सकता है।