सावन का महीना भोलेनाथ के भक्तों के लिए बड़ा ही विशेष होता है, क्योंकि सावन माह में हर भक्त अपने भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए पूरी कोशिश करता है और स्वयं भोलेनाथ भी अपने भक्तों पर इस महीने में विशेष कृपा बरसाते हैं। इतना ही नहीं तीनों लोकों के स्वामी अपने भक्तों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते, फिर वे चाहे देव-दावन, पशु-पक्षी, जीव-जंतु या मानव हो। वह प्राणियों पर एक रूप से आपना आशीर्वाद करते हैं। इसके साथ ही देवों का देव महादेव का रूप जितना अनोखा है, उतना ही अनोखा इनका श्रृंगार है। चलिए आज हम महादेव के शारीरिक श्रृंगार और उनके महत्व के बारे में जानते है।
शीश गंगा और नीलकंठ-
महादेव के शीश पर विराजमान मां गंगा उनके कंठ में विष के ताप को कम रखती है। इसके साथ ही मां गंगा महादेव के क्रोध को भी शांत रखती हैं। वहीं बाबा भोलेनाथ ने पृथ्वी लोक के हित के लिए अपने सिर पर मां गंगा और कंठ में विष को धारण किया है। जिसके बाद बाबा भोलेनाथ का नाम नीलकंठ पड़ा।
जटाओं को धारण–
महादेव ने अपने श्रृंगार में जटाओं को भी धारण किया हुआ है। जिसको लेकर यह माना जाता है कि महादेव की जटाएं वट वृक्ष की है जिनमें समस्त प्राणियों का आराम स्थान है और इन जटाओं में वायु का वेग भी है।
शीश चंद्र-
महादेव को लेकर ऐसा कहा जाता है कि महादेव बड़े भोले हर किसी प्राणी के कष्ट को हर लेते हैं। इसी कड़ी में महादेव ने श्रापित चांद को सम्मान देकर अपने शीश पर धारण किया जिसके बाद महादेव शिव शेखर कहलाए। वहीं चंद्रमा समय का प्रतीत होता है इसलिए हम समय चक्र से भी अवगत कराता है।
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तीन नेत्र धारी-
महादेव को त्र्यंबक भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, कि महादेव की दाईं आंख में सूर्य का तेज और बाएं आंख में चंद्रमा की शीतलता है। वहीं मस्तक पर तीसरे नैन में ज्वाला अग्नि विद्यमान है। जो कि पल भर में दुष्टों का नाश कर सकती है, इसके साथ ही मस्तक पर तीसरा नैन विवेक का प्रतिनिधित्व करता है।
शिव और शक्ति-
महादेव को अर्धनारेश्वर यानी शक्ति का प्रतीक जी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, कि महादेव के शरीर की रचना ऐसी हैं, जिसमें आधा नारी और आधा नर है। महादेव ने नारी की शक्ति को सर्वोपरि शक्ति माना है, इसके साथ ही महादेव ने कहा है कि शक्ति बिन शिव कुछ भी नहीं है। अर्धनारीश्वर रूप में शिव और शक्ति का समरूप होता है।
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