शिखर जैन।
प्रधानमंत्री की हठधर्मिता और विपक्ष की जिद के चलते संसद के दोनों सदनों में हंगामें के कारण गतिरोध रहा है। जिसकी वजह से कार्यवाही बाधित हुई। इससे सांसदों के लाखों श्रम घंटे और देश को (लगभग 70 करोड रुपये) आर्थिक नुकसान उठाना पडा है। नोटबंदी के मामले में विपक्ष की जिद्द है कि प्रधानमंत्री संसद में आकर बयान दें। जबकि प्रधानमंत्री हठधर्मिता के चलते बयान देने को तैयार नहीं है। इसी वजह से शोर शराबे और हंगामे के बीच संसद में कोई काम नहीं हो पा रहा।
प्रधानमंत्री को जनप्रतिनिधी होने के नाते संसद और देश की जनता के प्रति जवाबदेह तो होना ही पडता है। वे देश के प्रधानमंत्री हैं किसी दल, संगठन, संस्था अथवा संस्थान के नहीं। वे पूरे सवा सौ करोड देशवासीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए हठधर्मिता कहां तक उचित है?
ऐसा तो है नहीं कि वे संसद में जवाब नहीं देंगे या बयान नहीं देंगे। जब विपक्ष ने मांग की तो उन्हें उसका सम्मान कर आना ही चाहिए था। इससे न तो संसद का इतना समय बर्बाद होता और न ही अपार धन की क्षती होती। उनके बयान के बारे में तरह तरह की बातें बनती रही हैं। अटकलें लगाती जाती रही हैं। अगर समय से बयान आ जाता तो शयाद दूसरी पार्टीयां देशभर में धरना-प्रदशर्न और आंदोलन नहीं करती और वामपंथी दल भारत बंद आयोजित नहीं करते।
प्रधानमंत्री ने कुशीनगर की रैली में कहा कि लुटेरों ने देश को 70 साल तक लूटा है और कालाधन जमा किया है। इस 70 साल में नरेंद्र मोदी की सरकार के ढाई साल भी शामिल हैं। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार छह साल से अधिक चली है। जाहिर है इनके समय काल में भी लोगों ने लूट कर कालाधन इक्ठ्ठा किया होगा। इसके अलावा चौ. चरण सिंह , चंद्रशेखर, देवगौडा, इंद्र कुमार गुजराल आदि की सरकारें भी रही हैं। कांग्रेस ने भी छह दशकों तक राज किया है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि आतंकवादियों की फंडिंग रोकने, कालाधन बहार निकालना, जाली करेंसी को रोकने के लिए किया जा रहा है। लेकिन अब वे जहां चुनावी राज्यों में जनसभा करते हैं वहां ये कहते हुए नहीं थकते कि ये काम मैंने गरीबों, किसानों और मजदूरों के हित के लिए किया है। फिलहाल तो देश के ज्यादातर गरीब लोग नोटबंदी से नराज हैं। यह वक्त ही बताएगा की नोटबंदी का कब, किसको और कितना लाभ मिलता है।