आनंद कश्यप
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पहले ऐसे राष्ट्रपति है जिनका सत्ता संभालने के बाद से ही बड़े स्तर पर विरोध हो रहा है। हालांकि जनता उनका विरोध अमेरिका के चुनाव अभियन के समय से कर रही है। लेकिन ट्रंप के सत्ता संभालते ही अमेरिका की जनता इतना विरोध करेगी यह सोच के परे था। ट्रंप अपने चुनाव अभियान से ही मुस्लिम-शरणार्थी विरोधी टिप्पणी करते रहे है। उन्होनें अपने चुनाव में अमेरिकी जनता से देश से मुस्लिम पर प्रतिबंध लगाने और शरणार्थियों पर रोक लगने का वायदा किया था।
इस वायदे को ध्यान में रखते हुए ट्रंप ने राष्ट्रपति की कुर्सी संभालते ही सात मुस्लिम देशों- इराक, सीरिया, ईरान, सूडान, लीबिया, सोमालिया और यमन पर अमेरिका में घुसने पर रोक लगा दी। यह रोक अभी 90 दिनों के लिए लगाई गई है। मगर सात देशों के प्रतिबंध के बाद ट्रंप के इस आदेश का कई देशों ने विरोध किया। खुद अमेरिका में कई लोगों और मानवाधिकार संगठनों ने ट्रंप के इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। सीरिया में आतंकी संगठन आईएसआईएस के डर से सीरिया के लोग अपना देश छोड़कर भाग रहे है। वहां के शरणार्थियों के लिए जर्मनी, फ्रांस जैसे दुनिया के सभी देशों ने अपने देश में इन शरणार्थियों को लेकर एक नीति बनाई है। जिसके तहत ये देश इन शरणार्थियों के अपने देश में रहने के लिए जगह दे रहे हैं।
ओबामा सरकार ने भी सीरिया के शरणार्थियों के लिए अमेरिका शरणार्थी कार्यक्रम चलाया था। ट्रंप सरकार ने इस फैसले को भी 120 दिनों के लिए खारिज कर दिया है। साथ ही अगले आदेश तक किसी भी शरणार्थी को अमेरिका में रहने और घुसने की इजाज़त न दी गई है। खास करके सीरिया के लोगों को। सात देशों के खिलाफ प्रतिबंध के बाद भी अगर ट्रंप के अन्य फैसलों पर चर्चा करें तो, राष्ट्रपति का पद संभालते है अमेरिका के गरीबों और मध्य वर्ग के लोगों के लिए ‘ओबामा केयर’ योजना को भी ट्रंप सरकार ने खारिज कर दी। यह योजना पूर्व राष्टपति बराक ओबामा की काफी महत्वांक्षी योजना थी।
ट्रंप ने इस योजना के फंड में कटौती करते हुए कहा कि इस योजना पर फिर से विचार करने की जरूरत है। इतना ही नहीं राष्ट्रपति ट्रंप ने टीपीपी ( ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप ) समझौते को भी खत्म कर दिया। यह समझौता 12 देशों के बीच किया समझौता है साथ ही इस समझौते में दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत अर्थव्यवस्था का हिस्सा जुड़ा हुआ है। पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने इस समझौते को अमेरिका के भविष्य के लिए मील का पत्थर बताया था। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरन ही टीपीपी को बेकार समझौती करार दिया था। उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार सत्ता में आयेगी तो टीपीपी को पूरी तरह से खत्म कर देगी।
अपनी इस बात पर अमल करते हुए ट्रंप ने इस फैसले को भी रद्द कर दिया। विशेषज्ञयों की माने तो अमेरिका के टीपीपी से अलग होने का फायदा चीन को मिल सकता है। इसके विपरीत अमेरिकी युवाओं को रोजगार की जो उम्मीद नजर आयी थी। वो भी खत्म हो गई है। ट्रंप सरकार के इन सभी फैसलों के खिलाफ उनके शपथ ग्रहण समारोह से ही विरोध हो रहा है। ट्रंप अमेरिका के ऐसे पहले राष्ट्रपति है जिसका विरोध राष्ट्रपति बनने के पहले दिन से हो रहा है। शपथ ग्रहण समारोह के दिन जगह-जगह लोगों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किए और आगजनी की। वाशिंग्टन डीसी की गलियों में अमेरिका के लोग विरोध करते नजर आये। बुद्धिजीवियों से लेकर हॉलीवुड की तमाम बड़ी हस्तियों ने ट्रंप की ताजपोशी का विरोध किया।
शपथ ग्रहण के दिन वाशिंग्टन स्ट्रीट में किसी ने काले कपड़े पहनकर विरोध किया तो किसी ने गुलाबी। कुछ लोगों तो चुनाव परिणाम के तुरंत बाद से ही ट्रंप का विरोध कर रहे हैं। ‘ट्रंप इज नोट माई प्रेसिडेंट’ और ‘यू आर नोट माई प्रेसिडेंट’ जैसी तफ्तियां विरोधयों के हाथों मे देखी गई। दरअसल अमेरिका की जनता ट्रंप के खिलफ इसलिए इतना ज्यादा विरोध कर रही है क्योंकि राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप एक विवादित व्यक्तित्व वाले नेता रहे है। उनके पूरे राजनीतिक अनुभव को देखा जाये तो, ट्रंप अमेरिका की राजनीति में बिल्कुल ही नये है। उनके पास ट्रंप ग्रूप को चलाने का पूरा अनुभव है। लेकिन अमेरिकी राजनीति में वो बिल्कुल नये है।
इसलिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि जो व्यक्ति शुरू से शान-ओ-शौकत की जीवन शैली में जिया हो उसके लिए आम जनता की परेशानियों का समझ पाना उतना ही मुश्किल है जितना अमेरिका में शरणार्थीयों को रोक पाना। ‘अमेरिका फर्ट’ की बात करने वाले ट्रंप ने अभी तक न ही अमेरीका के लिए और न ही अमेरीका की जनता के लिए ऐसी किसी ठोस योजना और रणनीति है की बात नहीं की। जिससे लोगों का विश्वास उन पर बन सके। अमेरिका के एक लोकतांकत्रिक देश है
और लोकतंत्र में हर किसी को बोलने का पूर्ण अधिकार है ऐसे में 45वें राष्ट्रपति का मीडिया की स्वंत्रता को भी खत्म करने की बात कहना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। खैर तमाम विरोध के बीच ट्रंप एक मजबूत देश के राष्ट्रपति है। मगर उनको जरुरत है लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने की। वह अब चुनाव अभियान वाले केवल नेता नहीं है वह अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया है। इसलिए किसी वर्ग विशेष या किसी समुदाय और धार्मिक आधार पर टिप्पणी करना एक राष्ट्रपित की छवि को धूमिल करता है।
ट्रंप के आने के बाद ट्रंप और रूस की नजदिकिया किसी से छिपी नहीं है। इन दोनों के करीब आना विश्व समाज के लिए अच्छी सोच हो सकती है अगर ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन दोनों मिलकर सीरिया में चल रहे आतंकवाद को खत्म कर सके और वहां पर शांति बहाल कर सके। ट्रंप की शुरुआत काफी आकर्मक रही है। कहीं उनके राष्ट्रपति बनने की खुशी हुई तो कहीं खुलकर विरोध हुआ। अभी तो राष्ट्रपति ट्रंप की शुरूआत है। अमेरिका और पूरे विश्व की निगाहे आने वाले कुछ सालों पर भी टिकी हुई है। देखना होगा कि ट्रंप की दोस्ती किस के लिए कैसी साबित होती है।