रोहिंग्या समुदाय के लोगो को वापस भेजने के मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि बीएसएफ रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत आने से रोक रहा है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की शिकायत पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है, जिसमें शिकायत दर्ज की गई है कि बीएसएफ म्यांमार सीमा को पार करनेवाले शरणार्थियों पर ‘मिर्ची पाउडर छिड़कर’ उन्हें भारत आने से रोक रहा है।
केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अदालत से गुजारिश की कि उसे इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए, क्योंकि “संवैधानिक अधिकार प्राप्त अधिकारी इस मामले को देख रहे हैं तथा स्थिति से निपटने की कूटनीतिक प्रक्रिया चल रही है।”
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने शुरू में अदालत से कहा कि एनएचआरसी को केवल भारत में उपस्थित रोहिंग्या शरणार्थियों की चिंता है और वे मेहता के समर्थन में हैं।
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि रोहिंग्या जो बॉडर के जरिए भारत में घुसना चाहते हैं उनको बॉडर से ही वापस भेजा जा रहा है। इसके लिए चिली पॉवडर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसपर केंद्र सरकार ने कहा कि हम देश को रिफ्यूजियों की राजधानी नहीं बनने देंगे, ऐसा नहीं हो सकता कि कोई भी आए और देश में रिफ्यूजी के तौर पर रहने लगे।
केंद्र सरकार ने कहा कि सरकार इस समस्या के समाधान के लिए राजनयिक प्रयास कर रही है, इसलिए कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने NHRC के वकील से पूछा कि क्या ऐसे लोगों को देश में घुसने की इजाजत दी जा सकती है?जिसपर NHRC ने कहा कि वो केवल उन लोगों के लिए चिंतित हैं जो बतौर रिफ्यूजी देश में रह रहे हैं। वहीं एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पूछा कि किसी रिफ्यूजी को देश में आने से किस आधार पर रोका जा सकता है। इस मामले की अगली सुनवाई 7 मार्च को होगी।