संजय बिष्ट
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
आपने फेसबुक के जन्म के बारे में क्या कहानी सुनी है? यही न कि आज से करीब 15 साल पहले मार्क जकरबर्ग नाम के एक लड़के ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए ऐसी वेबसाइट बनाई थी जिसके जरिए इंटरनेट पर छात्र कनेक्ट रहते थे। लेकिन ये कहानी का सिर्फ एक पहलू है, दूसरा पहलू मार्क जकरबर्ग की धोखेबाजी का है। अगर जकरबर्ग ने वो धोखेबाजी नहीं की होती तो आज फेसबुक का मालिक कोई और हो सकता था।
दरअसल कहानी शुरू होती है टायलर विंकल्वॉस, कैमरन विंकल्वॉस और दिव्य नरेंद्र नाम के तीन लोगों से। ये तीनों एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट शुरू करना चाहते थे। हार्वर्ड में ये तीनों जकरबर्ग के सीनियर थे। इन तीनों ने ही हार्वर्डकनेक्शन के नाम से सोशल नेटवर्किंग के विचार की खोज की थी। तीनों हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के लिए अपने सपने को साकार करने में जुटे थे। उन्होंने अपनी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट बनाने की शुरूआत कर ली थी। उन्हें कोडिंग के लिए एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जरूरत थी। विक्टर गाओ नाम के एक शख्स ने इन दिनों को मार्क जकरबर्ग से मिलाया। जकरबर्ग को वेबसाइट की कोडिंग के लिए टीम में जोड़ लिया गया। टीम में जुड़ते ही जकरबर्ग को वेबसाइट के सर्वर लोकेशन और पासवर्ड भी दे दिए गए। शुरू में चारों के बीच अच्छा तालमेल रहा।
जकरबर्ग कोडिंग की तरक्की को लेकर टीम के संपर्क में रहे लेकिन अचानक जकरबर्ग का संपर्क टीम से टूट गया। जकरबर्ग कई दिनों तक गायब रहे और जब टीम से मिले तो गायब रहने के ऐसे कारण देने लगे जिन पर विश्वास करना मुश्किल था। जनवरी 2004 में उन्होंने तीनों को ये बताया कि बेवसाइट करीब करीब तैयार है। उसे शुरू किया जा सकता है। इसके लिए 13 जनवरी 2004 का दिन मुकर्रर किया गया लेकिन इससे पहले ही मार्क जकरबर्ग ने एक ऐसी चालाकी की जिसकी वजह से वे आज अरबों की मिलकियत के मालिक बने हुए हैं। 11 जनवरी, 2004 को ज़ुकरबर्ग ने वेबसाइट को द फेसबुक डॉट कॉम के नाम से रजिस्टर करवा लिया। ये काम बेहद गुपचुप ढंग से किया गया।इसकी कानों कान खबर टायलर विंकल्वॉस, कैमरन विंकल्वॉस और दिव्य नरेंद्र को लगने तक नहीं दी गई।
14 जनवरी 2004 को मार्क जकरबर्ग की इनसे मुलाकात हुई। इस मुलाकात में वेबसाइट की प्रगति पर ही बातचीत हुई, जकरबर्ग ने द फेसबुक डॉट कॉम का जिक्र तक नहीं किया। 4 फरवरी 2004 को अचानक एक बड़ा बम फूटा। जकरबर्ग ने इस दिन हार्वर्ड के छात्रों के लिए द फेसबुकडॉट कॉम को लॉन्च कर दिया। इस बात की जानकारी टायलर विंकल्वॉस, कैमरन विंकल्वॉस और दिव्य नरेंद्र, तीनों में से किसी को भी नहीं थी। तीनों को इसकी जानकारी हार्वर्ड के इनहाउस पेपर के जरिए हुई। द फेसबुक डॉट कॉम के बाद मार्क जकरबर्ग ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। नीले रंग की वेबसाइट सोशल नेटवर्किंग की सबसे बड़ी टूल बन गई और आज संकट के बावजूद भी फेसबुक की बादशाहत बरकरार है।
टायलर विंकल्वॉस, कैमरन विंकल्वॉस और दिव्य नरेंद्र आज कहां है ये बहुत कम लोगों को पता है लेकिन इन तीनों को धोखा देकर मार्क जकरबर्ग दुनिया की शख्सियत हैं। बाद में तीनों ने जकरबर्ग पर बौद्धिक संपदा के हनन का केस दर्ज करवाया जिसमें उनकी जीत भी हुई और जकरबर्ग को साढ़े छह करोड़ डॉलर का मुआवज़ा देना भी पड़ा लेकिन तब तक फेसबुक ने जबरदस्त सफलता हासिल कर ली थी। टायलर विंकल्वॉस, कैमरन विंकल्वॉस और दिव्य नरेंद्र ने अपनी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का काम किसी और से पूरा करवाया और कनेक्ट यू नाम से इसे लांच करवाया लेकिन तब तक खेल बदल चुका था। दुनिया को फेसबुक का स्वाद लग चुका था।