तरुण कांत शर्मा
(लेखक एबीपी न्यूज में सीनियर वेब एडिटर हैं)
भयंकर बहस है इस बात पर कि किसी के मरने के बाद क्या लिखा जाना चाहिए। एक तबक़ा है जिसका मानना है कि ज़हर लिख दो और दूसरा तबक़ा है जिसे लगता है कि सब अच्छा अच्छा लिखा जाना चाहिए, वहीं एक बीच वाला तबक़ा है जिसे लगता है कि अच्छा ना लिखें ना सही, लेकिन किसी के मरने के बाद बुरा तो नहीं ही लिखना चाहिए।
स्मृतियों में बने रहेंगे ‘कामरेड’ अटल!
तरुण कांत शर्मा(लेखक एबीपी न्यूज में सीनियर वेब एडिटर हैं) भयंकर बहस है इस बात पर कि किसी के मरने के बाद क्या लिखा जाना चाहिए। एक तबक़ा है जिसका मानना है कि ज़हर लिख दो और दूसरा तबक़ा है जिसे लगता है कि सब अच्छा अच्छा लिखा जाना चाहिए, वहीं एक बीच वाला तबक़ा है जिसे लगता है कि अच्छा ना लिखें ना सही, लेकिन किसी के मरने के बाद बुरा तो नहीं ही लिखना चाहिए।मेरे ज्ञान पर आधारित किसी बात पर किसी को भरोसा नहीं होगा और होना भी क्यूँ चाहिए इसलिए हम महान लोगों को कोट करेंगे। भारत में अभी की हिंदी पत्रकारिता रवीश कुमार और पुन्य प्रसून तक सीमित हैं। दोनों ही जीवित है और अभी के माहौल में उनको कोट करना ठीक भी नहीं है। ऊपर से जो लिखना है उसपर हिंदी में किसी ने तसल्लीबख्श तरीक़े से अपनी राय नहीं रखी है। और तो और कल द वायर के एक वीडियो में विनोद दुआ जिनको कोट कर रहे थे वो भी हिंदी जगत से नहीं हैं। ये लिखने के बाद लगा है कि इस माहौल में तो द वायर को भी कोट नहीं किया जाना चाहिए था।ख़ैर, तो दुआ जिनको कोट करे रहे थे उनका नाम ख़ुशवंत सिंह है। हमको लगता है कि उनसे लंबा जर्नलिज़्म शायद कुलदीप नैयर ही कर पाएँगे, अगर 3-4 साल और जी गए तो। नैयर भी अंग्रेज़ी में ही पत्रकारिता करते आए हैं। इससे ये भी साफ़ है कि अच्छी (कोट करने लायक) पत्रकारिता अंग्रेज़ी में ही सँभव है। एक बार फिर से ख़ैर, तो दुआ ने ख़ुशवंत सिंह को कोट करते हुए कहा कि ख़ुशवंत सिंह का कहना था कि किसी के मरने के बाद जो शोक संदेश हम लिख/लिखवा रहे होते हैं वो आख़िरी दस्तावेज़ होता है। ख़ुशवंत सिंह ने ये भी कहा था कि किसी के मरने के बाद भारत में जिस हद तक उसके बारे में अच्छा-अच्छा झूठ बोला जाता है वैसा दुनिया में कहीं नहीं बोला जाता। इसकी वजह से उनका मानना था कि किसी की मौत का आख़िरी दस्तावेज़ ना तो पूरी तरह से अच्छा और ना ही पूरी तरह से बुरा हो सकता है। सिंह का तो यहाँ तक मानना था कि अगर किसी ने ऐसा काम किया है कि उसकी मौत के बाद उसका “मज़ाक़” बनाया जा सके तो बनाया जाना चाहिए।ख़ुशवंत सिंह के बाद एक और दिग्गज एडिटर विनोद मेहता का देहांत हुआ। उनकी मौत के बाद उनको आख़िरी एडिटर तक कहा गया। उनकी दो किताबों लखनऊ वॉय और एडिटर अनप्लग्ड में उन्होंने कई जगह पर सिंह को कोट किया है और उनके हवाले से बातें कही हैं। यही नहीं, उन्होंने ख़ुद को ख़ुशवंत सिंह ‘स्कूल ऑफ़ थॉट’ का बताया है। स्कूल ऑफ़ थॉट का मतलब किसी ख़ास व्यक्ति या कई खास व्यक्तियों के विचार या विचारों के संग्रह से है। सिंह का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि भारत में किसी की मौत के बाद उसे देवता बना दिया जाता है। अगर ऐसा नहीं भी किया जाए तो कोई बहुत नुक़सान नहीं है।तो ख़ुशवंत शोक संदेश के बार में जो राय रखते थे उसका हवाला विनोद मेहता से लेकर विनोद दुआ तक ने दिया है। द वायर वाली वीडियो में उन्होंने पहले वाजपेयी के राजनीतिक जीवन की वो बातें बताई हैं जिन्हें लेकर लोगों को उनसे शिकायतें या कहें कि गंभीर शियाकतें रही हैं। वहीं, उसके बाद उन्होंने वो बातें भी बताई है जिनकी वजह से उन्हें राजनेता माना जाता है। उनके अलावा गुहा जैसे इतिहासकार से लेकर मोदी पर किताब लिखने वाले निलंजन मुखोपाध्याय तक ने उनके बारे ना तो सब अच्छा लिखा है और ना ही सब बुरा। कोई भी पूरी तरह से अच्छा या पूरी तरह से बुरा कैसे हो सकता? चाहे वो ज़िंदा हो या मर गया हो?एक बार फिर से विनोद दुआ के हवाले से जिन्होंने ख़ुशवंत सिंह का हवाला दिया है- अगर हम किसी का आख़िरी दस्तावेज़ लिख रहें हैं, उसके लिए शोक संदेश लिख रहे हैं तो अच्छाई सा बुराई की ऐसी भी अति मत करें मरे हुए आदमी को सफ़ाई देने के लिए फिर से पैदा होना पड़े।ये रही दुआ के शोक संदेश वाली वीडियो –
मेरे ज्ञान पर आधारित किसी बात पर किसी को भरोसा नहीं होगा और होना भी क्यूँ चाहिए इसलिए हम महान लोगों को कोट करेंगे। भारत में अभी की हिंदी पत्रकारिता रवीश कुमार और पुन्य प्रसून तक सीमित हैं। दोनों ही जीवित है और अभी के माहौल में उनको कोट करना ठीक भी नहीं है। ऊपर से जो लिखना है उसपर हिंदी में किसी ने तसल्लीबख्श तरीक़े से अपनी राय नहीं रखी है। और तो और कल द वायर के एक वीडियो में विनोद दुआ जिनको कोट कर रहे थे वो भी हिंदी जगत से नहीं हैं। ये लिखने के बाद लगा है कि इस माहौल में तो द वायर को भी कोट नहीं किया जाना चाहिए था।
मौत से ठन गई – अटल बिहारी वाजपेयी
ख़ैर, तो दुआ जिनको कोट करे रहे थे उनका नाम ख़ुशवंत सिंह है। हमको लगता है कि उनसे लंबा जर्नलिज़्म शायद कुलदीप नैयर ही कर पाएँगे, अगर 3-4 साल और जी गए तो। नैयर भी अंग्रेज़ी में ही पत्रकारिता करते आए हैं। इससे ये भी साफ़ है कि अच्छी (कोट करने लायक) पत्रकारिता अंग्रेज़ी में ही सँभव है। एक बार फिर से ख़ैर, तो दुआ ने ख़ुशवंत सिंह को कोट करते हुए कहा कि ख़ुशवंत सिंह का कहना था कि किसी के मरने के बाद जो शोक संदेश हम लिख/लिखवा रहे होते हैं वो आख़िरी दस्तावेज़ होता है। ख़ुशवंत सिंह ने ये भी कहा था कि किसी के मरने के बाद भारत में जिस हद तक उसके बारे में अच्छा-अच्छा झूठ बोला जाता है वैसा दुनिया में कहीं नहीं बोला जाता। इसकी वजह से उनका मानना था कि किसी की मौत का आख़िरी दस्तावेज़ ना तो पूरी तरह से अच्छा और ना ही पूरी तरह से बुरा हो सकता है। सिंह का तो यहाँ तक मानना था कि अगर किसी ने ऐसा काम किया है कि उसकी मौत के बाद उसका “मज़ाक़” बनाया जा सके तो बनाया जाना चाहिए।
यही वो खूबसूरती है जिसे अटल जी देखना चाहते थे
ख़ुशवंत सिंह के बाद एक और दिग्गज एडिटर विनोद मेहता का देहांत हुआ। उनकी मौत के बाद उनको आख़िरी एडिटर तक कहा गया। उनकी दो किताबों लखनऊ वॉय और एडिटर अनप्लग्ड में उन्होंने कई जगह पर सिंह को कोट किया है और उनके हवाले से बातें कही हैं। यही नहीं, उन्होंने ख़ुद को ख़ुशवंत सिंह ‘स्कूल ऑफ़ थॉट’ का बताया है। स्कूल ऑफ़ थॉट का मतलब किसी ख़ास व्यक्ति या कई खास व्यक्तियों के विचार या विचारों के संग्रह से है। सिंह का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि भारत में किसी की मौत के बाद उसे देवता बना दिया जाता है। अगर ऐसा नहीं भी किया जाए तो कोई बहुत नुक़सान नहीं है।
अटल के जन्मदिन पर ही अटल का अनुसरण करना भूली भाजपा !
तो ख़ुशवंत शोक संदेश के बार में जो राय रखते थे उसका हवाला विनोद मेहता से लेकर विनोद दुआ तक ने दिया है। द वायर वाली वीडियो में उन्होंने पहले वाजपेयी के राजनीतिक जीवन की वो बातें बताई हैं जिन्हें लेकर लोगों को उनसे शिकायतें या कहें कि गंभीर शियाकतें रही हैं। वहीं, उसके बाद उन्होंने वो बातें भी बताई है जिनकी वजह से उन्हें राजनेता माना जाता है। उनके अलावा गुहा जैसे इतिहासकार से लेकर मोदी पर किताब लिखने वाले निलंजन मुखोपाध्याय तक ने उनके बारे ना तो सब अच्छा लिखा है और ना ही सब बुरा। कोई भी पूरी तरह से अच्छा या पूरी तरह से बुरा कैसे हो सकता? चाहे वो ज़िंदा हो या मर गया हो?
सत्ता हस्तांतरण हुआ ना कि देश आज़ाद हुआ: गांधी जी
एक बार फिर से विनोद दुआ के हवाले से जिन्होंने ख़ुशवंत सिंह का हवाला दिया है- अगर हम किसी का आख़िरी दस्तावेज़ लिख रहें हैं, उसके लिए शोक संदेश लिख रहे हैं तो अच्छाई सा बुराई की ऐसी भी अति मत करें मरे हुए आदमी को सफ़ाई देने के लिए फिर से पैदा होना पड़े।
ये रही दुआ के शोक संदेश वाली वीडियो –
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”