शैलेश शर्मा
अटल जी के निजी जिंदगी पर फैसला सुनाने वालों का नजरिया अलग-अलग हो सकता है क्योंकि अलग नजरिए के लिए अलग नजर भी चाहिए। लेकिन नजर तो बची नहीं तो फिर चश्मे लगा लिए जाते हैं, अब उनका मुगालता ये है चशमे के भीतर से जो वो देख रहे वो ही सही है। वैसे चश्मे से देखना ही एक बचकाना हरकत का उदाहरण है। कभी अटल जी ने या राजकुमारी कौल ने अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया ! आरोपों का आधार या तो प्रमाण होते हैं या फिर सहमति, लेकिन कयास बिलकुल नहीं होते। जैसे ही जिसको मौका मिलता है वो अफवाहों से फैसला कर देता है। लेकिन इससे अच्छे व्यक्तिव की पहचान होती है या नहीं, इसका फैसला आप खुद करें।
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40 के दशक में ग्वालियर के डिग्री कॉलेज में अटल जी और राजकुमारी कौल साथ पढ़ा करते थे। वो दशक ऐसा था कि आंखों ही आंखों से प्रेम का इजहार और स्वीकृति हो जाया करती थी। उन दिनों लड़के लड़कियों के आपस में मेल जोल को परंपरागत स्वीकृति नहीं होती थी। लिहाजा वाजपेयी जी ने प्रेम पत्र लिखने का फैसला किया और उस प्रेम पत्र को किताब में रखकर राजकुमारी जी को भिजवा दिया। अटल बिहारी जी पत्र के जवाब में बेचैन थे पर जवाबी पत्र नहीं मिला। वैसे राजकुमारी ने पत्र का जवाब दिया था लेकिन अटल जी को वो पत्र नहीं मिल पाया, जिसमें राजकुमारी जी की स्वीकृति थी। वो भी वाजपेयी जी से शादी करना चाहती थी। राजकुमारी कश्मीरी ब्राह्मण थी और उनके परिवार के लोग वाजपेयी जी से अपने को उच्च कुलीन ब्राह्मण मानते थे, अतः दोनों एक नहीं हो पाए। उधर राजकुमारी का विवाह बी एन कौल से जो प्रोफेसर थे, के साथ हुआ और इसके बाद राजकुमारी दिल्ली शिफ्ट हो गई। क्योंकि उनके पति कौल साहब दिल्ली के रामजस डिग्री कॉलेज में कार्यरत थे।
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डेढ़ दो दशक बाद अटल जी सांसद बने, फिर जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने। इस तरह पुनः दोनों मिले और घर आना जाना शुरू हो गया। अब सवाल उठता है इस रिश्ते से राजकुमारी कौल, उनके पति और दोनो लड़कियों को कोई शिकायत नहीं। फिर कयासों के आधार पर आरोप कहां तक तर्कसंगत है। अगर दिमाग में कीचड़ भरा हो तो कुछ नहीं कहा जा सकता। हलांकि 2014 में जब राजकुमारी जी का निधन हुआ तो प्रेस विज्ञप्ति से साबित किया गया था कि वो वाजपयी जी के घर की सदस्य है, दूसरा अटल जी ने भी माना कि वो अविवाहित तो है पर कुंवारे नहीं! इन कयासों के आधार पर वाजपयी जी पर प्रश्न चिन्ह तो लग सकते हैं लेकिन फैसला नहीं सुनाया जा सकता। अब आते हैं गुलज़ार साहब के गाने की उन पंक्तियों पर जिससे दिमाग के कीचड़ को साफ किया जा सकता है :-
“हमने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो”
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यदि कुछ अच्छा देखने की कोशिश की जाए तो अच्छा सोचा भी जा सकता है। गुलज़ार साहब की इन पंक्तियों को सार्थक किया जा सकता है। आइए जानते हैं कैसे ये गाना लिखा गुलज़ार ने जो अपनी पत्नी राखी से लगभग 40 साल अलग रहे। वो भी बिना डिवोर्स के, दूसरा ये गाना गाया लता जी ने और ATAL का उल्टा LATA , लता जी भी अविवाहित थी ।
यही वो खूबसूरती है जिसे अटल जी देखना चाहते थे
“न उमर की सीमा हो
न जनम का हो बंधन
जब प्यार करे कोई
तो देखे केवल मन
नई रीत चलाकर तुम
ये रीत अमर कर दो
होंठों से छूलो तुम” … (इंदीवर)
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क्या प्रेम इतना छोटा हो गया? क्या प्रेम अपवित्र भी होता है? प्रेम की सीमा को छोटा करके देखा जा सकता है! हां ज़रूर देखा जा सकता है! जब नजर और नज़रिया दोनों में ग्रहण लगा हो तो। उधार की जिंदगी में मस्तिष्क दूषित हो तो कम नंबर के चश्मे लग जाते हैं फिर तो भगवान कृष्ण हो, खुदा हो या अटल जी हो सभी को एक कतार में खड़ा किया जा सकता है। जरुरत है राजनीति से ऊपर उठने की, निर्मल मन और हृदय से देखने की, खुद को साफ रखो! लोगो का क्या? वो तो कफ़न में भी दाग ढूंढने की कोशिश करते हैं। अटल एक युग थे, एक विचारधारा थे। राजनीति से ऊपर उठकर देखने वाले व्यक्ति थे, देश के लिए लिए संपर्पित थे, ऐसी शख्सियत को लेकर कयासों पर फैसला नहीं देना चाहिए।
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”