अजय चौधरी
कालेधन (Black Money) को खत्म करने, आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर तोड़ने के लिए नोटबंदी जायज थी और होनी ही चाहिए थी। ये हमें नोटबंदी के बाद समझाया गया ताकि हम उसपर भरोसा कायम कर सकें। क्योकिं देश को आगे बढ़ाने के लिए हम कोई भी कष्ट उठाने को तैयार हैं।
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इसलिए हम सबने देश के लिए लंबी लाइनों में लगकर कष्ट उठाया। विरोध करने वालों को कहा जाता था कि आप देश के लिए कष्ट नहीं उठाना चाहते इसलिए ऐसा कह रहे हैं। लेकिन अब 23 महीनों की लंबी चुप्पी के बाद आरबीआई ने बताया कि 99.3 प्रतिशत नोट वापस जमा हो गए। कुछ नोट जमा हुए बिना रह गए, कहीं रखे रह गए मिले नहीं। या आप लेट हो गए। कुछ नोट ने आपने यादगार के लिए उठा कर भी रख लिए होंगे। तो क्या फिर 0.7 फीसदी ही धन काला था। या फिर जो आपसे जमा नहीं हो पाया वो ही काला धन था। हमें हैरत होनी चाहिए जिस काले धन के मुद्दे ने सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई वो काला धन गया कहाँ? जमा हो कर सफेद हो गया या फिर कालाधन था ही नहीं?
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अगर दोनों ही बात है, कालाधन सफेद हो गया या फिर था ही नहीं तो नोटबंदी हुई ही क्यों? आपके उठाए कष्ट को छोड़ दें तो क्या ये नए नोट फ्री में छप गए? क्या एटीएम की प्लेटों में बदलाव भी फ्री में हो गया? वैसे अभी ये काम पूरा नहीं हुआ है। आपको ये भी पता होगा मेट्रो और रेलवे की आटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीन नए नोट नहीं ले रही हैं। अभी इनमें भी बदलाव किया जाना है वो भी फ्री में नहीं होगा। लेकिन आप चुप रहें ऐसे विषयों पर सवाल उठाने पर देशद्रोही या कांग्रेसी घोषित हो सकते हैं। जो आप नहीं होना चाहते।
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”