आपने हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन जैसी भाषाओं का नाम तो सुना होगा लेकिन तुर्की के एक गांव में लोग पक्षी भाषा में एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं। जी-हाँ, वहाँ की यह 500 साल पुरानी परंपरा है। इस भाषा को बढ़ावा देने के लिए तुर्की में एक वार्षिक उत्सव भीआयोजित किया जाता है। 2017 में यूनेस्को ने इस भाषा को संस्कृति विरासत के रूप में इसे दर्जा दिया था। संयुक्त राष्ट्र सांस्कृतिक एजेंसी ने उत्तरी तुर्की के ब्लैक सागर की “पक्षी भाषा” को विश्व धरोहर की एऩ़डेन्जर्ड (लुप्त) हिस्से में नामित किया था।
वहां के लोग अपने ऊबड़ पहाड़ इलाके में लंबी दूरी पर संवाद करने के लिए इस भाषा का उपयोग करते हैं। यह भाषा सीटीयों की एक बेहद ही विकसित प्रणाली है। लेकिन आजकर मोबाइल फोन के बढ़ते उपयोग के कारण इस भाषा के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पक्षी भाषा के प्रयोग की शुरुआत तुर्की के कुस्कॉय गांव में हुई और फिर यह ट्रेबज़न, राइज, ऑर्डू, आर्टविन और बेबर्ट के काले सागर क्षेत्रों में फैल गया।
कुस्कॉय अपने वार्षिक पक्षी भाषा महोत्सव के माध्यम से इस संस्कृति को जीवित रखने के प्रयास कर रहा है। वहाँ के जिला अधिकारियों ने 2014 से प्राथमिक विद्यालय स्तर पर इस भाषा को पढ़ाना भी शुरू कर दिया है।
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