सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सदियों पुरानी परंपरा को समाप्त करने का फैसला किया है। अब सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं। भारतीय न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ ने कहा कि केरल हिंदू स्थानों की सार्वजनिक पूजा (प्रवेश प्राधिकरण) नियम, 1965 के हिसाब से हिंदू महिलाओं का मंदिर में बैन करना उनके धर्म के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है। उन्होने यह भी कहा कि धर्म में केवल पितृसत्ता को प्रार्थना करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है।
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इससे पहले मंदिर में महिलाओ के प्रतिबंध को केरल के उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था। एचसी ने फैसला दिया था कि केवल “तांत्रिक (पुजारी)” को परंपराओं पर फैसला करने का अधिकार दिया गया है। इसके बाद यचिकाओं के एक समूह ने प्रतिबंध को चुनौती दी थी। इंडियन यंग वकील एसोसिएशन और हैप्पी टू ब्लीड सहित याचिकाकर्ताओं ने अदालत में तर्क दिया कि यह परंपरा भेदभावपूर्ण है, और महिलाओं को अपनी पसंद के स्थान पर प्रार्थना करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
सीजेआई ने कहा कि भक्ति भेदभाव के अधीन नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि “पितृसत्तात्मक नियमों को बदलना जरुरी है। धर्म में पितृसत्ता को प्रार्थना करने और धर्म का पालन करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है”। न्यायमूर्ति खानविलर ने सीजेआई के फैसले से सहमति जताई।
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि “मंदिर से आयु वर्ग के 10-50 महिलाओं को बाहर करना उनकी गरिमा का तिरस्कार करना है। महिलाओं को भगवान की नजर में कम आंकना सविंधान के लिए गलत होगा।
न्यायमूर्ति चंद्रचुद ने भी सहमति जताते हुए कहा कि “महिलाओं को पूजा के अधिकारों से इनकार करने के लिए धर्म को कवर के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानव गरिमा के खिलाफ भी है।”
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