केरल के तिरुवनंतपुरम में बलरामपुरम का छोटा सा कस्बा राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गया है। यह ऐतिहासिक रूप से, कपास हैंडलूम और कपड़े के प्रारंभिक केंद्रों में से एक था। अब यह गोल्ड बोर्डर साड़ी और लुंगी के लिए भी जाने लगा है। हाल ही में दिल्ली में यहाँ के बुने हुए कपड़े का एक एक्जीबिशन लगाया गया है। यह एक्जीबिशन उषा देवी बालकृष्णन द्वारा दस्तकारी हाट स्टूडियो में लगाया गया है। बालकृष्णन के पास लगभग 150 कर्मचारियों हैं और 20 मास्टर बुनकर हैं जो उनके साथ साड़ी के कलेक्शन को बनाने में मदद करती है।
उनके इस लेबल को नाम अंका है जिसका अर्थ है जो ‘शरीर के नजदीक’ हो। उन्होने यह एक साल पहले बनाया है बलरामपुरम बुनाई की पारंपरिक कला को जिंदा रखने की एक कोशिश है। सेवानिवृत्ति से पहले वो सरकार की कुधुम्भ्री परियोजना की क्षेत्रीय निदेशक भी रह चुकी हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत उन्हें इस क्षेत्र से बुनकरों की चुनौतियों को समझने में मदद मिली। उन्होने बताया कि मैं उनसे मिला तो वे सरकारी योजना के हिस्से के रूप में स्कूल वर्दी बुनाई कर रहे थे। मुझे एहसास हुआ है कि उसने अपने कौशल के लिए कोई न्याय नहीं किया है। मैंने अंका को बुनाई की कुशल तकनीक को बढ़ावा देने के रूप में शुरू किया। यह एक पैठानी साड़ी की तरह है जिसे दोनो तरफ से पहना जा सकता है।
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केरल के तिरुवनंतपुरम में बलरामपुरम का छोटा सा कस्बा राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गया है। यह ऐतिहासिक रूप से, कपास हैंडलूम और कपड़े के प्रारंभिक केंद्रों में से एक था। अब यह गोल्ड बोर्डर साड़ी और लुंगी के लिए भी जाने लगा है। हाल ही में दिल्ली में यहाँ के बुने हुए कपड़े का एक एक्जीबिशन लगाया गया है। यह एक्जीबिशन उषा देवी बालकृष्णन द्वारा दस्तकारी हाट स्टूडियो में लगाया गया है। बालकृष्णन के पास लगभग 150 कर्मचारियों हैं और 20 मास्टर बुनकर हैं जो उनके साथ साड़ी के कलेक्शन को बनाने में मदद करती है।उनके इस लेबल को नाम अंका है जिसका अर्थ है जो ‘शरीर के नजदीक’ हो। उन्होने यह एक साल पहले बनाया है बलरामपुरम बुनाई की पारंपरिक कला को जिंदा रखने की एक कोशिश है। सेवानिवृत्ति से पहले वो सरकार की कुधुम्भ्री परियोजना की क्षेत्रीय निदेशक भी रह चुकी हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत उन्हें इस क्षेत्र से बुनकरों की चुनौतियों को समझने में मदद मिली। उन्होने बताया कि मैं उनसे मिला तो वे सरकारी योजना के हिस्से के रूप में स्कूल वर्दी बुनाई कर रहे थे। मुझे एहसास हुआ है कि उसने अपने कौशल के लिए कोई न्याय नहीं किया है। मैंने अंका को बुनाई की कुशल तकनीक को बढ़ावा देने के रूप में शुरू किया। यह एक पैठानी साड़ी की तरह है जिसे दोनो तरफ से पहना जा सकता है।बलरामपुरम हैंडलूम को इतिहास 19वीं शताब्दी से है। इसकी शुरुआत में तमिलनाडु में नागरकोइल से बुनकरों को आमंत्रित किया था। उन्हें राज्य में रहने और काम करने के लिए मौका दिया गया था। यहाँ पर वे त्रावणकोर के शाही परिवार के लिए कपड़ा बुनाई करते थे। बलरामपुरम मे आज भी लोग इस कला को जिंदा रखे हुए है लेकिन अब उद्योग की कमी और बाजार की कमी के कारण इन बुनकरो की संख्या घट रही है।
बलरामपुरम हैंडलूम को इतिहास 19वीं शताब्दी से है। इसकी शुरुआत में तमिलनाडु में नागरकोइल से बुनकरों को आमंत्रित किया था। उन्हें राज्य में रहने और काम करने के लिए मौका दिया गया था। यहाँ पर वे त्रावणकोर के शाही परिवार के लिए कपड़ा बुनाई करते थे। बलरामपुरम मे आज भी लोग इस कला को जिंदा रखे हुए है लेकिन अब उद्योग की कमी और बाजार की कमी के कारण इन बुनकरो की संख्या घट रही है।
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