मंजिल तो तय है लेकिन ठिकाना तय नहीं,
रास्ते बहुत लेकिन जाना किस राह ये तय नहीं।
मंजिल भी उतनी ही खूबसूरत होगी,
जितनी खूबसूरत राह, ये तय नहीं।
बिन तुम्हारे पार पा लूगां मैं,
इन अभिशापों के घेरों से, ये तय तो नहीं।
राह की पीड़ा माप सके जो,
ऐसा कोई पैमाना हो, ये तय तो नहीं।
टूट जाए हौंसला, ये तय नहीं।
सह लें हर दर्द हम, ये तय नहीं।
है यकीं मुझे पार कर लूगां ये मंझधार मैं,
साथ होगा तुम्हारा, ये तय तो नहीं।
पा लूंगा मैं वो, जो चाहा मैंने,
पा लूगां तुम्हें, ये तय तो नहीं।
रचना- अजय चौधरी
